मंगलवार, 15 मई 2018

👉 सरलता और सान्त्वना चाहिए।

🔷 दुखियों को तुम्हारी सान्त्वना भी आवश्यकता है। परेशान और पीड़ित मनुष्य दूसरों से यह आशा करता है कि उसके कष्ट में कमी करने के लिए कोई सहायक व्यक्ति उससे साधनों से न सही कम से कम वचन और भावना द्वारा उसे आश्वासन प्रदान करेंगे।

🔶 जिन भूलों के कारण उसे दुःख उठाना पड़ा, इनको व्यंग भरे छेदने वाले शब्दों से कहना, ताना देना, उपहास उड़ाना असज्जनता भरा अमानवीय कार्य है। दुःख देने के लिए उसकी परिस्थितियाँ ही पर्याप्त है, कटु शब्दों के डंक मार कर उसकी व्यथा और बढ़ाकर हम उसका क्या उपकार करते है?

🌹 अखण्ड ज्योति जून 1961

👉 कर्तव्य की जिम्मेदारी

🔷 प्राचीन समय में रात्रि के समय समुद्री जहाजों के पथ-प्रदर्शन करने के लिए छोटे-छोटे टापुओं पर प्रकाश-स्तम्भ खड़े किये जाते हैं। उन पर रोशनी ठीक रखने के लिए चौकीदार नियुक्त किये जाते थे। इन चौकीदारों का कर्तव्य बड़ा कठोर होता था। यदि किसी कारणवश रोशनी न हो तो पानी के जहाज टापू से टकरा कर उलट सकते थे और सैकड़ों आदमियों की जानें जा सकती थीं।

🔶 अमेरिका के एक टापू में ऐसा ही प्रकाश-स्तंभ था, एक दिन रोशनी करने वाला चौकीदार हृदय की गति रुक जाने से अचानक संध्या-समय मर गया। स्त्री को बड़ा दुःख हुआ। उस टापू पर वहाँ यह तीन व्यक्ति थे, चौकीदार,उसकी स्त्री और दो वर्ष का बालक। स्त्री विपत्ति और वियोग के दुःख से आर्त्त होकर रोने लगी।

🔷 दस मिनट भी न हो पाये थे कि स्त्री को अपने महान कर्तव्य का ध्यान आया। आँखों से बहते हुए पानी को उसने रोका, पति की लाश को एक कोठरी में बन्द किया और उसी में अपने छोटे बच्चे को सुलाकर बाहर से किवाड़ बन्द कर दिये। स्त्री प्रकाश-दीपक के पास स्तंभ पर चढ़कर पहुँची और उसे जलाने लगी। दीपक तो उसने जला दिया, पर काँच की चिमनी यथा-स्थान न लगा सकी। उसे इसका कुछ अनुभव थोड़े ही था।

🔶 स्त्री ने सोचा चिमनी ठीक न लगने पर हवा से दीपक बुझ जाएगा। इसलिए उसने निश्चय किया कि हाथ से चिमनी पकड़े हुए रात भर वहीं खड़ी रहेगी। कर्तव्य का उत्तरदायित्व जो उसे पूरा करना था। वह फौजी कप्तान की तरह अपने कर्तव्य के मोर्चे पर डटी रही। रात को इतनी अधिक सर्दी पड़ी और ऐसा बर्फीला तूफान आया कि सवेरा होते-होते वह स्त्री भी ठंड के मारे गिरकर मर गई।

🔷 दूसरे दिन प्रातः काल एक जहाज उधर से निकला। उसने देखा कि प्रकाश स्तम्भ सुनसान पड़ा हुआ है। नाविक उतर कर वहाँ गया। स्त्री की लाश चिमनी हाथ में लिये हुए पड़ी थी। कोठरी खोली गई तो चौकीदार का मृत शरीर रखा हुआ था। कोठरी में बन्द हुआ बच्चा रो-रो कर अम्मा को पुकार रहा था।

🔶 जहाज के अधिकारियों को सारी घटना समझने में देर न लगी। उनने बालक को गोदी में उठा लिया और पुचकारते हुए उससे कहा—बच्चे, तुम भूलते हो, वह तुम्हारी ही अम्मा नहीं थी, वह तो अनेक स्त्री-पुरुषों की माता थी, जिनकी जानों को उसने अपनी जान देकर बचाया।”

📖 अखण्ड ज्योति से

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 16 May 2018


👉 आज का सद्चिंतन 16 May 2018


👉 Awakening Divinity in Man (Part 2)

What else do the deities give?

🔷 What (else) do the deities give? Well they give you the capacity to digest and handle success. To wisely handle worldly possessions, powers and comforts, which appear to you as treasures of joy, you should have appropriate qualities. This ability – the key to the real joy – is what could be described as an offshoot of divinity. If divinity is awakened in you, then you could accomplish big goals from small or insignificant tasks; if you have greater opportunities and resources then well and good, but you would be happy and successful even without them. However if you desire something you do not deserve, or you are eager to acquire success without caring to improve yourself, then, well, what can I say!

