शनिवार, 4 अप्रैल 2020
👉 धर्म जीतेगा और अधर्म हारेगा
चारों ओर फैले हुए पाप पाखंड को नष्ट करने के लिए वर्तमान समय में जो ईश्वरीय अवतारी प्रेरणा अदृश्य लोक में उत्पन्न हुई है, उसका प्रभाव जागृत आत्माओं पर विशेष रूप से पड़ रहा है। जिसका अन्तःकरण जितना ही पवित्र है, जिसकी आत्मा जितनी ही निर्मल है वह उतना ही स्पष्ट रूप से ईश्वर की आकाशवाणी को, समय की पुकार को, सुन रहा है और अवतार के महान कार्य में सहायता देने के लिए तत्पर हो रहा है। समय की समस्याओं को वह ध्यान पूर्वक अनुभव कर रहा है और सुधार कार्य में क्रियात्मक सहयोग प्रदान कर रहा है। जिन लोगों की आत्माएं कलुषित है, पाप, अनीति और घोर अन्धकार ने जिनके अन्तःकरण को ढ़क रखा है, वे उल्लू और चमगादड़ की तरह प्रकाश देखकर चिढ़ रहे हैं। वे कुछ काल से फैली हुई अनीति को सनातन बताकर पकड़े रहना चाहते है। सड़े गले कुविचारों का समर्थन करने के लिए पोथी पत्र ढूंढ़ते हैं। किसी पुराने व्यक्ति की लिखी हुई कुछ पंक्तियाँ यदि उन सड़े गले विचारों के समर्थन में मिल जाती हैं तो ऐसे प्रसन्न होते हैं मानो यह पंक्तियाँ साक्षात् ईश्वर ने ही लिखी हों। परिस्थितियाँ रोज बदलती हैं और उनका रोज नया हल ढूँढ़ना पड़ता है। इस सच्चाई को वे अज्ञान ग्रस्त मनुष्य समझ न सकेंगे और ‘जो कुछ पुराना सब अच्छा जो नया सो सब बुरे’ कहकर अपने अज्ञान और स्वार्थ का समर्थन करेंगे।
दीपक बुझने को होता है तो एक बार वह बड़े जोर से जलता है, प्राणी जब मरता हे तो एक बार बड़े जोर से हिचकी लेता है। चींटी को मरते समय पंख उगते हैं, पाप भी अपने अन्तिम समय में बड़ा विकराल रूप धारण कर लेता। युग परिवर्तन की संध्या में पाप का इतना प्रचंड, उग्र और भयंकर रूप दिखाई देगा जैसा कि सदियों से देखा क्या सुना भी न गया था। दुष्टता हद दर्जे को पहुँच जायगी, एक बार ऐसा प्रतीत होगा कि अधर्म की अखंड विजयदुन्द भी बज गई और धर्म बेचारा दुम दबा कर भाग गया, किन्तु ऐसे समय भयभीत होने का कोई कारण नहीं, यह अधर्म की भयंकरता अस्थायी होगी, उसकी मृत्यु की पूर्व सूचना मात्र होगी। अवतार प्रेरित धर्म भावना पूरे वेग के साथ उठेगी और अनीति को नष्ट करने के लिए विकट संग्राम करेगी। रावण के सिर कट जाने पर भी फिर नये उग आते थे फिर भी अन्ततः रावण मर ही गया। संवत् दो हजार के आसपास अधर्म नष्ट हो हो कर फिर जीवित होता हुआ प्रतीत होगा उसकी मृत्यु में बहुत देर लगेगी, पर अन्त में वह मर ही जायेगा।
तीस वर्ष से कम आयु के मनुष्य अवतार की वाणी से अधिक प्रभावित होंगे वे नवयुग का निर्माण करने में अवतार का उद्देश्य पूरा करने में विशेष सहायता देंगे। अपने प्राणों की भी परवा न करके अनीति के विरुद्ध वे धर्म युद्ध करेंगे और नाना प्रकार के कष्टों को सहन करते हुए बड़े से बड़ा त्याग करने को तत्पर हो जावेंगे। तीस वर्ष से अधिक आयु के लोगों में अधिकाँश की आत्मा भारी होगी और वे सत्य के पथ पर कदम बढ़ाते हुए झिझकेंगे। उन्हें पुरानी वस्तुओं से ऐसा मोह होगा कि सड़े गले कूड़े कचरे को हटाना भी उन्हें पसंद न पड़ेगा। यह लोग चिरकाल तक