मंगलवार, 6 फ़रवरी 2024

👉 आत्मचिंतन के क्षण 6 Feb 2024

■ हे मनुष्य! इस संसार में दुःख का कारण असन्तोष है और सन्तोष ही सुख है। जिन्हें सुख की क ामना हो, वे सन्तुष्ट रहा करें। सन्तोष एक महान् अध्यात्मिक भाव है, जो मनुष्य के हृदय की विशालता को व्यक्त करता है। धैर्य, सहन शक्ति, त्याग और उदारता ये सब सन्तोष का अनुगमन करते हैं। सन्तोषी पुरुषों में शेष सभी सद्गुण और शुभ संस्कार स्वतः आ जाते हैं।

□ क्रोधो वैवस्वतो राजा तृष्णा वैतरणी नदी। विद्या कामदुधा धेनुः सन्तोषो नंदनं वनम्। अर्थात् मनुष्य का विनाश क्रोध के कारण होता है और तृष्णा वैतरणी नदी के समान है, जिसका कभी अन्त नहीं होता। विद्या कामधेनु के समान है तथा सन्तोष नन्दन वन के समान है।

◆ विज्ञान और अध्यात्म अन्योन्याश्रित है। एक दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरे की गति नहीं। विचार आौर कार्य, विश्वास और श्रद्धा, शंका और निराशा, ज्ञान और कर्तव्य, व्यक्ति और समाज, पदार्थ और आत्मा जाति और सभ्यता, कथा और इतिहास, प्रेम और घृणा, त्याग और भक्ति जैसे असंख्य प्रश्न के सन्दर्भ में अध्यात्म द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखकर शोध करना चाहिए और जो निष्कर्ष सामने आये, उनसे मानव जाति को लाभान्वित करना चाहिए।

◇ व्यक्ति श्रेष्ठ ही सोचे, उसी दिशा में आगे बढ़े यही प्रेरणा सभी महामानवों की रही है। न केवल समय का ध्यान हमें रखना है वरन इस तथ्य का भी कि राह में कण्टक भी बिछे हो, अगणित कष्ट सहने पड़ सकते हैं। कष्ट तो आयेंगे, प्रतिकूलताओं का भी सामना करना होना पर हमें लक्ष्य नही भूलना है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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