शुक्रवार, 14 दिसंबर 2018

प्रभु से प्रार्थना (Kavita)


प्रभु जीवन ज्योति जगादे!
घट घट बासी! सभी घटों में, निर्मल गंगाजल हो।
हे बलशाही! तन तन में, प्रतिभापित तेरा बल हो।।

अहे सच्चिदानन्द! बहे आनन्दमयी निर्झरिणी
नन्दनवन सा शीतल इस जलती जगती का तल हो।।

सत् की सुगन्ध फैलादे।
प्रभु जीवन ज्योति जगादे।।

विश्वे देवा! अखिल विश्व यह देवों का ही घर हो।
पूषन्! इस पृथ्वी के ऊपर असुर न कोई नर हो।।

इन्द्र! इन्द्रियों की गुलाम यह आत्मा नहीं कहावे—
प्रभुका प्यारा मानव, निर्मल, शुद्ध, स्वतन्त्र, अमर हो।।

मन का तम तोम भगादे।
प्रभु जीवन ज्योति जगादे।।

इस जग में सुख शान्ति विराजे, कल्मष कलह नसावें।
दूषित दूषण भस्मसात् हों, पाप ताप मिट जावें।।

सत्य, अहिंसा, प्रेम, पुण्य जन जन के मन मन में हो।
विमल “अखण्ड ज्योति” के नीचे सब सच्चा पथ पावें।।

भूतल पर स्वर्ग वसादे।
प्रभु जीवन ज्योति जगादे।।

शकडाल भाग्यवादी (kahani)

शकडाल भाग्यवादी था। वह पुरुषार्थ की उपेक्षा करता और हर बात में भाग्य की दुहाई देता। जाति का वह कुम्भकार था। उस दिन वह अपने विश्वास की पुष्टि कराने भगवान महावीर के पास पहुँचा और अपनी मान्यता के समर्थन में उनका अभिमत प्राप्त करने की हठ करने लगा।

भगवान ने उससे उलटकर कुछ प्रश्न किये, कोई तुम्हारे बनाये बर्तन को तोड़-फोड़ करने लगे तो? कोई तुम्हारी पत्नी का शील भंग करने लगे तो? कोई तुम्हारे धन का अपहरण करने लगे तो? क्या करोगे। चुप बैठे रहोगे न?

शकडाल ने कहा-देव, ऐसा अनाचार सहन नहीं हो सकेगा, मैं उसके साथ लड़ पड़ूंगा और अच्छी तरह खबर लूँगा।

भगवान ने कहा- तो फिर तुम्हारा भाग्यवाद कहाँ रहा? मान्यता तो तब सही होती जब तक सब कुछ होते देखकर भी चुप बैठे रहते यहाँ तक कि बर्तन बनाने और रोग की चिकित्सा तक न करते। शकडाल समझ गया कि भाग्यवाद का सिद्धान्त निरर्थक है। पुरुषार्थ ही सब कुछ है। कर्म ही भाग्य बनता है।

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अवांछनीय चिंतन और चरित्र अपनाये रहने पर किसी भी पूजा-पाठ के सहारे किसी को दैवी अनुकम्पा का एक कण भी हस्तगत नहीं होता। जब पात्रता को परखे बिना भिखारियों तक को लोग दुत्कार देते हैं, तो बिना अपनी स्वयं की उत्कृष्टता सिद्ध किये कोई व्यक्ति दैवी शक्तियों को बहका-फुसला सकेगा, इसकी आशा नहीं ही करना चाहिए।

बातों का जमाना बहुत पीछे रह गया है। अब कार्य से किसी व्यकित के झूठे या सच्चे होने की परख की जायेगी। कुछ लोग आगे बढ़कर यह सिद्ध करें कि आदर्शवाद मात्र चर्चा का एक मनोरंजक विषय भर नहीं है, वरन् उसका अपनाया जाना न केवल सरल है, बल्कि हर दृष्टि से लाभदायक भी।


भाग्यवाद एवं ईश्वर की इच्छा से सब कुछ होता है- जैसी मान्यताएँ विपत्ति में असंतुलित न होने एवं संपत्ति में अहंकारी न होने के लिए एक मानसिक उपचार मात्र है। हर समय इन मान्यताओं का उपयोग अध्यात्म की आड़ में करने से तो व्यक्ति कायर, अकर्मण्य, निरुत्साही हो जाता है।

🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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