नारकीय बदबू में सड़ेंगे, दूसरों को भी उसी पाप पंक में खींचने का प्रयत्न करेंगे, अवतार के उद्देश्य में, नवयुग के निर्माण में, हर प्रकार से यह लोग विघ्न बाधाएं उपस्थित करेंगे। इस पर भी इनके सारे प्रयत्न विफल जायेंगे, इनकी आवाज को कोई न सुनेगा, चारों ओर से इन मार्ग कंटकों पर धिक्कार बरसेंगी, किन्तु अवतार के सहायक उत्साही पुरुष पुँगब त्याग और तपस्या से अपने जीवन को उज्ज्वल बनाते हुए सत्य के विजय पथ पर निर्भयता पूर्वक आगे बढ़ते जावेंगे।
अधर्म से धर्म का, असत्य से सत्य का, अनीति से नीति का, अन्धकार से प्रकाश का, दुर्गन्ध से मलयानिल का, सड़े हुए कुविचारों से नवयुग निर्माण की दिव्य भावना का घोर युद्ध होगा। इस धर्म युद्ध में ईश्वरीय सहायता न्यायी पक्ष को मिलेगी। पाँडवों की थोड़ी सेना कौरवों के मुकाबले में, राम का छोटा सा वानर दल विशाल असुर सेना के मुकाबले में, विजयी हुआ था, अधर्म अनीति की विश्व व्यापी महाशक्ति के मुकाबले में सतयुग निर्माताओं का दल छोटा सा मालूम पड़ेगा, परन्तु भली प्रकार नोट कर लीजिए, हम भविष्यवाणी करते हैं कि निकट भविष्य में सारे पाप प्रपंच ईश्वरीय कोप की अग्नि में जल-जल कर भस्म हो जायेंगे और संसार में सर्वत्र सद्भावों की विजय पताका फहरा वेगी।
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी 1943 पृष्ठ 4
दीपक बुझने को होता है तो एक बार वह बड़े जोर से जलता है, प्राणी जब मरता हे तो एक बार बड़े जोर से हिचकी लेता है। चींटी को मरते समय पंख उगते हैं, पाप भी अपने अन्तिम समय में बड़ा विकराल रूप धारण कर लेता। युग परिवर्तन की संध्या में पाप का इतना प्रचंड, उग्र और भयंकर रूप दिखाई देगा जैसा कि सदियों से देखा क्या सुना भी न गया था। दुष्टता हद दर्जे को पहुँच जायगी, एक बार ऐसा प्रतीत होगा कि अधर्म की अखंड विजयदुन्द भी बज गई और धर्म बेचारा दुम दबा कर भाग गया, किन्तु ऐसे समय भयभीत होने का कोई कारण नहीं, यह अधर्म की भयंकरता अस्थायी होगी, उसकी मृत्यु की पूर्व सूचना मात्र होगी। अवतार प्रेरित धर्म भावना पूरे वेग के साथ उठेगी और अनीति को नष्ट करने के लिए विकट संग्राम करेगी। रावण के सिर कट जाने पर भी फिर नये उग आते थे फिर भी अन्ततः रावण मर ही गया। संवत् दो हजार के आसपास अधर्म नष्ट हो हो कर फिर जीवित होता हुआ प्रतीत होगा उसकी मृत्यु में बहुत देर लगेगी, पर अन्त में वह मर ही जायेगा।
तीस वर्ष से कम आयु के मनुष्य अवतार की वाणी से अधिक प्रभावित होंगे वे नवयुग का निर्माण करने में अवतार का उद्देश्य पूरा करने में विशेष सहायता देंगे। अपने प्राणों की भी परवा न करके अनीति के विरुद्ध वे धर्म युद्ध करेंगे और नाना प्रकार के कष्टों को सहन करते हुए बड़े से बड़ा त्याग करने को तत्पर हो जावेंगे। तीस वर्ष से अधिक आयु के लोगों में अधिकाँश की आत्मा भारी होगी और वे सत्य के पथ पर कदम बढ़ाते हुए झिझकेंगे। उन्हें पुरानी वस्तुओं से ऐसा मोह होगा कि सड़े गले कूड़े कचरे को हटाना भी उन्हें पसंद न पड़ेगा। यह लोग चिरकाल तक नारकीय बदबू में सड़ेंगे, दूसरों को भी उसी पाप पंक में खींचने का प्रयत्न करेंगे, अवतार के उद्देश्य में, नवयुग के निर्माण में, हर प्रकार से यह लोग विघ्न बाधाएं उपस्थित करेंगे। इस पर भी इनके सारे प्रयत्न विफल जायेंगे, इनकी आवाज को कोई न सुनेगा, चारों ओर से इन मार्ग कंटकों पर धिक्कार बरसेंगी, किन्तु अवतार के सहायक उत्साही पुरुष पुँगब त्याग और तपस्या से अपने जीवन को उज्ज्वल बनाते हुए सत्य के विजय पथ पर निर्भयता पूर्वक आगे बढ़ते जावेंगे।
