सोमवार, 4 फ़रवरी 2019

👉 आपका जीवन साथी कौन है?

■ माँ
□ पिता
◆ बीवी
◇ बेटा
■ पति
□ बेटी
◆ दोस्त...????

बिल्कुल नहीं

आपका असली जीवन साथी
आपका शरीर है ..

एक बार जब आपका शरीर जवाब देना बंद कर देता है तो कोई भी आपके साथ नहीं है।
आप और आपका शरीर जन्म से लेकर मृत्यु तक एक साथ रहते हैं।
जितना अधिक आप इसकी परवाह करते हैं, उतना ही ये आपका साथ निभाएगा।

आप क्या खाते हो,
फ़िट होने के लिए आप क्या करते हैं,
आप तनाव से कैसे निपटते हैं

आप कितना आराम करते हैं
आपका शरीर वैसा ही जवाब देगा।
याद रखें कि आपका शरीर एकमात्र स्थायी पता है जहां आप रहते हैं।

आपका शरीर आपकी संपत्ति है, जो कोई और साझा नही  कर सकता।

आपका शरीर आपकी ज़िम्मेदारी है।
इसलिये,
तुम हो इसके असली जीवनसाथी।

हमेशा के लिए फिट रहो अपना ख्याल रखो,
पैसा आता है और चला जाता है
रिश्तेदार और दोस्त भी स्थायी नहीं हैं।

■ याद रखिये,
कोई भी आपके  अलावा आपके शरीर की मदद नहीं कर सकता है।

आप करें:-
■ प्राणायाम - फेफड़ों के लिए
□ ध्यान - मन के लिए
◆ योग-आसन - शरीर के लिए
◇ चलना - दिल के लिए
■ अच्छा भोजन - आंतों के लिए
□ अच्छे विचार - आत्मा के लिए
◆ अच्छे  कर्म - दुनिया के लिए 

इसलिए स्वस्थ रहो, फिट रहो और प्रसन्न रहो।

👉 लोटे की चमक

‘श्री रामकृष्ण परमहंस’ रोज अपना लोटा बहुत लगन से राख या मिट्टी से मांजकर खूब चमकाते थे। रोज के इस परिश्रम से श्री परमहंस का लोटा खूब चमकता था। उनके एक शिष्य को श्री रामकृष्ण द्वारा प्रतिदिन बहुत मेहनत से लोटा चमकाना बड़ा विचित्र लगता था।

आख़िर उससे रहा नहीं गया। एक दिन वह श्री रामकृष्ण जी से पूछ ही बैठा.... “महाराज! आपका लोटा तो वैसे ही खूब चमकता है। इतना चमकता है कि इसमें हम अपनी तस्वीर भी देख ले। फिर भी रोज-रोज आप इसे मिट्टी, राख और जून से मांजने में इतनी मेहनत क्यों करते है?”

गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस मुस्कुरा उठे हँसकर बोले.... “बेटा! इस लोटे की चमक एक दिन की, एक बार की मेहनत से नहीं आई है; इसमें आई मैल को हटाने के लिए नित्य-प्रति मेहनत करनी ही पड़ती है। ठीक वैसे ही जैसे जीवन में आई बुराईयों, बुरे संस्कारो को दूर करने के लिए हमें रोजाना ही संकल्पपूर्ण परिश्रम करना पड़ता है।

वास्तव में स्वयं को अच्छे व्यक्ति में बदलने के लिए हमें रोज के अभ्यास से दुर्गुणों का मैल दूर करना पड़ता है। लोटा हो या व्यक्ति का जीवन, उसे बुराइयों के मैल से बचाने के लिए हमें रोजाना ही कड़ा परिश्रम करना पड़ेगा। तभी इस लोटे की चमक या इंसान की चमक बची रह सकती है।"

इस प्रसंग से दो शिक्षाएँ मिलती हैं। एक तो यह कि.. प्रत्येक व्यक्ति को इसी प्रकार नित्य अपनी बुराइयों को दूर करने का प्रयास करते रहना चाहिए।

