शिवा का प्रश्न- ‘परमात्मा की सबसे उपासना कौन सी है, मुझे बहुत प्यारा लगा। यह बात सबके जानने की है। जो दूसरों की भलाई में निरत रहता है, वह भगवान को ही भक्ति करता है। परोपकार से बढ़कर और कोई उपासना नहीं वह सरल भी है,उत्तम भी है और सुखदायक भी। परोपकार करने में आत्मा की प्रसन्नता इतनी बढ़ जाती है कि रोमांच हो आता तो फिर उनका फल तो और भी स्वर्गीय सुखों से भरा हुआ होगा। भलाई साक्षात परमात्मा का निराकार स्वरूप है।
लोग यह मानते कि शिवाजी मेरी भक्ति करता है, इसलिये वह मुझे बहुत प्रिय है। मुझे सचमुच शिवाजी अच्छा लगता है, किन्तु शरीर से नहीं काम से। उसके गुण और उसका चरित्र बहुत ऊँचे दर्जे के है। उसने लोगों की भलाई के लिये अपने जीवन को सौंपा था, मैंने उसे एक रास्ता बता दिया। अब वह निष्काम भावना से सब काम करता है, उस काम को नहीं करता, जिससे मानवता का गर्हित होता हो, इसलिये वह भगवान का सच्चा भक्त है। मैं चाहता हूँ कि भारतवर्ष के सब बच्चे मेरे प्रिय शिष्य शिवा की तरह बन जाये। भलाई के रास्ते में प्रिय-अप्रिय जो कुछ भी आये, वीरतापूर्ण सहन करने वाले बन जाये। उससे भगवान की यह दुनिया बहुत अच्छी बनेगी। भगवान का प्यार और आशीर्वाद भी मिलेगा।
कोई कल्प-वृक्ष है तो उसका बीज परोपकार। परोपकारी सबका हृदय जीत लेता है। सभी का सहयोग उसे मिलता है। शिवा ने थोड़ी ताकत से ज्यादा विजय पाई है, क्योंकि उसे भगवान का आशीर्वाद मिला है और मनुष्यों का प्यार व सहयोग। यदि संसार के सारे मनुष्य परोपकार में तत्पर हो जायें, तो संसार कितना सुन्दर और सुखपूर्वक बन जाये।
समर्थ गुरु रामदास
📖 अखण्ड ज्योति 1969 जनवरी पृष्ठ 1
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