🔵 दैन्य का रोग दूर करने के लिए अपनी चिन्तन धारा बदलनी पड़ेगी। मनुष्य की आत्मा में अद्भुत शक्तियाँ छिपी पड़ी हैं। उनका चिन्तन करने से वे जाग पड़ती हैं और मनुष्य के चरित्र में समाविष्ट होकर अपना चमत्कार दिखलाने लगती हैं। आत्म-निन्दा के स्थान पर यदि आत्म-प्रशंसापूर्वक अपना चिन्तन किया जाय तो पता चलेगा कि हम एक उदात्त चरित्र और महान शक्तियों वाले व्यक्ति हैं। हम भी उन दैवी गुणों और विभूतियों के भण्डार हैं, जिनका कोई दूसरा है या हो सकता है। इस प्रकार के अनुकूल चिन्तन अभ्यास से निश्चय ही आपका चरित्र चमक उठेगा, आपकी शक्तियाँ विकसित हो उठेंगी और आप संसार में बहुत से उल्लेखनीय कार्य कर सकेंगे।
🔴 आत्म-चिन्तन एक अद्भुत कला है। इससे जहाँ आपको अपने गुणों का आभास होगा वहाँ उन न्यूनताओं का भी पता चलेगा, जो आपको दैन्य की ओर ले जाती हैं। आत्म-चिन्तन करने पर आप जिस किसी समय ऐसी कमी अपने में पायें, जो आपको दीनता अथवा हीनता की ओर ले जाती हों उसे तुरन्त दूर करने का प्रयत्न करिये। यदि आपका धनाभाव आपको दीन बनाता है तो या तो संतोष और सादगी में सुख लीजिए अथवा किसी ऐसे क्षेत्र में उद्योग कीजिए, जिसमें धन प्राप्ति के लिए अवसर हो।
🔵 यदि अज्ञान के कारण आप में हीन भावना घर किए है तो अध्ययन, मनन और सत्संग का क्रम चलाइये। ऐसा पुरुषार्थ करिये जिससे आपको ज्ञान की उपलब्धि हो। यदि आप अपने को निर्बल अनुभव करते हैं तो अपने में साहस स्वास्थ्य और विश्वास की अभिवृद्धि करिए। साहसपूर्ण साहित्य पढ़िए और साहसी वीर और धीर पुरुषों का संग करिए। तात्पर्य यह है कि जो अभाव अथवा त्रुटि आपको दीनता की ओर ढकेलती हो उसे उपायपूर्वक दूर करने में जग जाइये।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 ~पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🌹 अखण्ड ज्योति जुलाई 1968 पृष्ठ 30
🔴 आत्म-चिन्तन एक अद्भुत कला है। इससे जहाँ आपको अपने गुणों का आभास होगा वहाँ उन न्यूनताओं का भी पता चलेगा, जो आपको दैन्य की ओर ले जाती हैं। आत्म-चिन्तन करने पर आप जिस किसी समय ऐसी कमी अपने में पायें, जो आपको दीनता अथवा हीनता की ओर ले जाती हों उसे तुरन्त दूर करने का प्रयत्न करिये। यदि आपका धनाभाव आपको दीन बनाता है तो या तो संतोष और सादगी में सुख लीजिए अथवा किसी ऐसे क्षेत्र में उद्योग कीजिए, जिसमें धन प्राप्ति के लिए अवसर हो।
🔵 यदि अज्ञान के कारण आप में हीन भावना घर किए है तो अध्ययन, मनन और सत्संग का क्रम चलाइये। ऐसा पुरुषार्थ करिये जिससे आपको ज्ञान की उपलब्धि हो। यदि आप अपने को निर्बल अनुभव करते हैं तो अपने में साहस स्वास्थ्य और विश्वास की अभिवृद्धि करिए। साहसपूर्ण साहित्य पढ़िए और साहसी वीर और धीर पुरुषों का संग करिए। तात्पर्य यह है कि जो अभाव अथवा त्रुटि आपको दीनता की ओर ढकेलती हो उसे उपायपूर्वक दूर करने में जग जाइये।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 ~पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🌹 अखण्ड ज्योति जुलाई 1968 पृष्ठ 30