दूसरा यह कि.... प्रत्येक कार्य चाहे वह देखने में लोटा माँजने जैसा तुच्छ ही क्यों न हो अगर मनोयोग से किया जाए तो उसमें विशिष्ट चमक उत्पन्न होकर आकर्षण पैदा करती है।

अर्थात, साधारण कर्म भी असाधारण एकाग्र मनोयोग से असाधारण हो जाता है।

यही सिद्धांत जीवन के प्रत्येक क्षण के संबंध में भी काम करता है... आपने अक्सर सुना होगा कि... ‘जीवन के प्रत्येक क्षण को पूर्णता से जीयो’...

अर्थात, ‘साधारण क्षण को भी विशिष्ट भाव से जीना ही जीवन को संपूर्णता से जीना कहलाता हैं।‘

👉 अच्छे आदमी अच्छे रसायनज्ञ

नागार्जुन सुप्रसिद्ध रसायनज्ञ थे, पर वे सम्पर्क में आने वालों को धर्मोपदेश ही दिया करते थे। इस पर एक व्यक्ति ने कहा- आप रसायन शास्त्र पढ़ाया करें तो आपका नाम भी बढेगा, आपकी विद्या का भी विस्तार होगा। '

नागार्जुन बोले- 'रसायनज्ञ तो कभी भी बना जा सकता है। बात तो तब है जब अच्छे आदमी बनें। जिन्हें धार्मिक उत्तरदायित्व वहन करने पड़ते हैं, उन्हें तो इस तथ्य को अनिवार्य ही मानना चाहिए। '

'जो जागृत है, उन्हें स्वयं भी इस युग चेतना में भाग लेने के लिए उठना चाहिए। ऐसे अवसर इतिहास में बार- बार नहीं आते। '

📖 प्रज्ञा पुराण भाग १

👉 देश के युवकों

"मेरी समस्त भावी आशा उन युवकों में केंद्रित है, जो चरित्रवान हों, बुद्धिमान हों, लोकसेवा हेतु सर्वत्यागी और आज्ञापालक हों, जो मेरे विचारों को क्रियान्वित करने के लिए और इस प्रकार अपने तथा देश के व्यापक कल्याण के हेतु अपने प्राणों का उत्सर्ग कर सकें!...

यदि मुझे नचिकेता की श्रद्धा से संपन्न केवल दस या बारह युवक मिल जाएँ तो मैं देश के विचारों और कार्यों को एक नई दिशा में मोड़ सकता हूँ! ईश्वरीय इच्छा से इन्हीं युवकों में से कुछ समय बाद आध्यात्मिक और कर्मशक्ति के महान पुंज उदित होंगे, जो भविष्य में मेरे विचारों को कार्यान्वित करेंगे !

युवकों को एकत्र और संगठित करो ! महान त्याग के द्वारा ही महान कार्य सम्भव है! मेरे वी , श्रेष्ठ, उदात्त बंधुओं! अपने कंधों को कार्यचक्र में लगा दो, कार्यचक्र पर जुट जाओ! मत ठहरो, पीछे मत देखो न नाम के लिए न यश के लिए! व्यक्तिगत अह्मान्यता को एक ओर फेंक दो और कार्य करो! स्मरण रखो कि घास के अनेक तिनकों को जोड़कर जो रस्सी बनती है, उससे एक उन्मत्त हाथी को बाँधा जा सकता है!

ओ वीर आत्माओं! आगे बढ़ो, उन्हें मुक्त कराने के लिए जो जंजीरों में जकड़े हुए हैं, उनका बोझ हल्का कराने के लिए जो दुःख के भार से लदे हैं, उन हृदयों को आलोकित करने के लिए, जो अज्ञान के गहन अंधकार में डूबे हुए हैं!
सुनों वेदान्त डंके की चोट पर घोषणा कर रहा है...

'अभी' (निर्भय बनो) ! ईश्वर करे यह पवित्र स्वर धरती के समस्त प्राणियों के हृदयों की ग्रंथियाँ खोलने में समर्थ हो!"

~ स्वामी विवेकानंद

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