आनन्द की उपलब्धि के लिए अमुक साधनों की-अमुक परिस्थितियों की आवश्यकता नहीं पड़ती। उसके लिए अपना चिन्तन और अपना स्तर ही पर्याप्त होता है। पुष्प की कोमलता, सुषमा ओर सुगन्ध ही उसे हँसते-खिलते रहने के लिए पर्याप्त हैं। उस पर किसी दूसरे द्वारा रंग पोता जाना या सुगन्ध छिड़का जाना अभीष्ट नहीं आदर्शवादी व्यक्तित्व खिले हुए सुगन्धित पुष्प की तरह है जो स्वयं भी धन्य होता है और संपर्क में आने वालों को भी आनन्द प्रदान करता है। ऐसे व्यक्तियों को देव कहा जा सकता है और उनके निवास क्षेत्र को बिना संकोच स्वर्ग घोषित किया जा सकता है। प्रखर विचारों में वह क्षमता होती ही है जिसके आधार पर संपर्क क्षेत्र को स्वर्गीय वातावरण से ओत-प्रोत किया जा सके।
अपने व्यक्तित्व को आनन्दमय बनाने के लिए संयम, सदाचार, कर्त्तव्य निष्ठा, आत्मीयता, करुणा, जैसी सद्भावनाओं को अन्तःकरण में प्रतिष्ठापित करने की आवश्यकता पड़ती है। संपर्क क्षेत्र को प्रभावित करने के लिए नम्रता, प्रामाणिकता और पुरुषार्थ परायणता जहाँ भी होगी वहाँ विविध सफलताएँ अनायास ही उपलब्ध होती रहेंगी और जन सहयोग एवं लोक सम्मान का भी अभाव न रहेगा। ऐसी परिस्थितियों को प्रत्यक्ष स्वर्ग कहा जा सकता है। इसका विनिर्मित करना किसी के लिए भी कठिन नहीं है।
गलती करना मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। यदि जाने-अनजाने हमसे किसी प्रकार की गलती हो जाती है जिसका आभास हमें नहीं हो रहा हो तो ऐसी गलती को स्वीकार कर लेना चाहिए। अपने गलती को स्वीकार कर लेने वाला व्यक्ति जीवन में पुनः गलती करने से सावधान रहता है। इसके लिए आवश्यक हैं कि अपने यहाँ पारिवारिक गोष्ठी की व्यवस्था अवश्य बना ली जाय।
अपने व्यक्तित्व को आनन्दमय बनाने के लिए संयम, सदाचार, कर्त्तव्य निष्ठा, आत्मीयता, करुणा, जैसी सद्भावनाओं को अन्तःकरण में प्रतिष्ठापित करने की आवश्यकता पड़ती है। संपर्क क्षेत्र को प्रभावित करने के लिए नम्रता, प्रामाणिकता और पुरुषार्थ परायणता जहाँ भी होगी वहाँ विविध सफलताएँ अनायास ही उपलब्ध होती रहेंगी और जन सहयोग एवं लोक सम्मान का भी अभाव न रहेगा। ऐसी परिस्थितियों को प्रत्यक्ष स्वर्ग कहा जा सकता है। इसका विनिर्मित करना किसी के लिए भी कठिन नहीं है।
गलती करना मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। यदि जाने-अनजाने हमसे किसी प्रकार की गलती हो जाती है जिसका आभास हमें नहीं हो रहा हो तो ऐसी गलती को स्वीकार कर लेना चाहिए। अपने गलती को स्वीकार कर लेने वाला व्यक्ति जीवन में पुनः गलती करने से सावधान रहता है। इसके लिए आवश्यक हैं कि अपने यहाँ पारिवारिक गोष्ठी की व्यवस्था अवश्य बना ली जाय।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
All World Gayatri Pariwar Official Social Media Platform
Shantikunj WhatsApp
8439014110
Official Facebook Page
Official Twitter
Official Instagram
Youtube Channel Rishi Chintan
Youtube Channel Shantikunjvideo
Official Telegram