🔷 बेंजामिन फ्रेंकलिन ने एक अखबार निकाला। आर्थिक कठिनाई में पड़कर उसने अपने एक मित्र से बीस डालर लिये। जब उसकी स्थिति ठीक हो गई तो वह मित्र की वह रकम लौटाने लगा। मित्र ने कहा- वह रकम तो मैंने आपको सहायता में दी थी। फ्रेंकलिन ने कहा- सो ठीक है पर जब मैं लौटाने की स्थिति में हूँ तो आपकी सहायता का ऋणी क्यों बनूँ?
🔶 झगड़े का अन्त इस प्रकार हुआ कि मित्र ने वह रुपये फ्रेंकलिन के पास इस उद्देश्य से जमा किये कि जब कोई जरूरतमंद उधार माँगे तक इसे उसी शर्त पर दे दें कि वह भी स्थिति ठीक होने पर उन रुपयों को अपने पास जमा रखेगा और फिर किसी जरूरतमंद को इसी प्रकार इसी शर्त पर दे देगा।
🔷 आवश्यकता के समय दूसरों से सहायता ली जा सकती है पर यह ध्यान रखना चाहिए कि समर्थ होते ही वह सहायता किसी अन्य जरूरत मन्द को लौटा दी जाय। सहायता के साथ जो दान वृत्ति जुड़ी हुई है वह दुहरा कर्ज है। उसका चुकाना एक विशिष्ट नैतिक कर्तव्य है।
📖 अखण्ड ज्योति जून 1961
🔶 झगड़े का अन्त इस प्रकार हुआ कि मित्र ने वह रुपये फ्रेंकलिन के पास इस उद्देश्य से जमा किये कि जब कोई जरूरतमंद उधार माँगे तक इसे उसी शर्त पर दे दें कि वह भी स्थिति ठीक होने पर उन रुपयों को अपने पास जमा रखेगा और फिर किसी जरूरतमंद को इसी प्रकार इसी शर्त पर दे देगा।
🔷 आवश्यकता के समय दूसरों से सहायता ली जा सकती है पर यह ध्यान रखना चाहिए कि समर्थ होते ही वह सहायता किसी अन्य जरूरत मन्द को लौटा दी जाय। सहायता के साथ जो दान वृत्ति जुड़ी हुई है वह दुहरा कर्ज है। उसका चुकाना एक विशिष्ट नैतिक कर्तव्य है।
📖 अखण्ड ज्योति जून 1961