शुक्रवार, 1 जून 2018
👉 गुरु समुद्र हो ओर शिष्य पानी
सद्गुरु ओर शिष्य का रिश्ता कुछ ऎसा हो!!
🔶 शिष्य का पावन चरित्र ही सद्गुरु का अभिमान हो, होता है जैसे सूई का धागे से, वैसे ही दोनों का रिश्ता महान हो!!
सद्गुरु ओर शिष्य का रिश्ता....
🔷 सद्गुरु का आदेश के पहले ही शिष्य उज्जवल भविष्य के मार्ग पर आगे बढ़ जाए... जलता है जैसे दिये '' बाती ओर तेल के साथ, वैसे ही.. दोनों का मिलना एक मिशाल बन जाए..!!
सद्गुरु ओर शिष्य का रिश्ता......
🔶 गुरु तो देवो के देव स्वंय महादेव हैं..पर शिष्य को बना वीरभद्र अपना... फेले हुए अनाचार को मिटाकर पाप - पतन का नाश करे जिससे आध्यात्मिक भूमि निर्माण हो..!!
सद्गुरु ओर शिष्य का रिश्ता.......
🔷 शिष्यतत्व का समर्पण इतना गहरा हो कि, जैसे रहती है परछाई ...इंसान के साथ... वैसे ही जिंदगी के हर मोड़ पर सद्गुरु हो अपने शिष्य के साथ...!!
सद्गुरु ओर शिष्य का रिश्ता......
🔶 सद्गुरु का चिंतन ही शिष्य का चरित्र हो, शिष्य का परिष्कृत जीवन ही '' सद्गुरु की पहचान हो, पहचान की सुगंध ही युगशक्ति का आवाहन हो...!!
सद्गुरु ओर शिष्य का रिश्ता......
🔷 शिष्य ओर गुरु की प्यार की डोर इतनी मजबूत हो... जैसी लोभ मोह की लिप्सओ रूपी जंजीर भी ना हो..ओर सद्गुरु का ज्ञान भंडार ही शिष्य का अध्ययन हो....!!
सद्गुरु ओर शिष्य का रिश्ता.......
🔶 हो लाख परेशानियां मे शिष्य चाहे... गुरु से मन की बात कहने मे शिष्य चाहे कितना भी मगरूर हू... फिर भी अपने शिष्य की हर जरूरत का सद्गुरु अहसास हो....!!
सद्गुरु ओर शिष्य का रिश्ता..........
🔷 श्रद्धा समर्पण ओर लक्ष्य प्राप्ति इतनी स्पष्ट हो, कि स्वंय महाकाल का आदेश हो... ओर शिष्य के हाथों ही इक्कीसवी सदी उज्जवल भविष्य हो......!!
🔶 सद्गुरु ओर शिष्य का रिश्ता कुछ ऎसा हो....सद्गुरु ओर शिष्य का रिश्ता कुछ ऎसा हो...
🔷 हम सभी का रिश्ता भी कुछ ऎसा हो......अपने सद्गुरु से... लेखनी जो भी लिखेगी आपकी ही योजना....
🔶 शिष्य का पावन चरित्र ही सद्गुरु का अभिमान हो, होता है जैसे सूई का धागे से, वैसे ही दोनों का रिश्ता महान हो!!
सद्गुरु ओर शिष्य का रिश्ता....
🔷 सद्गुरु का आदेश के पहले ही शिष्य उज्जवल भविष्य के मार्ग पर आगे बढ़ जाए... जलता है जैसे दिये '' बाती ओर तेल के साथ, वैसे ही.. दोनों का मिलना एक मिशाल बन जाए..!!
सद्गुरु ओर शिष्य का रिश्ता......
🔶 गुरु तो देवो के देव स्वंय महादेव हैं..पर शिष्य को बना वीरभद्र अपना... फेले हुए अनाचार को मिटाकर पाप - पतन का नाश करे जिससे आध्यात्मिक भूमि निर्माण हो..!!
सद्गुरु ओर शिष्य का रिश्ता.......
🔷 शिष्यतत्व का समर्पण इतना गहरा हो कि, जैसे रहती है परछाई ...इंसान के साथ... वैसे ही जिंदगी के हर मोड़ पर सद्गुरु हो अपने शिष्य के साथ...!!
सद्गुरु ओर शिष्य का रिश्ता......
🔶 सद्गुरु का चिंतन ही शिष्य का चरित्र हो, शिष्य का परिष्कृत जीवन ही '' सद्गुरु की पहचान हो, पहचान की सुगंध ही युगशक्ति का आवाहन हो...!!
सद्गुरु ओर शिष्य का रिश्ता......
