मंगलवार, 2 जनवरी 2018
👉 बड़ा बनना है तो बड़ा सोचो
🔶 एक बार एक बहुत गरीब परिवार का बेरोजगार युवक नौकरी की तलाश में किसी दूसरे शहर जाने के लिए रेलगाड़ी से सफ़र कर रहा था। घर में कभी-कभार ही सब्जी बनती थी, इसलिए उसने रास्ते में खाने के लिए सिर्फ रोटियां ही रखी थी।
🔷 आधा रास्ता गुजर जाने के बाद उसे भूख लगने लगी, और वह टिफिन में से रोटियां निकाल कर खाने लगा। उसके खाने का तरीका कुछ अजीब था, वह रोटी का एक टुकड़ा लेता और उसे टिफिन के अन्दर कुछ ऐसे डालता मानो रोटी के साथ कुछ और भी खा रहा हो, जबकि उसके पास तो सिर्फ रोटियां ही थीं!
🔶 उसकी इस हरकत को आस पास के और दूसरे यात्री देख कर हैरान हो रहे थे। वह युवक हर बार रोटी का एक टुकड़ा लेता और झूठमूठ का टिफिन में डालता और खाता। सभी सोच रहे थे कि आखिर वह युवक ऐसा क्यों कर रहा था। आखिरकार एक व्यक्ति से रहा नहीं गया और उसने उससे पूछ ही लिया कि भैया तुम ऐसा क्यों कर रहे हो, तुम्हारे पास सब्जी तो है ही नहीं, फिर रोटी के टुकड़े को हर बार खाली टिफिन में डालकर ऐसे खा रहे हो मानो उसमे सब्जी हो।
🔷 तब उस युवक ने जवाब दिया, “भैया , इस खाली ढक्कन में सब्जी नहीं है लेकिन मै अपने मन में यह सोच कर खा रहा हूँ कि इसमें बहुत सारा आचार है, मै आचार के साथ रोटी खा रहा हूँ।”
🔶 फिर व्यक्ति ने पूछा, “खाली ढक्कन में आचार सोच कर सूखी रोटी को खा रहे हो तो क्या तुम्हे आचार का स्वाद आ रहा है?”
🔷 “हाँ, बिलकुल आ रहा है, मै रोटी के साथ अचार सोचकर खा रहा हूँ और मुझे बहुत अच्छा भी लग रहा है।”, युवक ने जवाब दिया।
🔶 उसकी इस बात को आसपास के यात्रियों ने भी सुना, और उन्ही में से एक व्यक्ति बोला, “कि भाई! जब तुम्हे सोचना ही था तो तुम आचार की जगह पर कुछ अच्छी सी सब्जी सोचते जैसे, मटर पनीर, शाही पनीर, मलाई कोफ्ता आदि ….तुम्हे इनका स्वाद भी मिल जाता। तुम्हारे कहने के मुताबिक तुमने आचार सोचा तो तुम्हे आचार का स्वाद आया तो अगर तुम और स्वादिष्ट चीजों के बारे में सोचते तो उनका स्वाद भी तुम्हे आता। जब सोचना ही था तो भला छोटा क्यों सोचो बड़ा क्यों नहीं, तुम्हे तो बड़ा सोचना चाहिए था।”
🔷 मित्रों, ये बात हमारी ज़िंदगी के हर पल में लागू होती है। हम जैसा सोचते हैं वैसे ही बन जाते हैं और फिर हमें वैसे ही आनंद आने लगता है। कभी कभी हम बहुत छोटा सोचते हैं और हम उसी के अनुसार कार्य करने लग जाते हैं। बाद में जब वक़्त गुजर जाता है तो हमें एहसास होता है कि अगर हमने थोड़ा और बड़ा और बेहतर सोचा होता तो शायद ज़िंदगी बदल भी सकती थी।
🔶 इसलिए मित्रों, हमेशा बड़े सपने देखो , बड़ा सोचो , बड़े लक्ष्य बनाओ। जब हमारी सोच बड़ी होगी तभी हम कुछ बड़ा कर सकते हैं और तभी हमें कुछ बड़ा मिलेगा।
🔷 आधा रास्ता गुजर जाने के बाद उसे भूख लगने लगी, और वह टिफिन में से रोटियां निकाल कर खाने लगा। उसके खाने का तरीका कुछ अजीब था, वह रोटी का एक टुकड़ा लेता और उसे टिफिन के अन्दर कुछ ऐसे डालता मानो रोटी के साथ कुछ और भी खा रहा हो, जबकि उसके पास तो सिर्फ रोटियां ही थीं!
