त्याग और सेवा द्वारा सच्चे प्रेम का प्रमाण दीजिए।
आज नहीं तो कल, हँसकर नहीं तो रोकर आपको किसी दिन त्याग करना ही पडेगा। आप इकट्ठा करते हैं संसार की संपदाएँ अपनी मुट्ठी मैं बाँध लेते हैं' परंतु प्रकृति यह पसंद नहीं करती कि उसकी चलती-फिरती चीजों पर एक व्यक्ति कब्जा करके बैठ जाए वह आपका गला दबा कर मुट्ठी खुलवा लेती है। जब आप कहते हैं कि' ' नहीं मैं न दूँगा। ' उसी क्षण जोर की चपत पडती है और अाप घायल हो जाते है। संसार में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो प्रत्येक वस्तु को देने, परित्याग करने के लिए बाध्य न हो। इस अखंड नियम प्रतिकूल आचरण करने के लिए जो जितना ही प्रयत्न करेगा वह अपने को उतना ही दुःखी अनुभव करेगा।
शास्त्र कहते हैं कि मनुष्य जीवन में परोपकार ही सार है, हमें सदैव परोपकार में रत रहना चाहिए। किंतु यह अभिमान, दंभ या कीर्ति के लिए नहीं, आत्म कल्याण के लिए होना चाहिए। मेरे कारण दूसरों का भला हुआ यह सोचना मूर्खता है। हमारे बिना संसार का कोई कार्य अटका न रहेगा। पैदा होने से पहले संसार का सब काम ठीक-ठीक चल रहा था और हमारे बाद भी वैसा ही चलता रहेगा। परमात्मा इतना गरीब नहीं है कि हमारी मदद के बिना उसका काम न चला सके। किसी भिखारी को हमारे ही देने की बड़ी भारी आवश्यकता नहीं है, वह हमारी एक रोटी के बिना भूखा न मर जाएगा।
सच पूछे तो जिसने हमें उपकार करने का अवसर दिया है उसका कृतज्ञ होना चाहिए। हमारी उपकार बुद्धि जाग्रत करके वह हमें ऋणी कर देता है। इससे जो मानसिक उन्नति होती है और आत्मा को जो शक्ति प्राप्ति होती है वह दान लेने वाले को नहीं वरन देने वाले को प्राप्त होती है। दूसरों का उपकार करना मानो एक प्रकार से अपना ही कल्याण करना है। किसी को एक पैसा देकर हम भला उसका कितना भला कर सकते हैं? किंतु उसकी अपेक्षा अपना भला हजारों गुना कर लेते हैं। हमारी उदारता का विकास न होने से संसार को रत्ती भर भी हर्ज न होगा किंतु हमारा ही आनंद स्रोत नष्ट हो जाएगा इसलिए आप परोपकार को अपना जीवन लक्ष्य बनाइए। जितना हो सके दूसरों की भलाई कीजिए इसमें आपका ही भला है, आपका ही लाभ है, आपका ही कल्याण है।
त्याग करना, किसी की कुछ सहायता करना, उधार देने की एक वैज्ञानिक पद्धति है। जो हम दूसरों को देते हैं हमारी रक्षित पूँजी की तरह जमा हो जाता है । जो अपनी रोटी दूसरों को बाँट कर खाता है उसको किसी बात की कमी न रहेगी। जो अपनी संपदा को जोड़-जोड़ कर जमा करता जाता है उस पाषाण हृदय को क्या मालुम होगी कि दान में कितनी मिठास है?
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 आंतरिक उल्लास का विकास पृष्ठ १५