🔶 शिवांगी शहर के प्रतिष्ठित विद्यालय में कक्षा तृतीय की छात्रा है। वह भी अन्य बच्चियों की तरह चंचल, हंसमुख शरारती बच्ची है। दशहरे के बाद विद्यालय खुलने और नये गणित के टीचर आने के बाद से सबके लिये सबकुछ पहले की तरह सामान्य है, किन्तु शिवांगी के लिये उसका प्यारा स्कूल एक भयावह जगह बन गई है।
🔷 आज करीब एक माह से वो मासूम एक नारकीय कष्ट सह रही थी, जिस दिन से उसके गणित के सर ने खेल के लिये निर्धारित पीरियड में अकेले बुलाया। उसे गणित पढ़ाने पर पढ़ाने के बजाये बच्ची को एक नर्क से परिचय करा दिया साथ ही धमकी दी की किसी से कहा तो फेल कर स्कूल से निकाल देंगे, मासूम के लिये यह धमकी काफी थी। आज फिर वही हुआ वह रोती हुई बस में चढ़ी आश्चर्य किसी ने उसके रोने का कारण नहीं पूछा।
🔶 बस से उतर घर आने पर भी किसी ने उसके उदासी का कारण नही पूछा। पड़ोस वाले भैया आये थे जिद करके शिवांगी के तीन साल के भाई को उसकी मर्जी के खिलाफ गोदी में उठा बाहर ले जा रहे थे, बच्चे ने उनकी मनमानी के विरोध में हाथ में रखी पेंसिल उनकी आँख मे डाल दी। परिणाम जो हुआ अच्छा नहीं था सब उन भैया को लेकर अस्पताल भागे माँ और पिता दोनो ने भाई एक एक थप्पड़ मार कर उसे रोता छोड़ उन भैया के परिवार के साथ हो लिये। शिवांगी शायद अपने भाई के दर्द को समझ गई उसने उसे अपने से लिपटा लिया नन्ही दीदी कछ ही पल के लिये माँ बन गई।
🔷 आज सबेरे फिर स्कूल है, गणित के पिरियड में सर ने शिवांगी को फिर बुलाया है गणित समझाने। आज खाने की छुट्टी में शिवांगी ने टिफिन खाने से ज्यादा जरूरी समझा अपनी दोनों पेंसिल की नोक तेज धार करना। खेल के पीरियड में जब गणित के सर ने बुलाया वह गई पर आज की नन्ही शिवांगी और दिनों की तरह सहमी हुई नही थी आज वह आत्भविश्वास से भरी हुई थी, हाँ वह अपनी पेंसिल साथ लेना नही भूली। कुछ ही देर में गेम्सरूम से एक भयानक दिल दहलाने वाली चीख सुनाई दी, सारे शिक्षक गेम्स रूम की तरफ भागे आश्चर्य आज सबने चीख सुनी इतने दिन बच्ची की चीख किसी ने नही सुनी थी खैर।
🔶 गेम्स रूम का दृष्य चीख से भी भयावह था, गणित के सर अर्धनग्न अवस्था में अपने दोनों हाथ अपनी आँखों पर रखे चीख रहे थे जिनसे तेजी से खून बह रहा था, और उनके ठीक सामने नन्ही शिवांगी अपने फटे हुये यूनिफाॅर्म के साथ साक्षात शिव की अर्धांगिनी बन आँखों से आंसू की जगह अंगारे बरसाती अपनी पेंसिल रूपी रक्त से भरी त्रिशूल लिये गर्व से खड़ी थी।
🔷 सर गिरफ्तार हो गये अदालत मे किसी सबूत की जरूरत नहीं पड़ी, जज नया क्या न्याय करते। नन्ही शिवांगी स्वयं साक्षी, साक्ष्य और न्याय करता बन अदालत में खड़ी थी, उसने तो न्याय कर ही दिया था जज ने और दस साल की सजा सुना दी।
🔶 अब शिवांगी निश्चिंत होकर स्कूल जाती है पर साथ में दो अतिरिक्त तेज नोक वाली पेंसिल रखना नही भूूलती