अधर्म से धर्म का, असत्य से सत्य का, अनीति से नीति का, अन्धकार से प्रकाश का, दुर्गन्ध से मलयानिल का, सड़े हुए कुविचारों से नवयुग निर्माण की दिव्य भावना का घोर युद्ध होगा। इस धर्म युद्ध में ईश्वरीय सहायता न्यायी पक्ष को मिलेगी। पाँडवों की थोड़ी सेना कौरवों के मुकाबले में, राम का छोटा सा वानर दल विशाल असुर सेना के मुकाबले में, विजयी हुआ था, अधर्म अनीति की विश्व व्यापी महाशक्ति के मुकाबले में सतयुग निर्माताओं का दल छोटा सा मालूम पड़ेगा, परन्तु भली प्रकार नोट कर लीजिए, हम भविष्यवाणी करते हैं कि निकट भविष्य में सारे पाप प्रपंच ईश्वरीय कोप की अग्नि में जल-जल कर भस्म हो जायेंगे और संसार में सर्वत्र सद्भावों की विजय पताका फहरा वेगी।
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी 1943 पृष्ठ 4
👉 वर्तमान दुर्दशा क्यों? (भाग ३)
यह एक तथ्य है कि किसी व्यक्ति द्वारा किये हुए भले या बुरे कर्म का कुछ भाग उस परिवार के अन्य व्यक्तियों को भी मिलता है। घर का एक व्यक्ति कोई भला काम करे तो उस परिवार के सब लोग अभिमान अनुभव करते हैं और आदर पाते हैं। यदि घर का एक व्यक्ति बुरा काम करता है तो सारे कुटुम्ब को लज्जित होना पड़ता है। एक समय ब्राह्मण लोगों ने बड़े उत्तम ज्ञान का प्रसार करके जनता की सेवा की थी। उनकी सैंकड़ों पीढ़ी के बाद भी आज ब्राह्मणों के गुणों से हीन होने पर भी उनका आदर होता है और वे अभिमानपूर्वक ऋषि मुनियों की संतान कह कर अपना गौरव प्रकट करते हैं। ऋषियों का शरीर छूटे हजारों वर्ष हो गये तो भी उनकी संतान उन पूर्वजों के पुण्य का फल, दान दक्षिणा के रूप में अब तक भोग रही हैं। बुरे कर्म करने वालों के कुटुम्बियों और वंशजों को भी इसी प्रकार लज्जित होना पड़ता है। भारत में कुछ कौमें “जरायम पेशा” लिखी जाती हैं। इन कौमों के लोग चोरी आदि अपराध करते हैं। उनमें से जो अपराध नहीं करते वे भी ‘जरायम पेशा” समझे जाते हैं और पुलिस की निगरानी उन पर भी रहती है। सम्मिलित रहने वालों की सम्मिलित जिम्मेदारी भी होती है। वे आपस में एक दूसरे के पाप पुण्य के भागीदार भी होते हैं।
आजकल समस्त संसार पर जो चतुर्मुखी आपत्तियाँ आई हुई हैं उसका कारण भी यही सम्मिलित जिम्मेदारी है। पूर्वकाल में परिवारों के दायरे छोटे थे इसलिए वहाँ विपत्तियाँ भी थोड़े ही पैमाने पर आती थी। अब सारी दुनिया एक सूत्र में बँधी है तो उसका यह कर्तव्य भी बढ़ गया है कि समस्त देशों में धर्म की वृद्धि और अधर्म का निवारण करने का प्रयत्न करें।
