शुक्रवार, 25 अगस्त 2017

👉 हमारा युग निर्माण सत्संकल्प (भाग 52)

🌹  संसार में सत्प्रवृत्तियों के पुण्य-प्रसार के लिए, अपने समय, प्रभाव, ज्ञान, पुरुषार्थ एवं धन का एक अंश नियमित रूप से लगाते रहेंगे।

🔴 परमार्थ परायण जीवन जीना है तो उसके नाम पर कुछ भी करने लगना उचित नहीं। परमार्थ के नाम पर अपनी शक्ति ऐसे कार्यों में लगानी चाहिए जिनमें उसकी सर्वाधिक सार्थकता हो। स्वयं अपने अंदर से लेकर बाहर समाज में सत्प्रवृत्तियाँ पैदा करना, बढ़ाना इस दृष्टि से सबसे अधिक उपयुक्त है। संसार में जितना कुछ सत्कार्य बन पड़ रहा है, उन सबके मूल में सत्प्रवृत्तियाँ ही काम करती हैं। लहलहाती हुई खेती तभी हो सकती है, जब बीज का अस्तित्व मौजूद हो। बीज के बिना पौधा कहाँ से उगेगा? भले या बुरे कार्य अनायास ही नहीं उपज पड़ते, उनके मूल में सद्विचारों और कुविचारों की जड़ जमी होती है।

🔵 समय पाकर बीज जिस प्रकार अंकुरित होता और फलता-फूलता है, उसी प्रकार सत्प्रवृत्तियाँ भी अगणित प्रकार के पुण्य-परमार्थों के रूप में विकसित एवं परिलक्षित होती हैं। जिस शुष्क हृदय में सद्भावनाओं के लिए, सद्विचारों के लिए कोई स्थान नहीं मिला, उसके द्वारा जीवन में कोई श्रेष्ठ कार्य बन पड़े, यह लगभग असंभव ही मानना चाहिए। जिन लोगों ने कोई सत्कर्म किए हैं, आदर्श का अनुकरण किया है, उनमें से प्रत्येक को उससे पूर्व अपनी पाशविक वृत्तियों पर नियंत्रण कर सकने योग्य सद्विचारों का लाभ किसी न किसी प्रकार मिल चुका होता है।

🔴 कुकर्मी और दुर्बुद्धिग्रस्त मनुष्यों के इस घृणित स्थिति में पड़े रहने की जिम्मेदारी उनकी उस भूल पर है, जिसके कारण वे सद्विचारों की आवश्यकता और उपयोगिता को समझने से वंचित रहे, जीवन के इस सर्वोपरि लाभ की उपेक्षा करते रहे, उसे व्यर्थ मानकर उससे बचते और कतराते रहे। मूलतः मनुष्य एक प्रकार का काला कुरूप लोहा मात्र है। सद्विचारों का पारस छूकर ही वह सोना बनता है। एक नगण्य तुच्छ प्राणी को मानवता का महान् गौरव दिला सकने की क्षमता केवल मात्र सद्विचारों में है। जिसे यह सौभाग्य नहीं मिल सका, वह बेचारा क्यों कर अपने जीवन-लक्ष्य को समझ सकेगा और क्यों कर उसके लिए कुछ प्रयत्न-पुरुषार्थ कर सकेगा?

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.72

http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v2.13

👉 वीरांगना स्पेशल (स्वयं की सुरक्षा)

👉 महिलाऐं व लड़कियाँ संवेदना रहित इस समाज में स्वयं की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित कर सकती है

1. एक नारी को तब क्या करना चाहिये जब वह देर रात में किसी उँची इमारत की लिफ़्ट में किसी अजनबी के साथ स्वयं को अकेला पाये?

विशेषज्ञ का कहना है: जब आप लिफ़्ट में प्रवेश करें और आपको 13 वीं मंज़िल पर जाना हो, तो अपनी मंज़िल तक के सभी बटनों को दबा दें! कोई भी व्यक्ति उस परिस्थिति में हमला नहीं कर सकता जब लिफ़्ट प्रत्येक मंजिल पर रुकती हो!