🔶 Vigour and might of human body is good but if it is not controlled by wisdom, it could only aggravate terror or misuses, resulting in effects similar to that of adding fuel to the fire. Deities never commit the mistake of showering wealth or worldly resources. If they do, then they are risking total destruction and a disastrous end of humanity. Dear children! Humanity is the power which elevates and excels our thinking, attitude, ambitions and activities. It is a great attribute.

🔷 Attempting to fulfil your aspirations is not bad but is subject to one scrutiny – what is being desired and what for? If they are for a worldly (materialistic) purpose then it is necessary to know whether you deserve them, how would you digest this possession, and how will you use it. Man makes mistakes but not the Gods. Deities can’t bless you with things you often imagine or expect. Great people who made contacts with deities did not benefit materialistically. What did they receive? The virtues of humanity, the seeds of divinity. The virtuous talents and powers thus acquired enabled man to progress.

✍🏻 Pt. Shriram Sharma Acharya

👉 आप तुनकमिज़ाज तो नहीं हैं? (भाग 1)

🔷 मेरे पड़ौस में एक सज्जन हैं जो चिढ़ने और नाराज होने के बड़े ही प्रवीण हैं। जहाँ किसी की कोई छोटी मोटी कभी नजर पड़ जाये, वे उसको खाने को दौड़ते हैं। पत्नी को झिड़कना, बच्चों पर दिन भर चीखना−चिल्लाना, नौकरों को दिन भर श्लेषात्मक पदवियों से विभूषित करना उनका दैनिक कृत्य है। फिर भी उनके पुत्र महाशय सुधरने का नाम ही नहीं लेते, नौकर आज्ञाकारी नहीं हो पाते। वे समझ गये हैं कि इनकी आदत ही कुछ ऐसी पड़ गई है। इसी कारण उनकी बात की वे कोई भी परवाह नहीं करते।

🔶 यह सभी मानते हैं कि अपने से छोटों को शिक्षा देनी चाहिए, परन्तु हर समय नहीं। शिक्षा देने तथा ताड़ने का पृथक समय होता है। सभी लोगों को ताड़ना हर समय सह्य नहीं हो सकता। भूल होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। विशेषतया बच्चों और नवयुवकों से भूल होना और भी सहज है। वे जिस समय भूल करें, उस समय यदि डाँट डपट अथवा मार−पीट से काम न लेकर उन्हें समझाया जावे और भविष्य में अच्छा काम करने का उत्साहित किया जावे तो यह देखा गया है कि इससे अत्यन्त लाभ होता है। बच्चों को बार बार डाटना, अथवा मारना−पीटना उन्हें उद्दण्ड, जिद्दी तथा निर्लज्ज बना देता है और अन्त में उन्हें चिल्लाने−पीटने वालों का भी भय नहीं रहता।

🔷 पाश्चात्य विचारक लार्ड चेस्टरफील्ड ने किशारों और नवयुवकों के मनोविज्ञान का सूक्ष्म अध्ययन किया है। उनके कथनानुसार “बच्चों पर मारने पीटने की अपेक्षा उनको समझाने बुझाने और उत्साह देने का बड़ा प्रभाव पड़ता है।” यह बात केवल बच्चों में ही नहीं वरन् बड़ों के भी है।

.... क्रमशः जारी
📖 अखण्ड ज्योति, फरवरी 1955 पृष्ठ 18

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1955/February/v1.18

👉 शक्ति संचय के पथ पर (भाग 2)

🔷 आज साम्प्रदायिक दंगों का वातावरण गरम है। जगह-जगह से साम्प्रदायिक दंगों के दिल दहला देने वाले समाचार प्राप्त होते रहते हैं। जिनसे प्रतीत होता है कि थोड़े से गुंडे उबल पड़ते हैं और हजारों नर नारियों को गाजर मूली की तरह काट कर रख देते हैं। अपार धन जन की हानि कर देना उनके बायें हाथ का खेल है। हम अनाथ बालकों की तरह रोते चिल्लाते और इधर-उधर भागते हैं अखबारों में लेख छापते हैं प्रस्ताव पास करते हैं, और अन्त में माथा पीट कर चुप हो बैठते हैं। गुण्डों का हौसला बढ़ाते हैं, वे एक के बाद दूसरा आक्रमण अधिक जोर से करते हैं और अधिक उत्पात मचाते हैं। हर उत्पात के साथ उनकी पशुवृत्ति तृप्त होती है और लूट का माल हाथ लगता है। इस घटनाक्रम की बार-बार पुनरावृत्ति होती रहती है।