🔷 शिष्य ओर गुरु की प्यार की डोर इतनी मजबूत हो... जैसी लोभ मोह की लिप्सओ रूपी जंजीर भी ना हो..ओर सद्गुरु का ज्ञान भंडार ही शिष्य का अध्ययन हो....!!
सद्गुरु ओर शिष्य का रिश्ता.......
🔶 हो लाख परेशानियां मे शिष्य चाहे... गुरु से मन की बात कहने मे शिष्य चाहे कितना भी मगरूर हू... फिर भी अपने शिष्य की हर जरूरत का सद्गुरु अहसास हो....!!
सद्गुरु ओर शिष्य का रिश्ता..........
🔷 श्रद्धा समर्पण ओर लक्ष्य प्राप्ति इतनी स्पष्ट हो, कि स्वंय महाकाल का आदेश हो... ओर शिष्य के हाथों ही इक्कीसवी सदी उज्जवल भविष्य हो......!!
🔶 सद्गुरु ओर शिष्य का रिश्ता कुछ ऎसा हो....सद्गुरु ओर शिष्य का रिश्ता कुछ ऎसा हो...
🔷 हम सभी का रिश्ता भी कुछ ऎसा हो......अपने सद्गुरु से... लेखनी जो भी लिखेगी आपकी ही योजना....
👉 भाग्यवान और अभागे
🔶 कौन अभागा है और कौन भाग्यवान् है? इस की एक कसौटी मैं तुम्हें बताये देता हूँ। जो आदमी क्रियाशील है, उत्साही है, आशावान् है वह भाग्यवान है। भाग्य लक्ष्मी उसके घर रास्ता पूछती-पूछती खुद पहुँच जायेगी। सुस्ती, निद्रा, आलस्य प्रमोद, भूल जाना, काम को टालना, यह लक्षण जिनमें हैं समझ लो कि वह अभागे हैं उनके भाग्य की नौका अब तक डूबने ही वाली है। याद रखो आलस्य में दरिद्रता का और परिश्रम में लक्ष्मी का निवास है।
🔷 जिन्हें काम करने से प्रेम है वे सचमुच अमीर हैं। और निठल्ले? वे तो हाथ पाँव वाले मोहताज हैं। पैसा आज है कल चला जायेगा परन्तु क्रियाशीलता वह पारस है जो हर मौके पर लोहे को सोना बना देगी। धन्य है वे मनुष्य जिन्हें काम करना प्रिय है, जो कर्त्तव्य में निरत रहकर ही आनन्द का अनुभव करते हैं। उत्साही पुरुष असफलता से विचलित नहीं होता। हाथी के शरीर में जब तीर घुसते हैं तो वह पीछे नहीं हटता वरन् और अधिक दृढ़ता के साथ अपने कदम जमा जमा कर चलता है। भाग्य साथ न दे और असफल होना पड़े तो इसमें कुछ भी लज्जा की बात नहीं है। शर्म की बात यह है कि मनुष्य अपने कर्त्तव्य की अवहेलना करे और आलस्य में बैठा रहे। अखण्ड उत्साह-बस, शक्ति का यही मूल स्रोत है। जिसमें उत्साह नहीं वह तो चलता पुतला मात्र है।
✍🏻 ऋषि तिरुवल्लुवर
📖 अखण्ड-ज्योति अक्टूबर 1941 पृष्ठ 13
🔷 जिन्हें काम करने से प्रेम है वे सचमुच अमीर हैं। और निठल्ले? वे तो हाथ पाँव वाले मोहताज हैं। पैसा आज है कल चला जायेगा परन्तु क्रियाशीलता वह पारस है जो हर मौके पर लोहे को सोना बना देगी। धन्य है वे मनुष्य जिन्हें काम करना प्रिय है, जो कर्त्तव्य में निरत रहकर ही आनन्द का अनुभव करते हैं। उत्साही पुरुष असफलता से विचलित नहीं होता। हाथी के शरीर में जब तीर घुसते हैं तो वह पीछे नहीं हटता वरन् और अधिक दृढ़ता के साथ अपने कदम जमा जमा कर चलता है। भाग्य साथ न दे और असफल होना पड़े तो इसमें कुछ भी लज्जा की बात नहीं है। शर्म की बात यह है कि मनुष्य अपने कर्त्तव्य की अवहेलना करे और आलस्य में बैठा रहे। अखण्ड उत्साह-बस, शक्ति का यही मूल स्रोत है। जिसमें उत्साह नहीं वह तो चलता पुतला मात्र है।
✍🏻 ऋषि तिरुवल्लुवर
📖 अखण्ड-ज्योति अक्टूबर 1941 पृष्ठ 13
👉 भारतीय संस्कृति के विनाश का संकट (भाग 3)
🔶 हमारी संस्कृति के लिए विदेशियों द्वारा जहां ईसाइयत के प्रवार का खतरा है, उससे कम खतरा अपने स्वयं के पश्चिमी अनुकरण के प्रयास का भी नहीं है। हम लोग अपने रहन-सहन, जीवन-पद्धति, विचारों की प्रेरणा के लिए पश्चिम की ओर देखते हैं। उनका अनुकरण करते हैं। जहां तक अपनी संस्कृति का सवाल है हम उसे भूलते जा रहे हैं। आज हमारी बोली भाषा वस्त्र, रहने का ढंग विदेशी बनता जा रहा है।
