रविवार, 22 अक्टूबर 2017

👉 Sowing and Reaping (Investment & its Returns) (Last Part)

🔵 Don’t forget to visit my KACHCHA house, if you go to my village sometime in future. All the houses that time in village were KACCHCHE, so was mine also. With passage of time it was leveled on ground out of wear and tear. But here we live in houses made of bricks, the grand houses.
 
🔴 I have constructed GAYATRI TAPOBHUMI; just see how grand this is. It required millions of rupees. Also have a look at my house, the office of AKHAND-JYOTI and the press. Why to stop there, just visit SHANTIKUNJ to see its grandness. GAYATRI NAGAR, BRAMHVARCHAS and 2400 GAYATRI power seats (SHAKTIPEETH) are other additions to my progress I made after having invested all my resources made available to me by BHAGWAN in the form of labour, mind and feeling as also the ancestral money and property.  This is all about buildings only. But there are about 200 persons each in TAPOBHUMI and SHANTIKUNJ also living in these buildings on permanent basis. Where from comes the money to meet their requirements of food and maintenance? I do not know from where.                        
 
🔵 I never feel short of money. When the need be, I just hint to BHAGWAN and he in no time sends to me all that is required. For BHAGWAN every man is on equal footing. Applies to other also what applies to me. BHAGWAN is not bothered about having a soft corner for me and any enmity with you. Mechanism, but is the same as was told to me. My GURUDEV told me a method only to be adopted by me in letter and spirit and for this I am thankful to my GURUDEV. I tell you the same, teach you the same and hint you the same to proceed on the same way as I have proceeded on. You too will be obliged and delighted.

What else I should tell you? Finished, Today’s session.

🌹 Pt Shriram Sharma Aachrya

👉 देवत्व विकसित करें, कालनेमि न बनें (अन्तिम भाग)

🔴 आज और कुछ नहीं कहना है, केवल इतना ही कहना है कि जो हमारे बच्चे हैं, जिनको हमने पैदा किया है, पाला है, वे हमारी छाती से अलग न होने पावें। आप हमारी छाती से अलग हो जाएँगे तो हमें बहुत दुःख होगा, कष्ट होगा। किसी और बात से हमें दुःख नहीं होगा, पर जब ये छोटे-छोटे बच्चे जिनसे हमने बड़ी उम्मीदें लगाकर रखी हैं, वे अगर बागी होते दीखेंगे, विरोधी होते दीखेंगे तो हमें बेहद कष्ट होगा। कालनेमि से तो कहना ही क्या है वह तो भगवान ने ही बनाया है। अगर वह न होते तो लंका का सत्यानाश न होता। रावण सीताजी को नहीं चुराता, यह कालनेमि की माया ही थी अन्यथा किसकी हिम्मत थी जो रावण सहित लंका का सफाया करता।
      
🔵 जहाँ कहीं भी कालनेमि गया वहीं हाहाकार पैदा किया। बस चौथी बात यही कहनी है कि हमारा कोई चोर, कोई बाबाजी इन्हें अपनी झोली में डालकर ले जाएगा तो हमको दुःख होगा कि हमारा प्यारा बच्चा हमसे दूर हो गया। कितना कष्ट होगा आप नहीं समझते? आपने तो नेतागिरी देखी। पार्टियों की फजीहत देखी है कि किस तरीके से फूट डाली जाती है और कैसे अलग किया जाता है? आपने तो यही किस्से देखे हैं, वे किस्से नहीं देखे हैं कि मिल-जुलकर कैसे रहते हैं? एक होकर कैसे रहते हैं?

🔴 चार बातें हो गईं बेटा, अच्छा ध्यान रखना। हमने एक बात तो यह कही है कि आप रीछ-वानर के रूप में देवता हैं। दूसरी यह कि तुम्हें श्रेय देने के लिए दुश्मनों को मारकर रख दिया है और तुम्हारे लिए राजसिंहासन बनाकर रख दिया है। तुम उसको ग्रहण करना। तीसरी बात यह कि तुम अपनी व्यक्तिगत कठिनाइयों के बारे में परेशान मत होना। तुम्हारी व्यक्तिगत कठिनाइयाँ कौन हल करेगा? हमारा पुण्य, हमारा तप करेगा। हमारा पुण्य जो पिछले समय से आया है, वह हर एक के काम आयेगा और किसी के काम नहीं आयेगा। हमारा काम रुकने वाला नहीं है, वह बढ़ाता ही जाएगा। बस आप तो अपने आपको कालनेमि से बचाए रखना।

🔵 बहक जाएँगे तो हमें दुःख होगा कि हमारा कैसा प्यारा बच्चा था? कितने प्यार और मोहब्बत से इसको हमने पाला था और देखो आज यह कहाँ फिर रहा है? चोरों के यहाँ फिर रहा है, भिखारियों के यहाँ फिर रहा है। कहाँ-कहाँ धक्के खा रहा है। ऐसा आप लोग मत करना। यह चार बातें कहनी थीं आपसे। बसन्त पंचमी के बाद अब व्याख्यान दिया है। आज इतना ही बहुत है। इन्हीं बातों पर बार-बार विचार करना। आपके काम की देख−भाल हम करेंगे। आप देवता हैं, ध्यान रखना। आपको श्रेय लेना है, सिंहासन लेना है। आपको नेता बनना है और किसी झोली वाले बाबाजी से होशियार रहना है कि वह झोली में डालकर भाग खड़ा नहीं हो।
बस आपसे विदा लेते हैं।
ॐ शान्ति।
 
🌹 समाप्त
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य (अमृतवाणी)