2. जब आप घर में अकेली हों और कोई अजनबी आप पर हमला करे तो क्या करें?
तुरन्त रसोईघर की ओर दौड़ जायें

विशेषज्ञ का कहना है: आप स्वयं ही जानती हैं कि रसोई में पिसी मिर्च या हल्दी कहाँ पर उपलब्ध है! और कहाँ पर चक्की व प्लेट रखे हैं! यह सभी आपकी सुरक्षा के औज़ार का कार्य कर सकते हैं! और भी नहीं तो प्लेट व बर्तनों को ज़ोर- जोर से फैंके भले ही टूटे! और चिल्लाना शुरु कर दो! स्मरण रखें कि शोरगुल ऐसे व्यक्तियों का सबसे बड़ा दुश्मन होता है! वह अपने आप को पकड़ा जाना कभी भी पसंद नहीं करेगा!

3. रात में आटो या टैक्सी से सफ़र करते समय!

विशेषज्ञ का कहना है: आटो या टैक्सी में बैठते समय उसका नं० नोट करके अपने पारिवारिक सदस्यों या मित्र को मोबाईल पर उस भाषा में विवरण से तुरन्त सूचित करें जिसको कि ड्राइवर जानता हो! मोबाइल पर यदि कोई बात नहीं हो पा रही हो या उत्तर न भी मिल रहा हो तो भी ऐसा ही प्रदर्शित करें कि आपकी बात हो रही है व गाड़ी का विवरण आपके परिवार/ मित्र को मिल चुका है! . इससे ड्राईवर को आभास होगा कि उसकी गाड़ी का विवरण कोई व्यक्ति जानता है और यदि कोई दुस्साहस किया गया तो वह अविलम्ब पकड़ में आ जायेगा! इस परिस्थिति में वह आपको सुरक्षित स्थिति में आपके घर पहुँचायेगा! जिस व्यक्ति से ख़तरा होने की आशंका थी अब वह आपकी सुरक्षा क्षात्र धान रखेगा!

4. यदि ड्राईवर गाड़ी को उस गली/रास्ते पर मोड़ दे जहाँ जाना न हो और आपको महशूस हो कि आगे ख़तरा हो सकता है - तो क्या करें?

विशेषज्ञ का कहना है कि आप अपने पर्स के हैंडल या अपने दुपट्टा/ चुनरी का प्रयोग उसकी गर्दन पर लपेट कर अपनी तरफ़ पीछे खींचती हैं तो सैकिण्डो में उस व्यक्ति का असहाय व निर्बल हो जायेगा! यदि आपके पास पर्स या दुपट्टा न भी हो तो भी आप न घबरायें! आप उसकी क़मीज़ के काल़र रो पीछे से पकड़ कर खींचेंगी तो शर्ट का जो बटन लगाया हुआा है वह भी वही काम करेगा और  आपको अपने बचाव का मौक़ा मिल जायेगा!

5. यदि रात में कोई आपका पीछा करता है!

विशेषज्ञ का कहना है: किसी अभी नज़दीकी खुली दुकान या घर में घुस कर उन्हें अपनी परेशानी बतायें! यदि रात होने के कारण बन्द हों तो नज़दीक में एटीएम हो तो एटीएम बाक्स में घुस जायें क्योंकि वहाँ पर सीसीटीवी कैमरा सगे होते हैं! पहचान उजागर होने के भय से किसी की भी आप पर वार करने की हिम्मत  नहीं होगी!

आख़िरकार मानसिक रुप से ही जागरुक होना ही आपका आपके पास रहने वाला सबसे बड़ा हथियार सिद्ध होगा!

कृपया समस्त नारी शक्ति जिसका आपको ख़्याल है उन्हें न केवल बतायें बल्कि उन्हें जागरुक भी कीजिए! अपनी नारी शक्ति की सुरक्षा के लिये ऐसा करना! न केवल हम सभी का नैतिक उत्तरदायित्व है बल्कि कर्त्तव्य भी है! 

