🔶 इसके लिए हमको नित्य ही आत्म-निरीक्षण करना चाहिए। अपनी गलतियों पर गौर करना चाहिए। उनको सुधारने के लिए कमर कसनी चाहिए और अपने आपका निर्माण करने के लिए आगे बढ़ना और जो अपने आपका निर्माण करने के लिए आगे बढ़ना और जो कमियाँ हमारे स्वभाव के अन्दर हैं, उन्हें दूर करने के लिए जुटे रहना चाहिए। आत्म-विकास इसका एक हिस्सा है। हमको अपनी संकीर्णता में सीमित नहीं रहना चाहिए। अपने अहं को और अपनी स्वार्थपरता को, अपने हितों को व्यापक दृष्टि से बाँट देना चाहिए।
🔷 दूसरों के दुःख हमारे दुःख हों, दूसरों के सुखों में हम सुखी रहें, इस तरह की वृत्तियों का हम विकास कर सकें तो कहा जाएगा कि हमने जीवन-साधना करने के लिए जितना प्रयास किया, उतनी सफलता पाई। साधना से सिद्धि की बात में सन्देह की गुंजाइश नहीं है। अन्य किसी बात में सन्देह की गुंजाइश भी है, देवी-देवताओं की उपासना करने पर हमको फल मिले न मिले, कह नहीं सकते, लेकिन जीवन की साधना करने का परिणाम निश्चित रूप से भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही जीवनों में लाभ के रूप में देखा जा सकता है। यह साधना के बारे में निवेदन किया गया।
🔶 दूसरा है— स्वाध्याय। मन की मलीनता को धोने के लिए स्वाध्याय अति आवश्यक है। दृष्टिकोण और विचार प्रायः वही जमे रहते हैं हमारे मस्तिष्क में, जो कि बहुत दिनों से पारिवारिक और अपने मित्रों के सान्निध्य में हमने सीखे और जाने। अब हमको श्रेष्ठ पुरुषों का सत्संग करना चाहिए। चारों ओर हम जिस वातावरण से घिरे हुए हैं, वह हमको नीचे की ओर गिराता है। पानी का स्वभाव नीचे गिरने की तरफ होता है। हमारा स्वाभाविक स्वभाव ही ऐसा होता है, जो नीचे स्तर के कामों की तरफ, निकृष्ट उद्देश्य के लिए आसानी से लुढ़क जाता है।
🔷 चारों तरफ का वातावरण जिसमें हमारे कुटुम्बी भी शामिल हैं, मित्र भी शामिल हैं, घरवाले भी शामिल हैं, हमेशा इस बात के लिए दबाव डालते हैं, कि हमको किसी भी प्रकार से किसी भी कीमत पर भौतिक सफलताएँ पा लेनी चाहिए। चाहे उसके लिए नीति बरतनी पड़े अथवा अनीति का आश्रय लेना पड़े ।। हर जगह से यही शिक्षण हमको मिलता है। सारे वातावरण में इसी तरह की हवा फैली हुई है और यही गन्दगी हमें प्रभावित करती हैं। हमारी गिरावट के लिए काफी वातावरण विद्यमान है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य (अमृतवाणी)
🔷 दूसरों के दुःख हमारे दुःख हों, दूसरों के सुखों में हम सुखी रहें, इस तरह की वृत्तियों का हम विकास कर सकें तो कहा जाएगा कि हमने जीवन-साधना करने के लिए जितना प्रयास किया, उतनी सफलता पाई। साधना से सिद्धि की बात में सन्देह की गुंजाइश नहीं है। अन्य किसी बात में सन्देह की गुंजाइश भी है, देवी-देवताओं की उपासना करने पर हमको फल मिले न मिले, कह नहीं सकते, लेकिन जीवन की साधना करने का परिणाम निश्चित रूप से भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही जीवनों में लाभ के रूप में देखा जा सकता है। यह साधना के बारे में निवेदन किया गया।
🔶 दूसरा है— स्वाध्याय। मन की मलीनता को धोने के लिए स्वाध्याय अति आवश्यक है। दृष्टिकोण और विचार प्रायः वही जमे रहते हैं हमारे मस्तिष्क में, जो कि बहुत दिनों से पारिवारिक और अपने मित्रों के सान्निध्य में हमने सीखे और जाने। अब हमको श्रेष्ठ पुरुषों का सत्संग करना चाहिए। चारों ओर हम जिस वातावरण से घिरे हुए हैं, वह हमको नीचे की ओर गिराता है। पानी का स्वभाव नीचे गिरने की तरफ होता है। हमारा स्वाभाविक स्वभाव ही ऐसा होता है, जो नीचे स्तर के कामों की तरफ, निकृष्ट उद्देश्य के लिए आसानी से लुढ़क जाता है।
🔷 चारों तरफ का वातावरण जिसमें हमारे कुटुम्बी भी शामिल हैं, मित्र भी शामिल हैं, घरवाले भी शामिल हैं, हमेशा इस बात के लिए दबाव डालते हैं, कि हमको किसी भी प्रकार से किसी भी कीमत पर भौतिक सफलताएँ पा लेनी चाहिए। चाहे उसके लिए नीति बरतनी पड़े अथवा अनीति का आश्रय लेना पड़े ।। हर जगह से यही शिक्षण हमको मिलता है। सारे वातावरण में इसी तरह की हवा फैली हुई है और यही गन्दगी हमें प्रभावित करती हैं। हमारी गिरावट के लिए काफी वातावरण विद्यमान है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य (अमृतवाणी)