🔵 अँधेरे के लिए न तो चिंतित हों और न ही उसका चिंतन करें। अनिवार्य है, प्रकाश को प्रदीप्त करने का उपाय करना। जो लोग अंधकार का ही विचार करते रहते हैं, वे अँधेरे में ही खोए रहते हैं। उनका प्रकाश तक पहुँचना संभव नहीं।
🔴 जीवन में अँधेरा बहुत है और अँधेरे की ही भाँति अशुभ और अनीति भी छाई है। कुछ लोग इस तमस् को स्वीकार कर लेते हैं। ऐसी दशा में उनकी प्रकाश को पाने एवं उस तक पहुँचने की आकांक्षा क्षीण हो जाती है। अंधकार की यह स्वीकृति ही मनुष्य का सबसे बड़ा पाप है। यही उसका स्वयं के प्रति किया गया अपराध है। इसी से उसके दूसरे अन्य अपराधों का जन्म होता है। सभी तरह के पाप इसी मूल पाप से जन्मते एवं पनपते हैं। याद रहे कि जो व्यक्ति अपने ही प्रति इस पाप को नहीं करता है, वह कोई अन्य अपराध या पाप नहीं कर सकता है।
🔵 कतिपय लोग अंधकार की इस स्वीकृति से बचने के लिए उसके अस्वीकार में लग जाते हैं। उनका जीवन अंधकार के निषेध का ही सतत उपक्रम बन जाता है, पर यह भी एक भूल है। अंधकार को मान लेने वाला भी भूल में है, उससे लड़ने वाला भी भूल में है। न अंधकार को मानना है, न उससे लड़ना है। ये दोनों ही अज्ञान हैं। जो ज्ञानी है, वह प्रकाश को प्रदीप्त करने का आयोजन करता है। सच तो यह है कि अँधेरे की अपनी सत्ता ही नहीं है। वह तो मात्र प्रकाश का अभाव है। प्रकाश का आगमन होते ही वह अपने ही आप हट-मिट जाता है। ऐसी ही बात अशुभ, अनीति एवं अधर्म के संबंध में भी है। अशुभ को, अनीति को, अधर्म को मिटाने के लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है, इसके लिए तो बस धर्म का दीया जलाना ही पर्याप्त है। धर्म की ज्योति ही अधर्म की मृत्यु है।
🔴 अँधेरे से लड़ना तो अभाव से लड़ना है। इस तरह तो बस विक्षिप्तता ही हाथ लगती है। लड़ना है, तो प्रकाश को पाने के लिए लड़ो। प्रकाश को प्रदीप्त करने के लिए श्रम एवं मनोयोग का नियोजन करो, क्योंकि जो प्रकाश को पा लेता है, वह अंधकार को मिटा ही देता है। इसलिए अँधेरे की चिंता छोड़ें, प्रकाश को प्रदीप्त करें।
🌹 डॉ प्रणव पंड्या
🌹 जीवन पथ के प्रदीप पृष्ठ 86
🔴 जीवन में अँधेरा बहुत है और अँधेरे की ही भाँति अशुभ और अनीति भी छाई है। कुछ लोग इस तमस् को स्वीकार कर लेते हैं। ऐसी दशा में उनकी प्रकाश को पाने एवं उस तक पहुँचने की आकांक्षा क्षीण हो जाती है। अंधकार की यह स्वीकृति ही मनुष्य का सबसे बड़ा पाप है। यही उसका स्वयं के प्रति किया गया अपराध है। इसी से उसके दूसरे अन्य अपराधों का जन्म होता है। सभी तरह के पाप इसी मूल पाप से जन्मते एवं पनपते हैं। याद रहे कि जो व्यक्ति अपने ही प्रति इस पाप को नहीं करता है, वह कोई अन्य अपराध या पाप नहीं कर सकता है।
🔵 कतिपय लोग अंधकार की इस स्वीकृति से बचने के लिए उसके अस्वीकार में लग जाते हैं। उनका जीवन अंधकार के निषेध का ही सतत उपक्रम बन जाता है, पर यह भी एक भूल है। अंधकार को मान लेने वाला भी भूल में है, उससे लड़ने वाला भी भूल में है। न अंधकार को मानना है, न उससे लड़ना है। ये दोनों ही अज्ञान हैं। जो ज्ञानी है, वह प्रकाश को प्रदीप्त करने का आयोजन करता है। सच तो यह है कि अँधेरे की अपनी सत्ता ही नहीं है। वह तो मात्र प्रकाश का अभाव है। प्रकाश का आगमन होते ही वह अपने ही आप हट-मिट जाता है। ऐसी ही बात अशुभ, अनीति एवं अधर्म के संबंध में भी है। अशुभ को, अनीति को, अधर्म को मिटाने के लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है, इसके लिए तो बस धर्म का दीया जलाना ही पर्याप्त है। धर्म की ज्योति ही अधर्म की मृत्यु है।
🔴 अँधेरे से लड़ना तो अभाव से लड़ना है। इस तरह तो बस विक्षिप्तता ही हाथ लगती है। लड़ना है, तो प्रकाश को पाने के लिए लड़ो। प्रकाश को प्रदीप्त करने के लिए श्रम एवं मनोयोग का नियोजन करो, क्योंकि जो प्रकाश को पा लेता है, वह अंधकार को मिटा ही देता है। इसलिए अँधेरे की चिंता छोड़ें, प्रकाश को प्रदीप्त करें।
🌹 डॉ प्रणव पंड्या
🌹 जीवन पथ के प्रदीप पृष्ठ 86