भारतीय शास्त्र चिल्ला चिल्ला कर बताते हैं कि आपत्तियों का कारण अधर्म है। हम देखते हैं कि पिछली शताब्दियों में नैतिकता का स्तर जितना नीचा घटा है उतना सृष्टि के आदि से लेकर पहले कभी नहीं घटा था। इन दिनों बुद्धिबल से, यान्त्रिक शक्ति से, छल प्रबन्ध से, स्वार्थ साधना का ही विशेष ध्यान रखा गया। लूट खसोट की प्रधानता रही। पहले शत्रु के लिए भी उसके चरित्र को नष्ट करने के षड़यंत्र नहीं रचे जाते थे पर इस युग में निर्बल शक्ति वालों को नैतिकता से भी गिरा देने का बुद्धिमान लोगों ने प्रयत्न किया, ताकि वे लोग असत् आचरण के कारण द्वेष, कलह, अशान्ति एवं कुविचारों में उलझे रहें और हमें लूट खसोट का अच्छा अवसर हाथ लगता रहे। जब मनुष्यों के मन में सद्वृत्तियाँ रहती हैं तो उनकी सुगंध से दिव्यलोक भरापूरा रहता है और जैसे यज्ञ की सुगंधि से अच्छी वर्षा, अच्छी अन्नोत्पत्ति होती है वैसे ही जनता की सत् भावनाओं के फलस्वरूप ईश्वरी कृपा की- सुख शान्ति की वर्षा होती है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी 1943 पृष्ठ 5
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1943/January/v1.5
आजकल समस्त संसार पर जो चतुर्मुखी आपत्तियाँ आई हुई हैं उसका कारण भी यही सम्मिलित जिम्मेदारी है। पूर्वकाल में परिवारों के दायरे छोटे थे इसलिए वहाँ विपत्तियाँ भी थोड़े ही पैमाने पर आती थी। अब सारी दुनिया एक सूत्र में बँधी है तो उसका यह कर्तव्य भी बढ़ गया है कि समस्त देशों में धर्म की वृद्धि और अधर्म का निवारण करने का प्रयत्न करें।
भारतीय शास्त्र चिल्ला चिल्ला कर बताते हैं कि आपत्तियों का कारण अधर्म है। हम देखते हैं कि पिछली शताब्दियों में नैतिकता का स्तर जितना नीचा घटा है उतना सृष्टि के आदि से लेकर पहले कभी नहीं घटा था। इन दिनों बुद्धिबल से, यान्त्रिक शक्ति से, छल प्रबन्ध से, स्वार्थ साधना का ही विशेष ध्यान रखा गया। लूट खसोट की प्रधानता रही। पहले शत्रु के लिए भी उसके चरित्र को नष्ट करने के षड़यंत्र नहीं रचे जाते थे पर इस युग में निर्बल शक्ति वालों को नैतिकता से भी गिरा देने का बुद्धिमान लोगों ने प्रयत्न किया, ताकि वे लोग असत् आचरण के कारण द्वेष, कलह, अशान्ति एवं कुविचारों में उलझे रहें और हमें लूट खसोट का अच्छा अवसर हाथ लगता रहे। जब मनुष्यों के मन में सद्वृत्तियाँ रहती हैं तो उनकी सुगंध से दिव्यलोक भरापूरा रहता है और जैसे यज्ञ की सुगंधि से अच्छी वर्षा, अच्छी अन्नोत्पत्ति होती है वैसे ही जनता की सत् भावनाओं के फलस्वरूप ईश्वरी कृपा की- सुख शान्ति की वर्षा होती है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी 1943 पृष्ठ 5
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1943/January/v1.5
👉 वर्तमान संकट और हमारा कर्तव्य (अंतिम भाग)
