🔹 आशा की जानी चाहिए कि नव- सृजन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मनीषो, समय दानी धनी आदि प्रतिभावान अपनी- अपनी श्रद्धांजलि लेकर नवयुग के अभिनव सृजन में आगे बढ़ेगें और कहने लायक योगदान देंगे। इक्कीसवीं सदीं का उज्ज्वल भविष्य विनिर्मित करने के लिए इस प्रकार का सहयोग आवश्यक है और अनिवार्य भी।
🔸 ‘‘उद्घरेदात्मनात्मानं’’ अपना उद्धार आप करो। अपनी प्रगति का पथ स्वयं प्रशस्त करो। जो माँगना है, अपने जीवन देवता से माँगो। बाहर दीखने वाली हर वस्तु का उद्गम केन्द्र अपना ही अन्तरंग है। आत्म देव की साधना ही जीवन देवता की उपासना है।
🔹 राम के कर्त्तव्य पालन में ,भरत के त्याग- तप में मीरा के प्रेम में, हरिश्चन्द्र के सत्य व्रत में, दधीचि के दान में, कृष्ण के अनासक्ति योग में चरित्र की पूर्णता के दर्शन होते है। चरित्र जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है। चरित्र ही जीवन रथ का सारथी है। उत्तम चरित्र जीवन को सही दिशा में प्रेरित करता है। चरित्र ही हमारे मूल्यांकन की कसौटी हो। चरित्रवान् व्यक्तियों को प्रोत्साहित और महत्त्व दें।
🔸 प्रत्येक छोटे से लेकर बड़े कार्यक्रम शान्त और सन्तुलित मस्तिष्क द्वारा ही पूरे किए जा सकते हैं। संसार में मनुष्य ने अब तक जो कुछ भी उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं, उनके मूल में धीर- गम्भीर, शान्त- मस्तिष्क ही रहे हैं। कोई भी साहित्यकार, वैज्ञानिक, कलाकार- शिल्पी, यहाँ तक की बढ़ई, लुहार, सफाई करने वाला श्रमिक तक अपने कार्य, तब- तक भली- भांति नहीं कर सकते, जब तक उनकी मनः स्थिति शान्त न हो।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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