प्रिय मित्रों इससे समस्त नारी शक्ति -अपनी माताश्री, बहन, पत्नी व महिला मित्रों को अवगत करावें!


आप सभी से विनम्र निवेदन की इस संदेश को महिला शक्ति की जानकारी में अवश्य लायें यह समस्त नारी शक्ति की सुरक्षा के लिये सहायक सिद्ध होगा!

👉 मनस्वी लोक सेवक चाहिए (भाग 2)

🔵 यों कर्मठ व्यक्तियों की हर क्षेत्र में आवश्यकता रहती है पर सामाजिक क्रान्ति के गृह-युद्ध में पग-पग पर मोर्चा जमाये अड़े रहने वाले सैनिकों जैसी क्रान्तिकारी भावनाएं जिनके अन्दर विद्यमान हों ऐसे लोगों का अस्तित्व हो आशा का केन्द्र बन सकता हैं। पिछले दिनों स्वाधीनता संग्राम ही राजनैतिक क्रान्ति हो कर चुकी है। उसमें मातृभूमि के लिये एक से एक बढ़ कर उत्सर्ग करने वाले, अहिंसक एवं हिंसात्मक संघर्ष में भाग लेने वाले अगणित क्रान्तिकारियों का तप त्यागपूर्ण व्यक्तित्व ही सफलता का आधार बना था। ठीक वैसी ही आवश्यकता इस सामाजिक क्रान्ति के लिये भी अभीष्ट होगी।

🔴 एक माता की गोद से बच्चा छूट कर नदी की प्रबल धारा में बहने लगा। माता अपने शिशु की प्राण रक्षा के लिये सहायता को चीत्कार कर रही हैं। ‘होशियार’ लोग मौखिक सहानुभूति तो दिखा रहे थे पर करने को कुछ भी तैयार न थे। उसी समय एक नव-युवक उफनती नदी में अपने प्राण हथेली पर रख कर कूदा और बहते बच्चे को पकड़ कर किनारे पर ले आया। इस युवक का नाम था अब्राहम लिंकन जो अपनी ऐसी ही महानताओं के कारण अमेरिका का प्रेसीडेण्ट हुआ।

🔵 आज विवाहों का अपव्यय एक ऐसी उफनती नदी बना हुआ है जिसमें सारे समाज की बालिकाएं बही चली जा रही हैं और प्रत्येक अभिभावक उनको बचाने के लिए चीत्कार कर रहा है। यह दृश्य हम सब देखते सुनते तो हैं। मौखिक विरोध और दुख भी प्रकट करते हैं पर करने की बारी आती है तो ‘अक्लमन्द’ लोगों की तरह पल्ला झाड़ कर अलग खड़े हो जाते हैं। ऐसे कुसमय ये स्वर्गीय अब्राहम की आत्मा देखती है कि उसके जैसे उदार और साहसी लोगों से भारत की भूमि रहित क्यों हो गई?

🔴 कोई प्राण हथेली पर लेकर नदी में कूदने और इन बच्चियों को बचाने के लिए क्यों तैयार नहीं होता? आत्मा के अमर और शरीर को नश्वर मानने वाले, गीता-पाठी लोगों में से मोह और लोभ को छोड़ कर धर्म के लिए कुछ साहस कर सकने वाले लोग क्यों कहीं दृष्टिगोचर नहीं होते? इसका उत्तर युग की आत्मा हम से माँगती हैं और हम क्लीव, निर्जीव की तरह सिर नीचा किये मुरझाये- से खड़े हैं। इस धिक्कार योग्य स्थिति में पड़ी हुई अपनी पीढ़ी की मनोदशा पर आँसू ही बहाये जा सकते हैं।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🌹 अखण्ड ज्योति मार्च1964 पृष्ठ 51
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1964/March/v1.51

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