बुधवार, 9 सितंबर 2020

👉 सकारात्मक रहे.. सकारात्मक जिए!

एक दिन एक किसान का बैल कुएँ में गिर गया। वह बैल घंटों ज़ोर -ज़ोर से रोता रहा और किसान सुनता रहा और विचार करता रहा कि उसे क्या करना चाहिऐ और क्या नहीं।

अंततः उसने निर्णय लिया कि चूंकि बैल काफी बूढा हो चूका था अतः उसे बचाने से कोई लाभ होने वाला नहीं था और इसलिए उसे कुएँ में ही दफना देना चाहिऐ।।

किसान ने अपने सभी पड़ोसियों को मदद के लिए बुलाया सभी ने एक-एक फावड़ा पकड़ा और कुएँ में मिट्टी डालनी शुरू कर दी। जैसे ही बैल कि समझ में आया कि यह क्या हो रहा है वह और ज़ोर-ज़ोर से चीख़ चीख़ कर रोने लगा और फिर ,अचानक वह आश्चर्यजनक रुप से शांत हो गया। 

सब लोग चुपचाप कुएँ में मिट्टी डालते रहे तभी किसान ने कुएँ में झाँका तो वह आश्चर्य से सन्न रह गया.. अपनी पीठ पर पड़ने वाले हर फावड़े की मिट्टी के साथ वह बैल एक आश्चर्यजनक हरकत कर रहा था वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को नीचे गिरा देता था और फिर एक कदम बढ़ाकर उस पर चढ़ जाता था। 

जैसे-जैसे किसान तथा उसके पड़ोसी उस पर फावड़ों से मिट्टी गिराते वैसे -वैसे वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को गिरा देता और एक सीढी ऊपर चढ़ आता जल्दी ही सबको आश्चर्यचकित करते हुए वह बैल कुएँ के किनारे पर पहुंच गया और फिर कूदकर बाहर भाग गया ।  

ध्यान रखे आपके जीवन में भी बहुत तरह से मिट्टी फेंकी जायेगी बहुत तरह की गंदगी आप पर गिरेगी जैसे कि, आपको आगे बढ़ने से रोकने के लिए कोई बेकार में ही आपकी आलोचना करेगा कोई आपकी सफलता से ईर्ष्या के कारण आपको बेकार में ही भला बुरा कहेगा कोई आपसे आगे निकलने के लिए ऐसे रास्ते अपनाता हुआ दिखेगा जो आपके आदर्शों के विरुद्ध होंगे...

ऐसे में आपको हतोत्साहित हो कर कुएँ में ही नहीं पड़े रहना है बल्कि साहस के साथ हर तरह की गंदगी को गिरा देना है और उससे सीख ले कर उसे सीढ़ी बनाकर बिना अपने आदर्शों का त्याग किये अपने कदमों को आगे बढ़ाते जाना है।

👉 अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान (भाग २२)

आखिर कैसे मिले—सम्यक् ज्ञान?

परम पूज्य गुरुदेव कहते थे कि प्रत्यक्ष को चेतना-प्रत्यक्ष मानने से ही महर्षि पतञ्जलि जैसे महायोगी का भाव प्रकट होगा। यदि हम प्रत्यक्ष को केवल इन्द्रिय-प्रत्यक्ष की सीमा में सिकोड़ दें, तो हम उन्हें चार्वाक जैसे नास्तिक एवं जड़वादी दार्शनिकों की श्रेणी में  खड़ा कर देंगे। क्योंकि चार्वाक दर्शन के प्रवर्तक बृहस्पति का प्रमुख मत यही तो है कि जो कुछ इन्द्रियाँ अनुभव करती हैं, जो नजरों के सामने है-वही प्रमाण है। चार्वाक को भारतीय भौतिकवाद का स्रोत माना जाता है। इस दर्शन में बुद्धि चातुर्य तो है,पर चेतना का बोध नहीं है। चार्वाक कोरे बुद्धिवादी हैं, जबकि महर्षि पतञ्जलि सम्यक् बोध प्राप्त महायोगी हैं। उनके भाव को ठीक-ठीक समझने के लिए किसी महायोगी का बोध ही सहायक बन सकता है। परम पूज्य गुरुदेव हमें यही सहायता प्रदान करते हैं।
  
