यदि हम दूसरे तथाकथित समाजसेवियों की तरह बाहरी दौड़-धूप तो बहुत करें, पर आत्म-चिंतन, आत्म-सुधार, आत्म-निर्माण और आत्म-विकास की आवश्यकता पूरी न करें तो हमारी सामर्थ्य स्वल्प रहेगी और कुछ कहने लायक परिणाम न निकलेगा। लोक-निर्माण व्यक्ति पर अवलम्बित है और व्यक्ति निर्माण का पहला कदम हमें अपने निर्माणों के रूप में ही उठाना होगा।
युग परिवर्तन की अग्रिम पंक्ति में जिन्हें घसीटा या धकेला गया है उन्हें अपने को आत्मा का, परमात्मा का प्रिय भक्त ही अनुभव करना चाहिए और शान्त चित्त से धैर्यपूर्वक उस पथ पर चलने की सुनिश्चित तैयारी करनी चाहिए। यदि आत्मा की पुकार अनसुनी करके वे लोभ-मोह के पुराने ढर्रे पर चलते रहें तो आत्म-धिक्कार की इतनी विकट मार पड़ेगी कि झंझट से बच निकलने और लोभ-मोह को न छोड़ने की चतुरता बहुत मँहगी पड़ेगी।
अपनी यह आस्था चट्टान की तरह अडिग होनी चाहिए कि युग बदल रहा है, पुराने सड़े-गले मूल्याँकन नष्ट होने जा रहे हैं। दुनिया आज जिस लोभ-मोह और स्वार्थ, अनाचार से सर्वनाशी पथ पर दौड़ रही है, उसे वापिस लौटना पड़ेगा। अंध-परम्पराओं और मूढ़ मान्यताओं का अंत होकर रहेगा। अगले दिनों न्याय, सत्य और विवेक की ही विजय-वैजयन्ती फहरायेगी।
युग परिवर्तन की अग्रिम पंक्ति में जिन्हें घसीटा या धकेला गया है उन्हें अपने को आत्मा का, परमात्मा का प्रिय भक्त ही अनुभव करना चाहिए और शान्त चित्त से धैर्यपूर्वक उस पथ पर चलने की सुनिश्चित तैयारी करनी चाहिए। यदि आत्मा की पुकार अनसुनी करके वे लोभ-मोह के पुराने ढर्रे पर चलते रहें तो आत्म-धिक्कार की इतनी विकट मार पड़ेगी कि झंझट से बच निकलने और लोभ-मोह को न छोड़ने की चतुरता बहुत मँहगी पड़ेगी।
अपनी यह आस्था चट्टान की तरह अडिग होनी चाहिए कि युग बदल रहा है, पुराने सड़े-गले मूल्याँकन नष्ट होने जा रहे हैं। दुनिया आज जिस लोभ-मोह और स्वार्थ, अनाचार से सर्वनाशी पथ पर दौड़ रही है, उसे वापिस लौटना पड़ेगा। अंध-परम्पराओं और मूढ़ मान्यताओं का अंत होकर रहेगा। अगले दिनों न्याय, सत्य और विवेक की ही विजय-वैजयन्ती फहरायेगी।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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