शनिवार, 16 सितंबर 2017
👉 वैराग्य भावना से मनोविकारों का शमन (भाग 3)
🔴 आप जितना भावनात्मक गहराई तक उतर सकें उतरें। आप को यथार्थ ज्ञान मिलेगा, शक्ति मिलेगी और इस दूषित विकार के आघात से बड़ी आसानी के साथ बच जायेंगे। शरीर की नश्वरता और आत्म-ज्ञान की प्रबल जिज्ञासा का भाव जितनी शक्ति और-क्षमता के साथ आप उठायेंगे, उतना ही वैराग्य भाव उमड़ता हुआ चला आयेगा। मैं अपने जीवन को इन तुच्छ बातों में नहीं गंवाऊंगा, न जाने कब विनष्ट हो जाने वाले शरीर के प्रति मैं भला क्यों आसक्त होऊँ, मैं आत्मा हूँ, अपने मूल स्वरूप को जानना ही मेरा लक्ष्य है। इस प्रकार के अनेकों विचार आप तर्क और प्रमाण के साथ उठाते चले आइये, निश्चय ही आपकी कामुकता का आवेश आपको छोड़कर भाग जायेगा। आपके जी में “मातृवत् परदारेषु” का सुन्दर भाव उमड़ता हुआ चला जायेगा, आगे आन्तरिक दृष्टि से आनन्दित हो उठेंगे और जो विचार अभी थोड़ी देर पहले आपको आक्रान्त कर रहा था, वह न जाने कहाँ विलुप्त हो जायेगा।
🔵 वासना का प्रभाव मनुष्य के जीवन में आँधी-तूफान की तरह होता है, इससे बचने के लिये सिनेमा, नाटक, अभद्र प्रदर्शनों से तो बचें ही, बुद्धि विवेक और सद्विचार भी ठीक रखें और इसे वैराग्य पूर्ण भावनाओं के द्वारा भी निवारण करें।
🔴 क्रोध की अवस्था भी ठीक ऐसी ही होती हैं। संसार में ऐसा कोई भी पाप नहीं जो क्रोधी व्यक्ति न कर सकता हो। क्रोध को पाप का मूल कहकर पुकारा जाता है। यह भी एक आवेश में आता है और अनेकों अनर्थ उत्पन्न करके ही समाप्त होता है। पीछे उन पर भारी दुःख तथा पश्चात्ताप होता है। इससे बचने के पूर्व-अभ्यास के रूप में प्रेम, स्नेह, आत्मीयता, सौजन्यता, सहिष्णुता और उदारता आदि भावों को विकसित करें तो ठीक है, किन्तु यदि फिर भी कदाचित ऐसा अवसर आ जाये तो आप पुनः वैराग्यपूर्ण भावनाओं का स्मरण कीजिये। आप विचार कीजिये, आप जिसे दण्ड देना चाहते हैं, जिस पर आपको क्रोध आ रहा है, वह यदि आप होते तो आप पर कैसी बीतती।
🔵 मान लीजिये आपने ही वह गलती कर डाली होती और कोई उसका दण्ड आपको दिया जा रहा होता तो आपके शरीर में कितनी पीड़ा छटपटाहट हो रही होती। यह भाव उठते ही आपके हृदय में करुणा का भाव उत्पन्न होगा। आप सोचेंगे कि दण्ड देना अनुचित है। दूसरों को पीड़ा न देना ही मानव धर्म है। आपका क्रोध पराभूत हो जायगा और आप उसके विषैले प्रभाव से बच जायेंगे। कोई भी प्रतिशोध-जनक प्रतिक्रिया उठने से बच जायेगी।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🌹 अखण्ड ज्योति- फरवरी 1965 पृष्ठ 2
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1965/February/v1.2
🔵 वासना का प्रभाव मनुष्य के जीवन में आँधी-तूफान की तरह होता है, इससे बचने के लिये सिनेमा, नाटक, अभद्र प्रदर्शनों से तो बचें ही, बुद्धि विवेक और सद्विचार भी ठीक रखें और इसे वैराग्य पूर्ण भावनाओं के द्वारा भी निवारण करें।
🔴 क्रोध की अवस्था भी ठीक ऐसी ही होती हैं। संसार में ऐसा कोई भी पाप नहीं जो क्रोधी व्यक्ति न कर सकता हो। क्रोध को पाप का मूल कहकर पुकारा जाता है। यह भी एक आवेश में आता है और अनेकों अनर्थ उत्पन्न करके ही समाप्त होता है। पीछे उन पर भारी दुःख तथा पश्चात्ताप होता है। इससे बचने के पूर्व-अभ्यास के रूप में प्रेम, स्नेह, आत्मीयता, सौजन्यता, सहिष्णुता और उदारता आदि भावों को विकसित करें तो ठीक है, किन्तु यदि फिर भी कदाचित ऐसा अवसर आ जाये तो आप पुनः वैराग्यपूर्ण भावनाओं का स्मरण कीजिये। आप विचार कीजिये, आप जिसे दण्ड देना चाहते हैं, जिस पर आपको क्रोध आ रहा है, वह यदि आप होते तो आप पर कैसी बीतती।
🔵 मान लीजिये आपने ही वह गलती कर डाली होती और कोई उसका दण्ड आपको दिया जा रहा होता तो आपके शरीर में कितनी पीड़ा छटपटाहट हो रही होती। यह भाव उठते ही आपके हृदय में करुणा का भाव उत्पन्न होगा। आप सोचेंगे कि दण्ड देना अनुचित है। दूसरों को पीड़ा न देना ही मानव धर्म है। आपका क्रोध पराभूत हो जायगा और आप उसके विषैले प्रभाव से बच जायेंगे। कोई भी प्रतिशोध-जनक प्रतिक्रिया उठने से बच जायेगी।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🌹 अखण्ड ज्योति- फरवरी 1965 पृष्ठ 2
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1965/February/v1.2
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