वृद्धों का चिड़चिड़ापन और परिवार के अन्य व्यक्ति
प्रायः देखा गया है कि आयुवृद्धि के साथ-साथ वृद्ध चिड़चिड़े, नाराज होने वाले, सनकी क्रोधी और सठिया जाते हैं। वे तनिक सी असावधानी से नाराज हो जाते हैं और कभी-कभी अपशब्दों का भी उच्चारण कर बैठते हैं। ऐसे वृद्ध क्रोध के नहीं, हमारी दया और सहानुभूति के पात्र हैं। वे अज्ञान में हैं और हमें उनके साथ वही आचरण करना उचित है, जैसा बच्चों के साथ। उनकी विवेकशील योजनाओं तथा अनुभव से लाभ उठाना चाहिए और उनकी मूर्खताओं को उदारतापूर्वक क्षमा करना चाहिए।
वृद्धों को परिवार के अन्य व्यक्तियों के प्रेम और सहयोग की आवश्यकता है। हमें उनसे प्रीति करना, जितना हो सके आज्ञा पालन, प्रतिष्ठा उनके स्वास्थ्य का संरक्षण ही उचित है, खाने के लिए, कपड़ों के लिए तथा थोड़े से आराम के लिए वह परिवार के अन्य व्यक्तियों की सहानुभूति की आकाँक्षा करता है। उसने अपने यौवन काल में परिवार के लिए जो श्रम और बलिदान किए हैं, अब उसी त्याग का बदला हमें अधिक से अधिक देना उचित है।
परिवार के संचालन की कुँजी उत्तम संगठन है। प्रत्येक व्यक्ति यदि सामूहिक उन्नति में सहयोग प्रदान करे, अपने श्रम से अर्थ संग्राम करे, दूसरों की उन्नति में सहयोग प्रदान करे। सब के लिए अपने व्यक्तिगत स्वार्थों का बलिदान करता रहे, तो बहुत कार्य हो सकता है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी 1951 पृष्ठ 23
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1951/January/v1.23
प्रायः देखा गया है कि आयुवृद्धि के साथ-साथ वृद्ध चिड़चिड़े, नाराज होने वाले, सनकी क्रोधी और सठिया जाते हैं। वे तनिक सी असावधानी से नाराज हो जाते हैं और कभी-कभी अपशब्दों का भी उच्चारण कर बैठते हैं। ऐसे वृद्ध क्रोध के नहीं, हमारी दया और सहानुभूति के पात्र हैं। वे अज्ञान में हैं और हमें उनके साथ वही आचरण करना उचित है, जैसा बच्चों के साथ। उनकी विवेकशील योजनाओं तथा अनुभव से लाभ उठाना चाहिए और उनकी मूर्खताओं को उदारतापूर्वक क्षमा करना चाहिए।
वृद्धों को परिवार के अन्य व्यक्तियों के प्रेम और सहयोग की आवश्यकता है। हमें उनसे प्रीति करना, जितना हो सके आज्ञा पालन, प्रतिष्ठा उनके स्वास्थ्य का संरक्षण ही उचित है, खाने के लिए, कपड़ों के लिए तथा थोड़े से आराम के लिए वह परिवार के अन्य व्यक्तियों की सहानुभूति की आकाँक्षा करता है। उसने अपने यौवन काल में परिवार के लिए जो श्रम और बलिदान किए हैं, अब उसी त्याग का बदला हमें अधिक से अधिक देना उचित है।
परिवार के संचालन की कुँजी उत्तम संगठन है। प्रत्येक व्यक्ति यदि सामूहिक उन्नति में सहयोग प्रदान करे, अपने श्रम से अर्थ संग्राम करे, दूसरों की उन्नति में सहयोग प्रदान करे। सब के लिए अपने व्यक्तिगत स्वार्थों का बलिदान करता रहे, तो बहुत कार्य हो सकता है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी 1951 पृष्ठ 23
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1951/January/v1.23