ध्यान की अनुभूतियों द्वारा ऊर्जा स्नान
महर्षि के इस सूत्र में ध्यान के सूक्ष्म एवं गहन प्रयोगों का संकेत है। यह सच है कि ध्यान की प्रगाढ़ता, निरन्तरता एवं ध्येय में लय का नाम ही समाधि है। परन्तु ध्येय क्या एवं लय किस प्रकार? इसी सवाल के सार्थक उत्तर के रूप में समाधि की उच्चस्तरीय स्थितियाँ प्रकट होती हैं। इस सत्य को व्यावहारिक रूप में परम पूज्य गुरुदेव के अनुभवों के प्रकाश में अपेक्षाकृत साफ-साफ देखा जा सकता है। युगऋषि गुरुदेव ने नये एवं परिपक्व साधकों के लिए इसी क्रम में ध्यान के कई रूप एवं उनके स्तर निर्धारित किये थे।
ध्यान के साधकों के लिए उन्होंने पहली सीढ़ी के रूप में वेदमाता गायत्री के साकार रूप का ध्यान बतलाया था। सुन्दर, षोडशी युवती के रूप में हंसारूढ़ माता। गुरुदेव कहते थे कि जो सर्वांग सुन्दर नवयुवती में जगन्माता के दर्शन कर सकता है, वही साधक होने के योग्य है। छोटी बालिका में अथवा फिर वृद्धा में माँ की कल्पना कर लेना सहज है, क्योंकि ये छवियाँ सामान्यतया साधक के चित्त में वासनाओं को नहीं कुरेदती। परन्तु युवती स्त्री को जगदम्बा के रूप में अनुभव कर लेना सच्चे एवं परिपक्व साधकों का ही काम है। जो ऐसा कर पाते हैं, वही ध्यान साधना में प्रवेश के अधिकारी हैं। हालाँकि यह ध्यान का स्थूल रूप है, परन्तु इसमें प्रवेश करने पर ही क्रमशः सूक्ष्म परतें खुलती हैं।
इस ध्यान को सूक्ष्म बनाने के लिए ध्यान की दूसरी सीढ़ी है कि उन्हें उदय कालीन सूर्यमण्डल के मध्य में आसीन देखा जाय। और सविता की महाशक्ति के रूप में स्वयं के ध्यान अनुभव को प्रगाढ़ किया जाय। ऐसे ध्यान में मूर्ति अथवा चित्र की आवश्यकता नहीं रहती। बस विचारों एवं भावों की तद्विषयक प्रगाढ़ता ही सविता मण्डल में मूर्ति बनकर झलकती है। जो इसे अपने ध्यान की प्रक्रिया में ढालते हैं, उन्हें अनुभव होता है कि सविता देव एवं माँ गायत्री एकाकार हो गये हैं। यहाँ ध्यान की सूक्ष्मता तो है, परन्तु स्थूल आधारों से प्रकट हुई सूक्ष्मता है। फिर भी इस सूक्ष्म स्थिति को पाने के बाद साधक की चेतना में विशिष्ट परिवर्तन अनुभव होने लगते हैं।
.... क्रमशः जारी
📖 अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान पृष्ठ १७४
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या