अखण्ड-ज्योति के पाठकों से हम विशेष रूप से अनुरोध करते हैं कि वे सच्चे धर्म को फैलाने में पूरी शक्ति के साथ प्रयत्न करें। सबसे पहला काम हम में से हर एक को यह करना चाहिए, कि अपना आत्म-शोधन करें अपने अन्दर जो स्वार्थ, असत्य, अन्याय की दुर्भावनायें घुसी बैठी हों उन्हें बारीकी के साथ तलाश करें और जिस प्रकार मरे हुए कुत्ते की लाश को निकाल कर घर से बाहर फेंक देते हैं, वैसे ही अपनी कुभावना, अनीति और स्वार्थपरता को दूर फेंक देने का यथासम्भव उद्योग करें। अमुक मन्त्र की माला जपने, अमुक पुस्तक का पाठ करने अमुक देवता के भगत बनने, अमुक नदी नाले में नहाने के महजबी कर्म काण्डों को करने न करने के सम्बन्ध में हमें कुछ नहीं कहना, यह सब व्यक्तिगत रुचि और श्रद्धा की वस्तुएं हैं, हमें तो जोरदार शब्दों में यह कहना कि आप सत्य आचरण करने के लिए तत्पर हो जाइये दूसरों से निस्वार्थ प्रेम कीजिए, अन्य लोगों की भलाई में अपनी भलाई समझिए। ज्ञान, बल, धन, वैभव प्राप्त कीजिए, किन्तु उसको अपने भोगों का साधन मत बनाइये। अपने से अल्प शक्ति रखने वालों की सहायता में आपकी सम्पूर्ण शक्तियों का अधिक से अधिक व्यय होना चाहिए। मैं किसकी क्या भलाई कर सकता हूँ, यह सोचते रहा कीजिए और परोपकार के सेवा, सहायता के अवसर आवें उन्हें बिना चूकें कर्तव्य परायण हुआ कीजिए। आपका शारीरिक मानसिक और भौतिक बल अधिक से अधिक मात्रा में लोक कल्याण के निमित्त, सत्प्रवृत्तियों की उन्नति के निमित्त, पाप कर्मों को नाश करने के निमित्त, व्यय होना चाहिए। आपका जीवन कर्म योग में परिपूर्ण यज्ञमय बन जाना चाहिए, जिसका प्रत्येक क्षण विशुद्ध कर्तव्य पालन में, धर्म और ईश्वर की उपासना में व्यय होने लगे। यह कार्य कठिन दिखाई पड़ता है, परन्तु यदि आप प्रतिज्ञा करलें, कि मुझे अपना जीवन सत्यमय बनाना है तो विश्वास रखिए, आप से ही आपके कदम उस दिशा को बढ़ाने लगेंगे फिर कुछ ही दिनों में बड़ी भारी सफलता दृष्टिगत होने लगेगी।
दूसरा कार्य जो उपरोक्त आत्म सुधार कार्य कुछ ही घनिष्ठ सम्बन्ध रखता है यह है कि जिन लोगों तक आपकी पहुँच हो सकती है, उनको धर्म मार्ग पर चलने के लिए, सत्य का आचरण करने के लिए प्रेरित करते रहा करें। जो लोग आपके संपर्क में आवें, जिनसे बात करने का अवसर मिले, जिनसे पत्रालय हो उन्हें सदुपदेश दिया कीजिए, सत्य के, प्रेम के, न्याय के मार्ग पर चलने के लिये प्रेरित किया कीजिए। अपने मुख को एक प्रकार का जीवित धर्म शास्त्र बना डालिए, जिसमें से सदैव धर्म शिक्षा का प्रसार होता रहे। अपने कुटुम्बियों, मित्रों, सहयोगियों, सम्बन्धियों, परिचितों, अपरिचितों को सच्चाई और ईमानदारी के ढांचे में ढालने का उद्योग किया कीजिए, जिससे उनकी जीवन दिशा सुधरे और आपका अपना आत्म-सुधार का अभ्यास मजबूत होता रहे। यह बेल बढ़ेगी।
मान लीजिए आप दस आदमियों को धर्ममय विचारों का बना देते हैं, वे दस और दस-दस को सुधारते हैं, तो सौ हो गये। ऐसा ही सौ करें तो दस हजार हो जायेंगे, यही बेल आगे बढ़े तो दसवें व्यक्ति पर जाकर वह संख्या इतनी हो सकती है जितने मनुष्य इस सारी पृथ्वी पर नहीं हैं यदि सौ दृढ़ प्रतिज्ञा सुयोग्य व्यक्ति धर्म भावनाओं का प्रचार करने के लिये सच्चे हृदय से तत्पर हो जावें तो संसार की काया पलट कर सकते है युद्ध का जरा मूल से अन्त कर सकते हैं, कुछ ही समय में इस पृथ्वी को सुर-पुरी बना सकते हैं। भागीरथ की तपस्या की पतित पावनी भगवती गंगाजी स्वर्ग से भूमण्डल पर उतर आई थी। आज ऐसे ही भागीरथों की आवश्यकता है, जो स्वयं घोर तप करके सतयुगी गंगा को पृथ्वी पर लावें और जलते हुए संसार पर अमृत की वर्षा करके इसे नन्दन वन के समान हरा-भरा करदें।
