बुधवार, 9 अगस्त 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 9 Aug 2023

धर्मक्षेत्र को आज हेय इसलिए समझा जाता है कि उसमें ओछे और अवांछनीय व्यक्तित्व भरे पड़े हैं। उन्होंने धर्म को बदनाम कियाहै। इतनी उपयोगी एवं उत्कृष्ट आस्था के प्रति लोगों को नाक-भों सिकोड़ने पड़ रहे हैं। इस स्थिति को बदलने का एक ही उपाय है कि बढ़िया लोग उस क्षेत्र में प्रवेश करें। इससे धर्म के प्रति फैली हुई अनास्था भी दूर होगी और उसे ढोंग न समझकर आस्थाओं का प्रशिक्षण समझा जाने लगेगा।

योजनाएँ कितनी ही आकर्षक क्यों न हों उनको आगे धकेलने वाले लोग जब आदर्शहीन, स्वार्थी और संकीर्ण दृष्टिकोण के हों तो उनकी दृष्टि उस योजना से अधिकाधिक अपना लाभ लेने की होगी। इस विचित्रता में कोई योजना सफल नहीं हो सकती। कोई भी महान् कार्य सदा आदर्शवादी आस्था लेकर चलने वाले लोग ही पूरा करते हैं। यदि इसी विशेषता का अभाव रहा तो फिर योग्यता, शिक्षा तथा कौशल कितना ही बढ़ा-चढ़ा हो वह व्यक्तिगत लाभ की ओर ही झुकेगा और वह समाज को हानि पहुँचाकर ही संभव हो सकता है।

एक लगनशील व्यक्ति अपने अनेक साथी-सहचर पैदा कर सकता है। जुआरी, शराबी, व्यभिचारी जब अपने कई साथी पैदा कर सकते हैं तो प्रबुद्ध व्यक्ति वैसा क्यों नहीं कर सकते? डाकुओं के छोटे-छोटे गिरोह जब एक बड़े क्षेत्र को आतंकित कर सकते हैं तो सही लोगों का संगठन क्या कुछ नहीं कर सकते? लगन की आग बड़ी प्रबल है। यह जिधर भी लगती है दावानल का रूप धारण करती है। युग निर्माता महापुरुष अकेले ही चले हैं, लोगों ने उनका विरोध-प्रतिरोध भी खूब किया फिर भी वे अपनी लगन के आधार पर अद्भुत सफलता प्राप्त कर सके-यही मार्ग हर लगनशील के लिए खुला पड़ा है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 छोटी शक्ति से ही कार्य आरम्भ करो!

यदि आपके पास मनचाही वस्तुएं नहीं हैं तो निराश होने की कुछ आवश्यकता नहीं। अपने पास जो टूटी-फूटी चीजें है उन्हीं की सहायता से अपनी कला को प्रदर्शित करना आरम्भ कर दीजिये, जब चारों ओर घोर घन अन्धकार छाया हुआ होता है तो वह दीपक जिसमें छदाम की मिट्टी, आधे पैसे का तेल और दमड़ी को बत्ती है। कुल मिलाकर एक पैसे की भी पूँजी नहीं है—चमकता है और अपने प्रकाश से लोगों के रुके हुए कामों को चालू कर देता है।

जब कि हजारों पैसे के मूल्य वाली वस्तुएं चुपचाप पड़ी होती हैं, यह एक पैसे की पूँजी वाला दीपक प्रकाशवान होता है, अपनी महत्ता प्रकट करता है, लोगों का प्यारा बनता है, प्रशंसित होता है और अपने आस्तित्व को धन्य बनाता है। क्या दीपक ने कभी ऐसा रोना रोया है कि मेरे पास इतने मन तेल होता, इतने सेर रुई होती, इतना बड़ा मेरा आकार होता तो ऐसा बड़ा प्रकाश करता?

दीपक को कर्महीन नालायकों की भाँति, बेकार शेखचिल्लियों जैसे मनसूबे बाँधने की फुरसत नहीं है, वह अपनी आज की परिस्थिति हैसियत और औकात को देखता है, उसका आदर करता है और अपनी केवल मात्र एक पैसे की पूँजी से कार्य आरम्भ कर देता है। उसका कार्य छोटा है, बेशक; पर उस छोटेपन में भी सफलता का उतना ही महत्व है जितना के सूर्य और चन्द्र के चमकने की सफलता का है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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