🔷 स्वच्छ और सादा ढीले वस्त्र जो हमारी भौगोलिक स्वास्थ्य सम्बन्धी परिस्थितियों के अनुकूल थे उनकी जगह पश्चिम का अनुकरण करके भारी गर्मी में भी कोट पेन्ट पहनते हैं। आज का शिक्षित समाज ‘वस्त्रों की दृष्टि से पूरा पश्चिमी बन गया है। धोती-कुर्ता पहनने में बहुत से लोगों को शर्म और संकोच महसूस होता है। पढ़े-लिखे लोगों में अंग्रेजी बोलना एक फैशन बन गया है। हिन्दी, संस्कृत या अन्य देशी भाषा बोलने में मानो अपना छोटापन मालूम होता है। दिवाली आदि पर्व त्यौहारों पर, किन्हीं सांस्कृतिक मेलों पर, हममें वह उत्साह नहीं रहा, लेकिन ‘फर्स्ट अप्रैल फूल’ ‘बड़ा दिन’ जैसे पश्चिमी त्यौहार मनाने में हम अपना बड़प्पन समझते हैं।
🔶 एक समय था जब विश्व के विचारक, साहित्यकार भारत से प्रेरणा और मार्ग दर्शन प्राप्त करते थे। इसे अपना आदि गुरु मानते थे। इसे सभी विदेशी विद्वानों ने स्वीकार किया है। लेकिन आज हमारे देश में इससे विपरीत हो रहा है। आज हम साहित्यिक विचार साधना के क्षेत्र में पश्चिम का अनुकरण करते हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि हमें वहां के साहित्य का अध्ययन नहीं करना चाहिए, यह तो किसी भी विचारशील व्यक्ति के लिए आवश्यक है। किन्तु अपने मौलिक सांस्कृतिक तथ्यों, प्रेरणाओं को भुलाकर पश्चिम का अन्धानुकरण करना हमारी संस्कृति के लिए बड़ा खतरा है। इससे वह कमजोर होती है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 भारतीय संस्कृति की रक्षा कीजिए पृष्ठ 18
🔷 स्वच्छ और सादा ढीले वस्त्र जो हमारी भौगोलिक स्वास्थ्य सम्बन्धी परिस्थितियों के अनुकूल थे उनकी जगह पश्चिम का अनुकरण करके भारी गर्मी में भी कोट पेन्ट पहनते हैं। आज का शिक्षित समाज ‘वस्त्रों की दृष्टि से पूरा पश्चिमी बन गया है। धोती-कुर्ता पहनने में बहुत से लोगों को शर्म और संकोच महसूस होता है। पढ़े-लिखे लोगों में अंग्रेजी बोलना एक फैशन बन गया है। हिन्दी, संस्कृत या अन्य देशी भाषा बोलने में मानो अपना छोटापन मालूम होता है। दिवाली आदि पर्व त्यौहारों पर, किन्हीं सांस्कृतिक मेलों पर, हममें वह उत्साह नहीं रहा, लेकिन ‘फर्स्ट अप्रैल फूल’ ‘बड़ा दिन’ जैसे पश्चिमी त्यौहार मनाने में हम अपना बड़प्पन समझते हैं।
🔶 एक समय था जब विश्व के विचारक, साहित्यकार भारत से प्रेरणा और मार्ग दर्शन प्राप्त करते थे। इसे अपना आदि गुरु मानते थे। इसे सभी विदेशी विद्वानों ने स्वीकार किया है। लेकिन आज हमारे देश में इससे विपरीत हो रहा है। आज हम साहित्यिक विचार साधना के क्षेत्र में पश्चिम का अनुकरण करते हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि हमें वहां के साहित्य का अध्ययन नहीं करना चाहिए, यह तो किसी भी विचारशील व्यक्ति के लिए आवश्यक है। किन्तु अपने मौलिक सांस्कृतिक तथ्यों, प्रेरणाओं को भुलाकर पश्चिम का अन्धानुकरण करना हमारी संस्कृति के लिए बड़ा खतरा है। इससे वह कमजोर होती है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 भारतीय संस्कृति की रक्षा कीजिए पृष्ठ 18
👉 हमारे छोटे से प्रयास से भी बहुत बड़ा फर्क पड़ता है
🔶 एक व्यक्ति रोज़ाना समुद्र तट पर जाता और वहाँ काफी देर तक बैठा रहता। आती-जाती लहरों को लगातार देखता रहता। बीच-बीच में वह कुछ उठाकर समुद्र में फेंकता, फिर आकर अपने स्थान पर बैठ जाता। तट पर आने वाले लोग उसे मंदबुद्धि समझते और प्राय: उसका मजाक उड़ाया करते थे। कोई उसे ताने कसता तो कोई अपशब्द कहता, किंतु वह मौन रहता और अपना यह प्रतिदिन का क्रम नहीं छोड़ता।
🔷 एक दिन वह समुद्र तट पर खड़ा तरंगों को देख रहा था। थोड़ी देर बाद उसने समुद्र में कुछ फेंकना शुरू किया। उसकी इस गतिविधि को एक यात्री ने देखा। पहले तो उसने भी यही समझा कि यह मानसिक रूप से बीमार है, फिर उसके मन में आया कि इससे चलकर पूछें तो। वह व्यक्ति के निकट आकर बोला- भाई ! यह तुम क्या कर रहे हो?
