शनिवार, 11 नवंबर 2017

👉 आत्मोन्नति के चार आधार (भाग 2)

🔶 मनुष्य के सामने असंख्य समस्याएँ है और उन असंख्य समस्याओं का समाधान केवल इस बात पर टिका हुआ है कि हमारी आन्तरिक स्थिति सही बना दी जाए। दृष्टिकोण हमारा गलत होता है, जो हमारे क्रियाकलाप गलत होता है और गलत क्रियाकलाप के परिणामस्वरूप जो प्रतिक्रियाएँ होती हैं, जो परिणाम सामने आते हैं, वे भयंकर दुःखदाई होते है। कष्टकारक परिस्थितियों के निवारण करने के लिए आवश्यक है कि मनुष्य का चिन्तन और शिक्षण बदल दिया जाए, परिष्कृत कर दिया जाए। यही हैं हमारे प्रयास, जिसके लिए हम अपनी समस्त शक्ति के साथ लगे हुए हैं।
        
🔷 मनुष्य के आन्तरिक उत्थान, आन्तरिक उत्कर्ष, आत्मिक विकास के लिए करना चाहिए और कैसे करना चाहिए? इसका समाधान करने के लिए हमको चार बातें तलाश करनी पड़ती हैं। इन्हीं चार चीजों के आधार पर हमारी आत्मिक उन्नति टिकी हुई है और वे चार आधार हैं—साधना, स्वाध्याय, संयम, और सेवा। ये चारों ऐसे हैं जिनमें से एक को भी आत्मोत्कर्ष के लिए छोड़ा नहीं जा सकता। इनमें से एक भी ऐसा नहीं है, जिसके बिना हमारे जीवन का उत्थान हो सके। चारों आपस में अविच्छिन्न रूप से जुड़े हुए हैं, जिस तरीके से कई तरह की चौकड़ियाँ आपस में जुड़ी हैं। मसलन बीज—एक, जमीन—दो, खाद—तीन, पानी—चार। चारों जब तक नहीं मिलेंगे, कृषि नहीं हो सकती। उसका बढ़ना सम्भव नहीं है। व्यापार के लिए अकेली पूँजी से काम नहीं चल सकता। इसके लिए पूँजी—एक, अनुभव—दो, वस्तुओं की माँग—तीन, ग्राहक—चार।

🔶 इन चारों को आप ढूँढ़ लेंगे तो व्यापार चलेगा और उसमें सफलता मिलेगी। मकान बनना हो तो उसके लिए ईंट, चूना, लोहा, लकड़ी इन चारों चीजों की जरूरत है। चारों में से एक भी चीज अगर कम पड़ेगी तो हमारी इमारत नहीं बन सकती। सफलता प्राप्त करने के लिए मनुष्य का कौशल आवश्यक है, साधन आवश्यक है, सहयोग आवश्यक है और अवसर आवश्यक है। इन चारों चीजों में से एक भी कम पड़ेगी तो समझदार आदमी भी सफलता नहीं प्राप्त कर सकेगा, सफलता रुकी रह जाएगी। जीवन-निर्वाह के लिए भोजन, विश्राम, मल-विसर्जन और श्रम-उपार्जन, चारों की आवश्यकता होती है। ये चारों क्रियाएँ होंगी तभी हम जिन्दा रहेंगे। यदि इनमें से एक भी चीज कम पड़ जाएगी तो आदमी का जीवित रहना मुश्किल पड़ जाएगा। ठीक इसी प्रकार से आत्मिक जीवन का विकास करने के लिए, आत्मोत्कर्ष के लिए चारों का होना आवश्यक है, अन्यथा व्यक्ति-निर्माण का उद्देश्य पूरा न हो सकेगा।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य (अमृतवाणी)

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