वह कहते हैं कि गहरे ध्यान अथवा समाधि में हमारी अर्न्तचेतना जिस ज्ञान की अनुभूति करती है,वही सत्य है। उसी को प्रमाण माना जा सकता है। इन्द्रियों से हमें जो जानकारी मिलती है,वह प्रायः आधी-अधूरी और दोषग्रस्त होती है। यही कारण है कि इन्द्रियाँ हमें भटकाती और भ्रमित करती हैं। काम-क्रोध,लोभ-मोह की दशाएँ इन्द्रियों को जब- तब आच्छादित करती है और परिणाम में व्यक्ति को कुछ का कुछ समझ में आने लगता है। कभी-कभी यही दशा नशेड़ी व्यक्ति की होती है। इस संबंध में  गुरुदेव अपने गाँव के पास का किस्सा सुनाया करते थे। उनके गाँव के पास के गाँव में एक ठाकुर बच्ची सिंह रहा करते थे। उनकी अफीम खाने की आदत थी। अफीम  खाने के बाद वे नशे में काफी ऊट-पटांग, हरकतें करते थे। एक बार उन्होंने शाम को ज्यादा अफीम खा ली। नशा गहरा होने पर वे कहने लगे,देखो अब मेरे पास उड़ने की ताकत आ गयी है, अब मैं उड़ सकता हूँ। ऐसा कहते हुए वह अपने मकान की छत से हाथ फैलाए हुए उड़ने की मुद्रा में नीचे कूद पड़े। सिर पर गहरी चोट लगने से उनकी मृत्यु हो गयी। बेचारे वह जान भी नहीं सके कि नशे के असर में वह अपनी इन्द्रियों द्वारा धोखा खा गए।
    
इन्द्रियाँ भरोसे काबिल हैं भी नहीं। बिना नशे के वे हमें भटकाती और भ्रमित करती रहती हैं। जो बचपन में समझ में आया, वह किशोरावस्था में बेकार नजर आती है। किशोरावस्था की बातें प्रौढ़ावस्था में बेमानी हो जाती है। यही सिलसिला चलता रहता है। ऐसे में सवाल उठता है कि प्रत्यक्ष बोध आखिर है क्या? तो जवाब यह है कि प्रत्यक्ष बोध वह है, जिसे इन्द्रियों के बिना जाना जा सके। इसलिए पहला सम्यक् ज्ञान केवल अपनी आन्तरिक सत्ता का हो सकता है। क्योंकि इसके लिए किसी भी इन्द्रिय सहायता की जरूरत नहीं है। कोई भी गहरे ध्यान अथवा समाधि में उतरकर इसे पा सकता है।
  
प्रमाणवृत्ति अथवा सम्यक् ज्ञान का दूसरा स्रोत अनुमान है। यह उनके लिए है, जो अभी प्रत्यक्ष बोध के लायक नहीं हुए हैं। जिनकी स्थिति अभी ध्यान और समाधि की गहराई में प्रवेश करने की नहीं है। जो सम्यक् ज्ञान पाना चाहते हैं, अनुमान उनके लिए एक सम्भावना है। यह अनुमान क्या है? परम पूज्य गुरुदेव के शब्दों में यह है विवेक युक्त तर्क। तर्क के बारे में गुरुदेव का कहना था कि तर्क दुधारी तलवार की तरह है, इसके इस्तेमाल के लिए गहरे विवेक की जरूरत है। विवेक के अभाव में यह सत्य ज्ञान की प्राप्ति में सहायक बनने की बजाय असत्य ज्ञान का पोषक भी हो सकता है। उदाहरण के लिए तर्क का प्रयोग चार्वाक एवं मार्क्स ने भी किया और आचार्य शंकर एवं महर्षि अरविन्द ने भी। परन्तु एक में विवेक का अभाव है, तो दूसरे में विवेक का प्रभाव। इस स्थिति में इनके दर्शन और दार्शनिकता का पूरा का पूरा ढाँचा बदल गया है।

.... क्रमशः जारी
📖 अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान पृष्ठ ४१
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या

👉 The key to success and self-fulfillment

Thus the key to a person’s success and fulfillment in life is the intensity and focus of his will and faith in his ability to manifest his indwelling divine potentialities. He works with the available resources and gets results according to the circumstances created by his deeds. One may call it destiny, fortune or the result of karma, but by and large it is the outcome of one’s own will and faith.

That is why it has been said that a man is the maker of his own destiny. Whosoever has achieved success and fulfillment in this world has worked whole heartedly to achieve his set goal. Such people have been ever active, with unwavering will, to achieve their aims. This strong will enabled them to overcome all the obstacles, keep hope and faith alive in the hour of failure and make fresh attempts, leading to ultimate success. Therefore, in one word, a strong will alone may be called the real basis of success.

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