🔴 श्रीकृष्ण ने अर्जुन का रथ चलाया था, आपका रथ हम चलाएँगे। काहे का रथ? आपके कारोबार का रथ, आपके व्यापार का रथ? आपके धन्धे का रथ, आपके शरीर का रथ, आपकी गृहस्थी का रथ-यह सब हम चलायेंगे, इसका हम वायदा करते हैं, लेकिन साथ-साथ आपसे यह निवेदन भी करते हैं कि आप हमारे रास्ते पर आइए, साथ-साथ चलिए। हमारे कन्धे से कन्धा मिलाइए। इसमें आपको कोई नुकसान नहीं होगा। आप यह यकीन रखिए हमने उन विरोधियों को मारकर रखा है और विजय की माला आपके लिए गूँथकर रखी है। पाँचों पाण्डवों के लिए विजय की मालाएँ बनी हुई रखी थीं। आपको पहनना है, आपको श्रेय भर लेना है।
🔵 यह जो नवयुग का क्रम चल रहा है, उसमें जब आप भागीदार होंगे तो श्रेय आपको ही मिलेगा। आप पूछें-गुरुजी हमारे बीबी-बच्चों का क्या होगा? बेटे, उनकी जिम्मेदारी हमारी है। यदि वे बीमार रहते हैं तो हम उनकी बीमारियाँ दूर कर देंगे। व्यापार में नुकसान होता है तो तेरे उस नुकसान को पूरा करना हमारी जिम्मेदारी है। तेरे व्यापार में जो घाटा पड़ जाए तो तू हमसे वसूल ले जाना। लेकिन जब बच्चा बड़ा हो जाता है, तब कुछ बड़ी चीज दी जाती है जो छोटे बच्चे को नहीं दी जा सकती। अब आप जवान हो गए हैं। अब हम सबको काम-धन्धे से लगाएँगे और जो हमारे पास बाकी बचा है वह भी आप सबको बाँट देंगे। नहीं गुरुजी, जब आप जाएँगे तब अपनी कमाई भी अपने संग ले जाएँगे? बेटे, हम ऐसा नहीं करेंगे। हम आपको देकर जाएँगे। चाहे वह पुण्य की कमाई हो, चाहे वह सांसारिक कमाई हो, चाहे आध्यात्मिक कमाई हो। उस कमाई में तुम्हारा हिस्सा है।
🔴 साथियो ! हमने जीवन भर दिया है। बाप-दादों की दो हजार बीघे जमीन थी, वह हम दे आए और स्त्री के पास जेवर था, वह भी हम दान में दे आए। बच्चों की गुल्लक में पैसे थे वह भी हम दे आए। अब आपके पास कुछ और धन है? नहीं बेटे, धन के नाम पर एक कानी कौड़ी का लाखवाँ हिस्सा भी हमारे पास नहीं है। आपको तलाशी लेना हो या मरने के बाद पता लगाना हो कि गुरुजी के पास क्या मिला, तो मालूम पड़ेगा कि शान्तिकुञ्ज में एक ऋषि रहा करता था और यहाँ की रोटी खाया करता था। बेटे, धन के नाम पर हमारे पास कुछ भी नहीं है, लेकिन हाँ एक पूँजी है हमारे पास, यदि वह न होती तो हम इतनी बड़ी बात क्यों कहते? हमारे पास वह पूँजी है तप की, जिसको हम सामान्य क्लास का कहते हैं। जिससे हम आपकी मुसीबतों में, कठिनाइयों में सहायता कर सकते हैं।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य (अमृतवाणी)
🔵 यह जो नवयुग का क्रम चल रहा है, उसमें जब आप भागीदार होंगे तो श्रेय आपको ही मिलेगा। आप पूछें-गुरुजी हमारे बीबी-बच्चों का क्या होगा? बेटे, उनकी जिम्मेदारी हमारी है। यदि वे बीमार रहते हैं तो हम उनकी बीमारियाँ दूर कर देंगे। व्यापार में नुकसान होता है तो तेरे उस नुकसान को पूरा करना हमारी जिम्मेदारी है। तेरे व्यापार में जो घाटा पड़ जाए तो तू हमसे वसूल ले जाना। लेकिन जब बच्चा बड़ा हो जाता है, तब कुछ बड़ी चीज दी जाती है जो छोटे बच्चे को नहीं दी जा सकती। अब आप जवान हो गए हैं। अब हम सबको काम-धन्धे से लगाएँगे और जो हमारे पास बाकी बचा है वह भी आप सबको बाँट देंगे। नहीं गुरुजी, जब आप जाएँगे तब अपनी कमाई भी अपने संग ले जाएँगे? बेटे, हम ऐसा नहीं करेंगे। हम आपको देकर जाएँगे। चाहे वह पुण्य की कमाई हो, चाहे वह सांसारिक कमाई हो, चाहे आध्यात्मिक कमाई हो। उस कमाई में तुम्हारा हिस्सा है।
🔴 साथियो ! हमने जीवन भर दिया है। बाप-दादों की दो हजार बीघे जमीन थी, वह हम दे आए और स्त्री के पास जेवर था, वह भी हम दान में दे आए। बच्चों की गुल्लक में पैसे थे वह भी हम दे आए। अब आपके पास कुछ और धन है? नहीं बेटे, धन के नाम पर एक कानी कौड़ी का लाखवाँ हिस्सा भी हमारे पास नहीं है। आपको तलाशी लेना हो या मरने के बाद पता लगाना हो कि गुरुजी के पास क्या मिला, तो मालूम पड़ेगा कि शान्तिकुञ्ज में एक ऋषि रहा करता था और यहाँ की रोटी खाया करता था। बेटे, धन के नाम पर हमारे पास कुछ भी नहीं है, लेकिन हाँ एक पूँजी है हमारे पास, यदि वह न होती तो हम इतनी बड़ी बात क्यों कहते? हमारे पास वह पूँजी है तप की, जिसको हम सामान्य क्लास का कहते हैं। जिससे हम आपकी मुसीबतों में, कठिनाइयों में सहायता कर सकते हैं।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य (अमृतवाणी)