वर्तमान दारुण परिस्थितियों में हम अपने हर एक पाठक से आग्रह पूर्वक अनुरोध करते हैं, कि अपने निजी जीवन को पवित्र, पुण्यमय परमार्थी बनावें और दूसरों को भी इस मार्ग पर प्रवृत्त करें। इस धर्म प्रचार यज्ञ से संसार पर आई हुई आपत्तियों को हटाने में महत्वपूर्ण सहायता मिलेगी, ऐसा हमारा सुदृढ़ विश्वास हैं।
.... समाप्त
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी 1943 पृष्ठ 2
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1943/January/v1
दूसरा कार्य जो उपरोक्त आत्म सुधार कार्य कुछ ही घनिष्ठ सम्बन्ध रखता है यह है कि जिन लोगों तक आपकी पहुँच हो सकती है, उनको धर्म मार्ग पर चलने के लिए, सत्य का आचरण करने के लिए प्रेरित करते रहा करें। जो लोग आपके संपर्क में आवें, जिनसे बात करने का अवसर मिले, जिनसे पत्रालय हो उन्हें सदुपदेश दिया कीजिए, सत्य के, प्रेम के, न्याय के मार्ग पर चलने के लिये प्रेरित किया कीजिए। अपने मुख को एक प्रकार का जीवित धर्म शास्त्र बना डालिए, जिसमें से सदैव धर्म शिक्षा का प्रसार होता रहे। अपने कुटुम्बियों, मित्रों, सहयोगियों, सम्बन्धियों, परिचितों, अपरिचितों को सच्चाई और ईमानदारी के ढांचे में ढालने का उद्योग किया कीजिए, जिससे उनकी जीवन दिशा सुधरे और आपका अपना आत्म-सुधार का अभ्यास मजबूत होता रहे। यह बेल बढ़ेगी।
मान लीजिए आप दस आदमियों को धर्ममय विचारों का बना देते हैं, वे दस और दस-दस को सुधारते हैं, तो सौ हो गये। ऐसा ही सौ करें तो दस हजार हो जायेंगे, यही बेल आगे बढ़े तो दसवें व्यक्ति पर जाकर वह संख्या इतनी हो सकती है जितने मनुष्य इस सारी पृथ्वी पर नहीं हैं यदि सौ दृढ़ प्रतिज्ञा सुयोग्य व्यक्ति धर्म भावनाओं का प्रचार करने के लिये सच्चे हृदय से तत्पर हो जावें तो संसार की काया पलट कर सकते है युद्ध का जरा मूल से अन्त कर सकते हैं, कुछ ही समय में इस पृथ्वी को सुर-पुरी बना सकते हैं। भागीरथ की तपस्या की पतित पावनी भगवती गंगाजी स्वर्ग से भूमण्डल पर उतर आई थी। आज ऐसे ही भागीरथों की आवश्यकता है, जो स्वयं घोर तप करके सतयुगी गंगा को पृथ्वी पर लावें और जलते हुए संसार पर अमृत की वर्षा करके इसे नन्दन वन के समान हरा-भरा करदें।
वर्तमान दारुण परिस्थितियों में हम अपने हर एक पाठक से आग्रह पूर्वक अनुरोध करते हैं, कि अपने निजी जीवन को पवित्र, पुण्यमय परमार्थी बनावें और दूसरों को भी इस मार्ग पर प्रवृत्त करें। इस धर्म प्रचार यज्ञ से संसार पर आई हुई आपत्तियों को हटाने में महत्वपूर्ण सहायता मिलेगी, ऐसा हमारा सुदृढ़ विश्वास हैं।
.... समाप्त
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी 1943 पृष्ठ 2
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1943/January/v1
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👉 महिमा गुणों की ही है
🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...