🔶 इस दुखद स्थिति पर गंभीरता पूर्वक विचार करने से ऐसा प्रतीत होता है कि हम या तो अशक्त हो गये हैं या हमने अपने को इस रूप में रखा है कि दूसरों द्वारा अशक्त समझे जाने लगे हैं। जरूरत से ज्यादा जो सीधे होते हैं वे बकरी की भाँति सताये जाते हैं। इसी कारण हिन्दू जाति को अनेकों प्रकार के संकटों का आये दिन सामना करना पड़ता है। हिन्दू धर्म, दया, शान्ति, क्षमा और सहिष्णुता का धर्म है। हमारी धार्मिक शिक्षाएं शान्ति का उपदेश देती हैं। यह शिक्षा बहुत ही उच्च एवं महान हैं। यह जितनी उच्च हैं, उतने ही उच्चकोटि के व्यक्तियों द्वारा प्रयोग में लाये जाने योग्य हैं।

🔷 जिस समय आर्य जाति सब प्रकार उन्नत अवस्था में थी चक्रवर्ती साम्राज्य उसके हाथ में था उस समय वह इन शिक्षाओं को चरितार्थ करने की स्थिति में थी, जिसमें बल है, जो दंड देने की योग्यता से सम्पन्न है उसी वीर को क्षमा शोभा देती है। पैर मैं चींटी काट ले तो मनुष्य चाहे तो उसे क्षणभर में मसल कर रख दे सकता है, ऐसी स्थिति में यदि वह उस चींटी के प्रति क्रोध न लावे और दया पूर्वक उसे क्षमा कर दे तो यह क्षमा उसके लिए शोभनीय है, प्रशंसा के योग्य है। परन्तु यदि कोई भयंकर भेड़िया आक्रमण कर और नृशंसता पूर्वक अपने बालकों को खाने लगे तो उसका प्रतिरोध न करना ‘क्षमा’ नहीं कही जा सकती, यह कायरता या अशक्यता ही ठहरेगी।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड-ज्योति 1946 नवम्बर पृष्ठ 3

👉 गुरुगीता (भाग 110)

👉 साधना से सिद्धि में आसन व दिशा का भी महत्त्व

🔷 इन तांत्रिक शक्तियों की प्राप्ति में आसन एवं उपयुक्त दिशा के चुनाव का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। भगवान् सदाशिव इस सत्य को चेताते हुए माता भवानी से कहते हैं-

🔶 वस्त्रासने च दारिद्रयं पाषाणे रोगसम्भवः। मेदिप्यां दुःखमाप्रोति काष्ठे भवति निष्फलम्॥ १३७ ॥
कृष्णाजिने ज्ञानसिद्धिर्मोक्षश्रीव्याघ्रचर्मणि। कुशासने ज्ञानसिद्धिः सर्वसिद्धिस्तु कम्बले॥१३८॥
कुशैर्वा दूर्वया देवि आसने शुभ्रकम्बले। उपविश्य ततो देवि जपेदेकाग्रमानसः॥ १३९॥
ध्येयं शुक्लं च शान्त्यर्थं वश्ये रक्तासनं प्रिये। अभिचारं कृष्णवर्णं पीतवर्णं धनागमे ॥ १४०॥
उत्तरे शान्तिकामस्तु वश्ये पूर्वमुखो जपेत्। दक्षिणे मारणं प्रोक्तं पश्चिमे च धनागमः॥ १४१॥

🔷 वस्त्रासन पर साधना करने से दरिद्रता आती है ; पत्थर पर साधना करने से रोग होते हैं। धरती पर बैठकर साधना करने से दुःख मिलता है और काष्ठासन पर की गई साधना निष्फल होती है॥ १३७॥ काले हरिण के चर्म पर साधना करने से ज्ञान की प्राप्ति होती हैं, व्याघ्रचर्म पर साधना करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, कुश के आसन पर साधना करने से ज्ञान सिद्ध होता है, जबकि कम्बल पर बैठकर साधना करने से सर्वसिद्धियाँ मिलती है॥१३८॥ भगवान् शिव कहते हैं- हे देवि ! इस गुरूगीता का स्वाध्याय कुश के आसन पर, दूब के आसन पर अथवा श्वेत कम्बल के आसन पर बैठकर करना उचित है ॥ १३९॥ शान्ति प्राप्ति के लिए श्वेत आसन पर वशीकरण के लिए रक्तवर्ण के आसन पर ,सम्मोहन के लिए काले आसन पर एवं धन प्राप्ति के लिए पीले आसन पर बैठकर साधना करनी चाहिए॥१४०॥ इस क्रम में उत्तर दिशा शान्ति कार्यों के लिए, पूर्व दिशा वशीकरण के लिए ,, मारण कर्म के लिए दक्षिण दिशा एवं धन प्राप्ति के लिए पश्चिम दिशा उपयुक्त मानी गयी है॥१४१॥

.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ प्रणव पंड्या
📖 गुरुगीता पृष्ठ 166

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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