🔶 उस व्यक्ति ने उत्तर दिया- देखते नहीं, समंदर बार-बार अपनी लहरों को आदेश देता है कि वे इन नन्हे शंखों, घोंघों और मछलियों को जमीन पर पटककर मार दें। मैं इन्हें फिर से पानी में डाल देता हूं। यात्री बोला- यह क्रम तो चलता ही रहता है। लहरें उठती हैं, गिरती हैं, ऐसे में कुछ जीव तो बाहर होंगे ही।
🔷 तुम्हारी इस चिंता से क्या फर्क पड़ेगा?
🔶 उस व्यक्ति ने एक मुट्ठी शंख-घोंघों को अपने हाथ में उठाया और पानी में फेंकते हुए कहा – देखा कि नहीं, इनके जीवन में तो फर्क पड़ गया ना? वह यात्री सिर झुकाकर चलता बना और वह व्यक्ति वैसा ही करता रहा।
🔷 मित्रों, हमारी ज़िंदगी में भी ऐसा ही होता है। जैसे बूँद बूँद से घड़ा भरता है वैसे ही छोटे छोटे प्रयासों से हम अपनी और समाज की ज़िंदगी बदल सकते हैं।
🔶 इसलिए किसी भी छोटे कार्य कि महत्ता को कम ना समझे। एक दिन ये छोटे छोटे प्रयास ही बहुत बड़ा परिवर्तन ला देंगें।
🔷 एक दिन वह समुद्र तट पर खड़ा तरंगों को देख रहा था। थोड़ी देर बाद उसने समुद्र में कुछ फेंकना शुरू किया। उसकी इस गतिविधि को एक यात्री ने देखा। पहले तो उसने भी यही समझा कि यह मानसिक रूप से बीमार है, फिर उसके मन में आया कि इससे चलकर पूछें तो। वह व्यक्ति के निकट आकर बोला- भाई ! यह तुम क्या कर रहे हो?
🔶 उस व्यक्ति ने उत्तर दिया- देखते नहीं, समंदर बार-बार अपनी लहरों को आदेश देता है कि वे इन नन्हे शंखों, घोंघों और मछलियों को जमीन पर पटककर मार दें। मैं इन्हें फिर से पानी में डाल देता हूं। यात्री बोला- यह क्रम तो चलता ही रहता है। लहरें उठती हैं, गिरती हैं, ऐसे में कुछ जीव तो बाहर होंगे ही।
🔷 तुम्हारी इस चिंता से क्या फर्क पड़ेगा?
🔶 उस व्यक्ति ने एक मुट्ठी शंख-घोंघों को अपने हाथ में उठाया और पानी में फेंकते हुए कहा – देखा कि नहीं, इनके जीवन में तो फर्क पड़ गया ना? वह यात्री सिर झुकाकर चलता बना और वह व्यक्ति वैसा ही करता रहा।
🔷 मित्रों, हमारी ज़िंदगी में भी ऐसा ही होता है। जैसे बूँद बूँद से घड़ा भरता है वैसे ही छोटे छोटे प्रयासों से हम अपनी और समाज की ज़िंदगी बदल सकते हैं।
🔶 इसलिए किसी भी छोटे कार्य कि महत्ता को कम ना समझे। एक दिन ये छोटे छोटे प्रयास ही बहुत बड़ा परिवर्तन ला देंगें।
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