🔷 देवरात का पुत्र ब्रह्रारात बाल्यावस्था से ही बड़ा मेधावी, कुशाग्र बुद्धि और कर्मशील था। उसकी माता ने उसे विद्याध्ययन के लिए अपने भाई वैशम्पायन ऋषि के पास भेज दिया था। वहाँ कुछ ही समय में उसने समस्त शिक्षा प्राप्त कर ली और गुरु की सेवा भी इतनी संलग्नता के साथ की कि वे उस पर बड़े प्रसन्न रहने लगे। एक दिन घटना वंश गुरु जी को ऋषि सभा में जाने में देर हो गई और जब वे जल्दी जल्दी जाने लगे तो भूल से एक छोटे शिशु पर पैर पड़ जाने से वह मर गया। इस पाप का प्रायश्चित करने की आज्ञा उन्होंने शिष्यों को दी।
🔶 ब्रह्रारात ने प्रार्थना की कि ये शिष्य असमर्थ है अगर आज्ञा हो तो मैं अकेला ही प्रायश्चित को पूर्ण कर दूँ। उसकी बात को अभिमान पूर्ण समझ कर वैशम्पायन बड़े क्रोध में आये और बोले कि तुझमें ऐसी ही सामर्थ्य है तो मेरी पढ़ाई यजुर्वेद विद्या को वापस कर दे। ब्रह्रारात ने उसे वमन कर दिया जिसे अन्य शिष्य तीतर बनकर चुग गये जिससे उसका नाम ‘तैत्तिरीय’ शाखा पड़ गया। तत्पश्चात ब्रह्ररात ने मानव गुरुओं से विरक्त होकर सूर्य की उपासना से स्वयं ही वेद विद्या को प्राप्त किया और उसका नाम माध्यन्दिनी शाखा रखा। उस समय से ब्रह्रारात का नाम याज्ञवल्क्य हो गया और वे अपने समय के सर्वश्रेष्ठ वेदवेदान्त और ब्रह्मविद्या के ज्ञाता माने गये। बाद में श्रेष्ठ ज्ञानी राजा जनक ने उनको अपना गुरु बनाया। उन्होंने अपने उदाहरण से दिखला दिया कि जो व्यक्ति अध्ययन और मनन में निरन्तर संलग्न रहेगा, वह सब प्रकार के ज्ञान को निश्चय ही प्राप्त कर सकता है।
📖 अखण्ड ज्योति 1961 जुलाई
🔶 ब्रह्रारात ने प्रार्थना की कि ये शिष्य असमर्थ है अगर आज्ञा हो तो मैं अकेला ही प्रायश्चित को पूर्ण कर दूँ। उसकी बात को अभिमान पूर्ण समझ कर वैशम्पायन बड़े क्रोध में आये और बोले कि तुझमें ऐसी ही सामर्थ्य है तो मेरी पढ़ाई यजुर्वेद विद्या को वापस कर दे। ब्रह्रारात ने उसे वमन कर दिया जिसे अन्य शिष्य तीतर बनकर चुग गये जिससे उसका नाम ‘तैत्तिरीय’ शाखा पड़ गया। तत्पश्चात ब्रह्ररात ने मानव गुरुओं से विरक्त होकर सूर्य की उपासना से स्वयं ही वेद विद्या को प्राप्त किया और उसका नाम माध्यन्दिनी शाखा रखा। उस समय से ब्रह्रारात का नाम याज्ञवल्क्य हो गया और वे अपने समय के सर्वश्रेष्ठ वेदवेदान्त और ब्रह्मविद्या के ज्ञाता माने गये। बाद में श्रेष्ठ ज्ञानी राजा जनक ने उनको अपना गुरु बनाया। उन्होंने अपने उदाहरण से दिखला दिया कि जो व्यक्ति अध्ययन और मनन में निरन्तर संलग्न रहेगा, वह सब प्रकार के ज्ञान को निश्चय ही प्राप्त कर सकता है।
📖 अखण्ड ज्योति 1961 जुलाई