शुक्रवार, 30 जून 2023

👉 संघर्ष की अनेक धाराएँ

आपको अपने पैसे से हर काम करने की छूट नहीं मिली है। सिनेमा वालों के विरुद्ध हमें पिकेटिंग करना पड़ेगा और धरना देना पड़ेगा, उनके कैमरों के सामने लेटना पड़ेगा और उनके काम को विफल करने के  लिए यदि मौका हो तो हमें जो कुछ भी करना पड़ेगा वो हम करेंगे। संगीत, गायक और दूसरे लोग जो इस तरह के गीत गाते हैं जिससे फूहड़पन पैदा होता है उनके विरुद्ध सत्याग्रह पैदा करना पड़ेगा। 
इस तरह के साहित्य लिखने वाले जिन्होंने समाज को जलील किया-बदनाम किया है, उनके दरवाजे पर भूख हड़ताल करके किसी को प्राण भी देना पड़े तो देना ही चाहिए। उनके कृतियों के प्रसंग कि इन्होंने लोगों को क्या क्या कहा और क्या-क्या समझाया, उसके  कोटेशन उद्घृत करके सारे समाज में बाँटने पड़ेंगे और बताना पड़ेगा कि ये लोग ऐसे हैं जिन्होंने पैसे के लिए, अपनी कमाई के लिए-लोभ के लिए समाज को कितनी हानि पहुँचाई और कितने लोगों को खराब किया। इस तरीके से इनके भंडाफोड़ करने वाली बातों के विरुद्घ में हमें खड़ा होना ही चाहिए। 
गुंडातत्व इसलिए जिंदा हैं कि वो समझते हैं कि हमारा कोई मुकाबला करने वाला नहीं है और हम चाहे जो काम कर करते हैं। इन गुंडा तत्वों को जब ये मालूम पड़ेगा कि समाज में से वो तत्व उठकर खड़े हो गये हैं जो हमारा मुकाबला करेंगे और हमारे गलत काम और उच्छृंखलता के विरुद्ध लोहा लेंगे, इस तरह की उनको जब जानकारी होगी तो उनके हौसले पस्त हो जायेंगे। गुंडा गर्दी आजकल इस लिए हावी होती जा रही है कि एक आदमी का नुकसान होता है तो दूसरा आदमी उसके बारे में आवाज नहीं उठाता। ये कहता है कि हम क्यों उस मुसीबत में फँसें, इससे तो और मुसीबतें आयेंगी। 
लेकिन जिन लोगों ने अपना सिर हथेली पर रख लिया है, जिन्होंने मुसीबतों को ही आमंत्रण दिया है, जो मुसीबत के लिए ही उठकर खड़े हो गये हैं और जिन्होंने अपना जीवन और जान को ऐसी चुनौतियाँ स्वीकार करने के लिए ही समर्पित कर दिया है, ऐसी लोकसेना उठकर खड़ी हो जाये तो बात बन जाये। तब वे लोग जो  अपने आप को अकेला अनुभव करते हैं, जो ये ख्याल करते हैं कि हम अकेले क्या कर सकते हैं, हमको कुचल दिया जायेगा और हमारे विरोधी बहुत हो जायेंगे, गुंडे हमको तंग करेंगे इसलिए वे मन मारकर चुप बैठ  जाते हैं; उनके हौसले चौगुने और सौैगुने हो जायेंगे। तब अनीति का मुकाबला करने के लिए न केवल लोकवाहिनी सेना बल्कि असंख्य लोग उनके साथ में उठकर खड़े हो जायेंगे और एक ऐसी क्रांति उत्पन्न होगी जिसमें व्यक्ति-व्यक्ति के बीच, समाज-समाज के बीच, वर्ग-वर्ग के बीच और अवांछनीय-वांछनीय तत्वों के बीच जो विग्रह की आग सुलग रही है, उस आग को या तो इधर कर दिया जायेगा या उधर कर दिया जायेगा। 

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 जीवन के उतार-चढावों पर उद्विग्न न हों। (भाग 4)

इस प्रकार जिस प्रकार का विश्वास और जिस प्रकार के विचार लेकर मनुष्य अपने भविष्य के प्रति उपासना करता है, उसी प्रकार के तत्त्व उसकी जीवन परिधि में सजग और सक्रिय हो उठते हैं। अतएव मनुष्य को सदैव ही कल्याणकारी चिन्तन ही करना चाहिए। निराशापूर्ण चिन्तन जीवन के उत्थान और विश्वास के लिए अच्छा नहीं होता।

दुःख मनाने से दुःख के कारणों का निवारण नहीं हो सकता। दुःख के कारण उद्विग्न और मलीन रहने के कारण मन की शक्तियाँ नष्ट होती हैं। अधोगत व्यक्ति के भौतिक साधन प्रायः नगण्य हो जाते हैं। उस स्थिति में उसके पास मनोबल के सिवाय अन्य कोई साधन नहीं रह जाता। मनोबल का साधन कुछ कम बड़ा साधन नहीं होता। मनोबल के बने रहने पर मनुष्य में प्रसन्नता, विश्वास और उत्साह बना रहता है। इन गुणों को साथ लेकर जब किसी स्थान पर व्यवहार किया जाता है तो दूसरों पर उसके धैर्य सहिष्णुता और साहस का प्रभाव पड़ता है। लोग उसे एक असामान्य व्यक्ति मानने लगते हैं। उन्हें विश्वास रहता है कि इसको दिया हुआ सहयोग सार्थक होगा। यह परिस्थितियों से हार न मानने वाला दृढ़ पुरुष है। इस प्रतिक्रिया से लोग उस व्यक्ति की ओर स्वतः आकर्षित हो उठते हैं—ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार उपासक की ओर परमात्मा की करुणा आकर्षित हो उठती है।

विगत वैभव का सोच करना किसी प्रकार भी उचित नहीं। क्योंकि अतीत का चिन्तन न तो वर्तमान में कोई सहायता करता है और न भविष्य का निर्माण। बल्कि वह उस व्यामोह को और भी सघन तथा दृढ़ बना देता है, जिसके अधीन मनुष्य विगत वैभव का सोच किया करते हैं। उत्थान अथवा अवनति के माया जाल से बचने के लिए आवश्यक है कि उनके प्रति व्यामोह के अंधकार से बचे रहा जाय। इस सत्य में तर्क की जरा भी गुँजाइश नहीं है कि संसार परिवर्तन के चक्र से बँधा हुआ घूम रहा है। यहाँ पर कोई भी सदैव एक जैसी स्थिति के प्रति आश्वस्त रहने का अधिकार नहीं रखता। उसे परिवर्तन का अटूट नियम सहन ही करना पड़ेगा। यह सोचकर इस सत्य को स्वीकार करना ही होगा कि पहले गरीब थे, फिर अमीरी आई और अब उसी चक्र के अनुसार पुनः गरीबी आ गई है। पुनरपि यह निश्चित है कि यदि पूर्ववत पुरुषार्थ का प्रमाण दिया जाए तो संपन्नता निश्चित है। इस सहज संयोग में रहते हुए सम्पन्नता, विपन्नता से विचलित होना किसी प्रकार भी बुद्धिसंगत नहीं है।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी 1970 पृष्ठ 57


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👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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