🔷 हाँ उस विद्यालय की सभी छात्राओं की मायें अपनी बेटियों के पेंसिल बाॅक्स में तेज धार की हुई दो पेंसिल याद से रख देती है इस सीख के साथ कि यह सिर्फ पेंसिल नहीं वक्त आने पर तुम्हें दुर्गा बना खुद त्रिशूल बन जायेंगी।
🔷 आज करीब एक माह से वो मासूम एक नारकीय कष्ट सह रही थी, जिस दिन से उसके गणित के सर ने खेल के लिये निर्धारित पीरियड में अकेले बुलाया। उसे गणित पढ़ाने पर पढ़ाने के बजाये बच्ची को एक नर्क से परिचय करा दिया साथ ही धमकी दी की किसी से कहा तो फेल कर स्कूल से निकाल देंगे, मासूम के लिये यह धमकी काफी थी। आज फिर वही हुआ वह रोती हुई बस में चढ़ी आश्चर्य किसी ने उसके रोने का कारण नहीं पूछा।
🔶 बस से उतर घर आने पर भी किसी ने उसके उदासी का कारण नही पूछा। पड़ोस वाले भैया आये थे जिद करके शिवांगी के तीन साल के भाई को उसकी मर्जी के खिलाफ गोदी में उठा बाहर ले जा रहे थे, बच्चे ने उनकी मनमानी के विरोध में हाथ में रखी पेंसिल उनकी आँख मे डाल दी। परिणाम जो हुआ अच्छा नहीं था सब उन भैया को लेकर अस्पताल भागे माँ और पिता दोनो ने भाई एक एक थप्पड़ मार कर उसे रोता छोड़ उन भैया के परिवार के साथ हो लिये। शिवांगी शायद अपने भाई के दर्द को समझ गई उसने उसे अपने से लिपटा लिया नन्ही दीदी कछ ही पल के लिये माँ बन गई।
🔷 आज सबेरे फिर स्कूल है, गणित के पिरियड में सर ने शिवांगी को फिर बुलाया है गणित समझाने। आज खाने की छुट्टी में शिवांगी ने टिफिन खाने से ज्यादा जरूरी समझा अपनी दोनों पेंसिल की नोक तेज धार करना। खेल के पीरियड में जब गणित के सर ने बुलाया वह गई पर आज की नन्ही शिवांगी और दिनों की तरह सहमी हुई नही थी आज वह आत्भविश्वास से भरी हुई थी, हाँ वह अपनी पेंसिल साथ लेना नही भूली। कुछ ही देर में गेम्सरूम से एक भयानक दिल दहलाने वाली चीख सुनाई दी, सारे शिक्षक गेम्स रूम की तरफ भागे आश्चर्य आज सबने चीख सुनी इतने दिन बच्ची की चीख किसी ने नही सुनी थी खैर।
🔶 गेम्स रूम का दृष्य चीख से भी भयावह था, गणित के सर अर्धनग्न अवस्था में अपने दोनों हाथ अपनी आँखों पर रखे चीख रहे थे जिनसे तेजी से खून बह रहा था, और उनके ठीक सामने नन्ही शिवांगी अपने फटे हुये यूनिफाॅर्म के साथ साक्षात शिव की अर्धांगिनी बन आँखों से आंसू की जगह अंगारे बरसाती अपनी पेंसिल रूपी रक्त से भरी त्रिशूल लिये गर्व से खड़ी थी।
🔷 सर गिरफ्तार हो गये अदालत मे किसी सबूत की जरूरत नहीं पड़ी, जज नया क्या न्याय करते। नन्ही शिवांगी स्वयं साक्षी, साक्ष्य और न्याय करता बन अदालत में खड़ी थी, उसने तो न्याय कर ही दिया था जज ने और दस साल की सजा सुना दी।
🔶 अब शिवांगी निश्चिंत होकर स्कूल जाती है पर साथ में दो अतिरिक्त तेज नोक वाली पेंसिल रखना नही भूूलती
🔷 हाँ उस विद्यालय की सभी छात्राओं की मायें अपनी बेटियों के पेंसिल बाॅक्स में तेज धार की हुई दो पेंसिल याद से रख देती है इस सीख के साथ कि यह सिर्फ पेंसिल नहीं वक्त आने पर तुम्हें दुर्गा बना खुद त्रिशूल बन जायेंगी।