गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ,
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो! भाइयो!!
🔴 देवताओं के अनुग्रह की बात आप सबने सुनी होगी। देवता नाम ही इसलिए रखा गया है कि, वे दिया करते हैं। प्राप्त करने की इच्छा से कितने ही लोग उनकी पूजा करते हैं, उपासना करते हैं, भजन करते हैं, आइए—इस पर विचार करें।
🔵 देवता देते तो हैं, इसमें कोई शक नहीं है। अगर वे देते न होते तो उनका नाम देवता न रखा गया होता। देवता का अर्थ ही होता है—देने वाला। देने वाले से अगर माँगने वाला कुछ माँगता है तो कोई बेजा बात नहीं है। पर विचार करना पड़ेगा कि, आखिर देवता देते क्या चीज हैं? देवता वही चीज देते हैं जो उनके पास है। जिसके पास जो चीज होगी, वही तो दे पाएगा। देवता के पास सिर्फ एक चीज है और उसका नाम है—देवत्व। देवत्व कहते हैं—गुण, कर्म और स्वभाव-तीनों की अच्छाई को, श्रेष्ठता को। इतना देने के बाद में देवता निश्चिन्त हो जाते हैं, निवृत्त हो जाते हैं और कहते हैं कि, जो हम आपको दे सकते थे हमने वह दे दिया। अब आपका काम है कि, जो चीज हमने दी है, उसको जहाँ भी आप मुनासिब समझें, वहाँ इस्तेमाल करें और उसी किस्म की सफलता पाएँ।
🔴 दुनिया में सफलता एक चीज के बदले में मिलती है और वह है—आदमी का उत्कृष्ट व्यक्तित्व। इससे कम में कोई चीज नहीं मिल सकती। अगर कहीं से किसी ने घटिया व्यक्तित्व की कीमत पर किसी तरीके से अपने सिक्के को भुनाए बिना, अपनी योग्यता का सबूत दिए बिना, परिश्रम के बिना, गुणों के अभाव में, कोई चीज प्राप्त कर ली है तो वह उसके पास ठहरेगी नहीं। शरीर में हजम करने की ताकत न हो तो जो खुराक आपने खाई है, वह आपको हैरान करेगी, परेशान करेगी। इसी तरह सम्पत्तियों को, सुविधाओं को हजम करने के लिए गुणों का माद्दा नहीं होगा तो वे आपको तंग करेंगी, परेशान करेंगी। अगर गुण नहीं है तो जैसे-जैसे दौलत बढ़ती जाएगी वैसे-वैसे आपके अन्दर दोष-दुर्गुण बढ़ते जाएँगे, व्यसन बढ़ते जाएँगे, अहंकार बढ़ता जाएगा और आपकी जिन्दगी को तबाह कर देगा।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो! भाइयो!!
🔴 देवताओं के अनुग्रह की बात आप सबने सुनी होगी। देवता नाम ही इसलिए रखा गया है कि, वे दिया करते हैं। प्राप्त करने की इच्छा से कितने ही लोग उनकी पूजा करते हैं, उपासना करते हैं, भजन करते हैं, आइए—इस पर विचार करें।
🔵 देवता देते तो हैं, इसमें कोई शक नहीं है। अगर वे देते न होते तो उनका नाम देवता न रखा गया होता। देवता का अर्थ ही होता है—देने वाला। देने वाले से अगर माँगने वाला कुछ माँगता है तो कोई बेजा बात नहीं है। पर विचार करना पड़ेगा कि, आखिर देवता देते क्या चीज हैं? देवता वही चीज देते हैं जो उनके पास है। जिसके पास जो चीज होगी, वही तो दे पाएगा। देवता के पास सिर्फ एक चीज है और उसका नाम है—देवत्व। देवत्व कहते हैं—गुण, कर्म और स्वभाव-तीनों की अच्छाई को, श्रेष्ठता को। इतना देने के बाद में देवता निश्चिन्त हो जाते हैं, निवृत्त हो जाते हैं और कहते हैं कि, जो हम आपको दे सकते थे हमने वह दे दिया। अब आपका काम है कि, जो चीज हमने दी है, उसको जहाँ भी आप मुनासिब समझें, वहाँ इस्तेमाल करें और उसी किस्म की सफलता पाएँ।
🔴 दुनिया में सफलता एक चीज के बदले में मिलती है और वह है—आदमी का उत्कृष्ट व्यक्तित्व। इससे कम में कोई चीज नहीं मिल सकती। अगर कहीं से किसी ने घटिया व्यक्तित्व की कीमत पर किसी तरीके से अपने सिक्के को भुनाए बिना, अपनी योग्यता का सबूत दिए बिना, परिश्रम के बिना, गुणों के अभाव में, कोई चीज प्राप्त कर ली है तो वह उसके पास ठहरेगी नहीं। शरीर में हजम करने की ताकत न हो तो जो खुराक आपने खाई है, वह आपको हैरान करेगी, परेशान करेगी। इसी तरह सम्पत्तियों को, सुविधाओं को हजम करने के लिए गुणों का माद्दा नहीं होगा तो वे आपको तंग करेंगी, परेशान करेंगी। अगर गुण नहीं है तो जैसे-जैसे दौलत बढ़ती जाएगी वैसे-वैसे आपके अन्दर दोष-दुर्गुण बढ़ते जाएँगे, व्यसन बढ़ते जाएँगे, अहंकार बढ़ता जाएगा और आपकी जिन्दगी को तबाह कर देगा।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य