👉 आत्मचिंतन के क्षण 22 Oct 2017

🔵 टालने की आदत से मुक्त होने के लिए मनुष्य को मन की सबल भावना से काम लेना चाहिए। आप मन में यह दृढ़ विचार कीजिये कि आप में पूरी योग्यताएं हैं, बुद्धि अत्यन्त कुशाग्र है, योग्यता भरी पड़ी है, आप प्रत्येक कार्य करने के लिए प्रस्तुत रहते हैं, आलस्य में आप संभव का अपव्यय नहीं करते वरन् तुरन्त काम को पूरा करने में जुट जाते है। आप आलस्य में डालकर अपने मस्तिष्क के जीवाणुओं को मृतप्राय नहीं करना चाहते वरन् उनका अधिकाधिक उपयोग कर उन्हें और सशक्त बनाते हैं।

🔴 हमारे अन्तःकरण में सत्य, प्रेम, न्याय, त्याग, उदारता, संयम, परमार्थ आदि की उच्च भावनाओं का होना आवश्यक है, उनकी जितनी अधिक मात्रा हो उतना ही उत्तम है, पर संसार के उन व्यक्तियों के साथ जो अभी अज्ञान या पाप के ज्वर से बेतरह पीड़ित हो रहे हैं, काफी सावधानी बरतने की आवश्यकता है। उनकी आत्मा का कल्याण हो, वे अनीति से छूटें, इस भावना के साथ यदि उन्हें भय या लोभ से प्रभावित करके सन्मार्ग पर लाया जा सके तो उसमें डरने की कोई बात नहीं है।

🔵 यदि अपने को श्रेष्ठ बनाना है तो सदा श्रेष्ठ मनुष्यों के संपर्क में रहना, श्रेष्ठ पुस्तकें पढ़ना, श्रेष्ठ बातें सोचना, श्रेष्ठ घटनायें देखना, श्रेष्ठ कार्य करना आवश्यक है। दूसरों में जो श्रेष्ठताएं उनकी कद्र करना और उन्हें अपनाना, श्रेष्ठता में श्रद्धा रखना यह सब बातें उन लोगों के लिए बहुत आवश्यक हैं जो अपने को श्रेष्ठ बनाना चाहते हैं।

🔴 चाहे दूसरों का दुख कोई सन्त सहे चाहे पापी स्वयं सहे। हर हालत में दुखों का कारण पाप ही है। इसलिए जिन्हें दुख का भय है और सुख की इच्छा है उन्हें चाहिए कि पापों से बचे, दूसरों को बचावें और भूतकाल के पापों के लिए प्रायश्चित करें।

🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 महान कर्मयोगी स्वामी विवेकानन्द (भाग 1)

🔴 हिन्दू धर्म में अनेक प्रकार की साधन-प्रणालियाँ प्रचलित है, जिनका उद्देश्य आत्मा की उन्नति के पथ पर अग्रसर होते हुए जीवनमुक्ति की स्थिति को प्राप्त करना बतलाया गया है। अगर विभिन्न सम्प्रदायों और पंथों की दृष्टि से विचार किया जाय तो इन प्रणालियों की संख्या सैंकड़ों तक गिनी जा सकती है, पर जिन प्रणालियों को सब प्रकार के विचारों के विद्वानों ने सर्व सम्मति से श्रेष्ठ और प्रभावशाली स्वीकार किया है वे तीन है- कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग। कर्म योग का अर्थ है निष्काम भाव से परोपकार और सेवा के कार्य करना। परमात्मा के प्रति एकान्त भाव से भक्तिभाव रखते हुये परमार्थ करना भक्तियोग है।

🔵 ज्ञान मूलक कर्म द्वारा भगवान प्राप्ति का प्रयत्न करना ज्ञान योग हे। इस प्रकार बाह्य दृष्टि ये तीन पृथक् पृथक् मार्ग है, पर वास्तव में सबका उद्देश्य लोक सेवा और परपीडा निवारण ही माना गया है। अब तक के उदाहरणों पर विचार करने से हमको तो यही दिखलाई देता है कि जिन साम्प्रदायिक विद्वानों अथवा आचार्यों ने इन तीनों की विभिन्नता और किसी एक मार्ग की श्रेष्ठता का आग्रह किया है, उन्होंने विवाद के अतिरिक्त वास्तव में लोकोपकार का कोई कार्य नहीं किया, जब कि वास्तविक कार्य करने वाले महापुरुषों ने कभी इस बात पर विचार ही नहीं किया कि इनमें से कौन मार्ग श्रेष्ठ और कौन साधारण है, अथवा हम किसका अनुसरण करें?

🔴 स्वामी विवेकानन्द एक ऐसे ही महापुरुष थे। उनका जीवन आरम्भ से ही आध्यात्मिक नहीं था और एक समय था जब कि वे ईश्वर के अस्तित्व में भी संदेह प्रकट किया करते थे, पर तब भी उनमें निष्कामभाव से सेवाकार्य की भावना मौजूद थी। स्कूल और कालेज में पढ़ते समय से ही वे आवश्यकता पड़ने पर अपने सभी साथियों की हर प्रकार से सहायता करने में दत्तचित्त रहते थे। इसके पश्चात् जब श्रीरामकृष्ण परमहंस के सम्पर्क में आये तब भी उन्होंने अपने समस्त गुरुभाइयों की सेवा करनी और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये स्वयं अधिक से अधिक परिश्रम और प्रयत्न करना ही अपना लक्ष्य रखा।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 श्री भारतीय योगी
🌹 अखण्ड ज्योति- जून 1945 पृष्ठ 27
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1961/June/v1.27

👉 आज का सद्चिंतन 22 Oct 2017


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 22 Oct 2017


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