शनिवार, 13 मई 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 13 May 2023

पर-दोष दर्शन की दुर्बलता त्यागकर आत्म-दोष दर्शन का साहस विकसित कीजिए। जब दृष्टि देखने में समर्थ है तो वह गुण भी देखेगी और दोष भी। गुण औरों के और दोष अपने देखिए। जीवन में गुणों का विकास करने का यही तरीका है। जब आप स्वयं ही अपने दोष देखने लग जायेंगे तो दूसरों द्वारा इंगित करने पर आपमें कोई अप्रिय या प्रतिकूल प्रतिक्रिया न होगी। ऐसा होने से आप ईर्ष्या-द्वेष, वाद-विवाद, कुंठा एवं कुढ़न के विकारों से बच जायेंगे।

एक ओर जहाँ मनुष्य अपने को दयालु, क्षमाशील, करुण एवं पर-दुःखकातर होने का दावा कर रहा है, अपने को धर्मज्ञाता, अहिंसक तथा सहानुभूति संपन्न बतला रहा है, वहीं दूसरी ओर पशुओं को मारकर खा रहा है, खाल खींच रहा है, देवताओं के नाम पर उनके प्राण ले रहा है-क्या मनुष्य का यह कुत्सित कर्म उसे इस दावे से नीचे नहीं गिरा देता कि वह सृष्टि का सबसे श्रेष्ठ और धर्मशील प्राणी है?

स्वार्थी व्यक्ति यों किसी का कुछ प्रत्यक्ष बिगाड़ नहीं करता, किन्तु अपने लिए सम्बद्ध व्यक्तियों की सद्भावना खो बैठना एक ऐसा घाटा है, जिसके कारण उन सभी लाभों से वंचित होना पड़ता है जो सामाजिक जीवन में पारस्परिक स्नेह-सहयोग पर टिके हुए हैं।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 अपनी वासनाएं काबू में रखिए (अन्तिम भाग)

देखो, जब तक तुम्हारे सामने कोई 500 रुपयों की थैली चुपचाप लाकर न रख दे तब तक तुम लोभी हो अथवा निर्लोभी, इसकी परीक्षा कैसे हो सकती है? यदि पाप न होते तो संसार में महात्मा और दुष्टों की पहचान कैसे होती। अतएव छल, अभिमान, माया, मोह इत्यादि कुवासनाओं से घेरे जाने पर अपने लिए असमर्थ मान कर उन्हें दोष का स्थान मानना मानो उन्नति के मार्ग से हटना है।

प्रत्येक व्यक्ति का अनुभव है कि वासनाओं की तपस्या कितनी कठिन है। पाप क्रोध के बुरे परिणामों के विषय में चाहे ग्रंथ के ग्रंथ लिख देने योग्य ज्ञान रखते हों, घंटों उस विषय पर व्याख्यान देकर लोगों को उनके आवेश के शमन करने की शिक्षा दे सकते हों, परन्तु जब सच्चे क्रोध का अवसर आ- उपस्थित होता है उस समय उसे संभाल लेना टेढ़ा काम है। इसीलिये किसी महात्मा का कथन है कि केवल ज्ञान के द्वारा आत्मोन्नति असंभव है। जानना और काम को कर दिखाना ये दो बातें हैं। काम-वासना को ही लीजिए पुराणों की तिलोत्तमा द्वारा ब्रह्माजी के तपो-भ्रष्ट होने की बात सभी को विदित है। पाँच हजार वर्ष तक दिव्य तप करने वाला योगी भी जिस काम-वासना को विजय न कर सका उसकी जलन का क्या ठिकाना है।

वासनाओं के अवगुणों और बुरे फलों की आलोचना करने के लिए यदि प्रतिदिन मनुष्य कोई विशेष समय नियत कर लेता उसकी नैतिक उन्नति बहुत शीघ्र हो सकती है। प्रत्येक धर्म में अपने दिन भर के कार्यों पर विचार करने के लिए सोने के पेश्तर समय निश्चित करने का उपदेश दिया गया है। उसका अभिप्राय यही है कि मनुष्य अपने नैतिक चरित्र की संभाल उसी भाँति कर लिया करे जैसे कि वह अपने दैनिक आय-व्यय किया करता है।

.... समाप्त
✍🏻 महात्मा जेम्स ऐलन
📖 अखण्ड ज्योति अप्रैल 1950 पृष्ठ 10


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