कहते हैं कि शनिश्चर और राहू की दशा सबसे खराब होती है और जब वे आती हैं तो बर्बाद कर देती हैं। इस कथन में कितनी सचाई है यह कहना कठिन है, पर यह नितान्त सत्य है कि आलस्य को शनिश्चर और प्रमाद को-समय की बर्बादी को-राहू माना जाय तो इनकी छाया पड़ने मात्र से मनुष्य की बर्बादी का पूरा-पूरा सरंजाम बन जाता है।
दुःख और कठिनाइयेां में ही सच्चे हृदय से परमात्मा की याद आती है। सुख-सुविधाओं में तो भोग और तृप्ति की ही भावना बनी रहती है। इसलिए उचित यही है कि विपत्तियों का सच्चे हृदय से स्वागत करें। परमात्मा से माँगने लायक एक ही वरदान है कि वह कष्ट दे, मुसीबतें दें, ताकि मनुष्य अपने लक्ष्य के प्रति सावधान व सजग बना रहे।
निराशा वह मानवीय दुर्गुण है, जो बुद्धि को भ्रमित कर देती है। मानसिक शक्तियों को लुंज-पुंज कर देती है। ऐसा व्यक्ति आधे मन से डरा-डरा सा कार्य करेगा। ऐसी अवस्था में सफलता प्राप्त कर सकना संभव ही कहाँ होगा? जहाँ आशा नहीं वहाँ प्रयत्न नहीं। बिना प्रयत्न के ध्येय की प्राप्ति न आज तक कोई कर सका है, न आगे संभव है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य