🔶 उसकी इस हरकत को आस पास के और दूसरे यात्री देख कर हैरान हो रहे थे। वह युवक हर बार रोटी का एक टुकड़ा लेता और झूठमूठ का टिफिन में डालता और खाता। सभी सोच रहे थे कि आखिर वह युवक ऐसा क्यों कर रहा था। आखिरकार एक व्यक्ति से रहा नहीं गया और उसने उससे पूछ ही लिया कि भैया तुम ऐसा क्यों कर रहे हो, तुम्हारे पास सब्जी तो है ही नहीं, फिर रोटी के टुकड़े को हर बार खाली टिफिन में डालकर ऐसे खा रहे हो मानो उसमे सब्जी हो।
🔷 तब उस युवक ने जवाब दिया, “भैया , इस खाली ढक्कन में सब्जी नहीं है लेकिन मै अपने मन में यह सोच कर खा रहा हूँ कि इसमें बहुत सारा आचार है, मै आचार के साथ रोटी खा रहा हूँ।”
🔶 फिर व्यक्ति ने पूछा, “खाली ढक्कन में आचार सोच कर सूखी रोटी को खा रहे हो तो क्या तुम्हे आचार का स्वाद आ रहा है?”
🔷 “हाँ, बिलकुल आ रहा है, मै रोटी के साथ अचार सोचकर खा रहा हूँ और मुझे बहुत अच्छा भी लग रहा है।”, युवक ने जवाब दिया।
🔶 उसकी इस बात को आसपास के यात्रियों ने भी सुना, और उन्ही में से एक व्यक्ति बोला, “कि भाई! जब तुम्हे सोचना ही था तो तुम आचार की जगह पर कुछ अच्छी सी सब्जी सोचते जैसे, मटर पनीर, शाही पनीर, मलाई कोफ्ता आदि ….तुम्हे इनका स्वाद भी मिल जाता। तुम्हारे कहने के मुताबिक तुमने आचार सोचा तो तुम्हे आचार का स्वाद आया तो अगर तुम और स्वादिष्ट चीजों के बारे में सोचते तो उनका स्वाद भी तुम्हे आता। जब सोचना ही था तो भला छोटा क्यों सोचो बड़ा क्यों नहीं, तुम्हे तो बड़ा सोचना चाहिए था।”
🔷 मित्रों, ये बात हमारी ज़िंदगी के हर पल में लागू होती है। हम जैसा सोचते हैं वैसे ही बन जाते हैं और फिर हमें वैसे ही आनंद आने लगता है। कभी कभी हम बहुत छोटा सोचते हैं और हम उसी के अनुसार कार्य करने लग जाते हैं। बाद में जब वक़्त गुजर जाता है तो हमें एहसास होता है कि अगर हमने थोड़ा और बड़ा और बेहतर सोचा होता तो शायद ज़िंदगी बदल भी सकती थी।
🔶 इसलिए मित्रों, हमेशा बड़े सपने देखो , बड़ा सोचो , बड़े लक्ष्य बनाओ। जब हमारी सोच बड़ी होगी तभी हम कुछ बड़ा कर सकते हैं और तभी हमें कुछ बड़ा मिलेगा।
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