सोमवार, 17 जुलाई 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 17 July 2023

जन-नेतृत्व के लिए अभिलाषी प्रतिभाओं को हमारी अत्यन्त नेक, व्यावहारिक और दूरदर्शिता पूर्ण सलाह यह है कि वे इधर-उधर न भटकें, भीड़ में धक्के न खाएँ, वरन् युग निर्माण योजना के कार्यक्षेत्र में सीधे प्रवेश करें और देखें कि वे आत्म-गौरव को तृप्त करने वाले ही नहीं, राष्ट्र की सर्वतोमुखी प्रगति में योगदान दे सकने वाला कितना महत्त्वपूर्ण कार्य संपन्न कर रहे हैं।

हमें राष्ट्र की ठोस और सर्वतोमुखी प्रगति यदि सचमुच अपेक्षित हो और सच्चे मन से इसके लिए काम करना हो तो उसके लिए कटिबद्ध होना चाहिए और बौद्धिक, नैतिक एवं सामाजिक क्रान्ति का समग्र अनुष्ठान करना चाहिए। इस प्रक्रिया का नाम ‘युग निर्माण योजना’ है। हर प्रतिभा को उस आधार पर काम करने की हर क्षेत्र में सुविधा अनुभव हो सकती है।

आज दशमुख के रावणों से नहीं, सौ कुटुम्बियों के कौरवों से नहीं, हजार भुजा वाले सहस्रबाहु से नहीं, बल्कि अरबों की जनसंख्या वाले मानव समाज पर अगणित दुष्प्रवृत्तियों और दुर्भावनाओं के साथ छाये हुए सर्वग्राही महाअसुर से जूझना है। इस महाभारत में किसी को भी दर्शक बनकर नहीं बैठे रहना चाहिए। जिसके पास जो है, उसी को लेकर आगे आना चाहिए।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 दाम्पत्य जीवन की सफलता का मार्ग (भाग 1)

अनेक परिवारों में स्त्री-पुरुषों के मध्य वैसे मधुर संबंध नहीं देखें जाते जैसे कि होने चाहिएं। अनेकों घरों में आये दिन संघर्ष, मनोमालिन्य और अविश्वास के चिन्ह परिलक्षित होते रहते हैं। कारण यह है कि पति-पत्नी में से एक या दोनों ही केवल अपनी-अपनी इच्छा, आवश्यकता और रुचि को प्रधानता देते हैं। दूसरे पक्ष की भावना और परिस्थितियों को न समझना ही प्रायः कलह का कारण होता है।

जब एक पक्ष दूसरे पक्ष की इच्छानुसार आचरण नहीं करता तो उसे यह बात अपना अपमान, उपेक्षा या तिरस्कार प्रतीत होती है, जिससे चिढ़कर दूसरे पक्ष पर कटु वाक्यों का प्रहार या दुर्भावनाओं का आरोपण करता है। उत्तर-प्रत्युत्तर, आक्रमण-प्रत्याक्रमण, आक्षेप-प्रत्याक्षेप का सिलसिला चल पड़ता है तो उससे कलह बढ़ता ही जाता है। दोनों में से कोई अपनी गलती नहीं मानता, वरन् दूसरे को अधिक दोषी, प्रधान दोषी, प्रथम दोषी सिद्ध करने के लिए अपनी जिद को बढ़ाते रहते हैं। इस रीति से कभी भी झगड़े का अन्त नहीं हो सकता। अग्नि में ईंधन डालते जाने से तो और भी अधिक प्रज्वलित होती है।

जो पति-पत्नि अपने संबंधों को मधु रखना चाहते हैं उन्हें चाहिए कि दूसरे पक्ष की, योग्यता, मनोभूमि, भावना, इच्छा, संस्कार, परिस्थिति एवं आवश्यकता को समझने का प्रयत्न करें और उस स्थिति में मनुष्य के लिए जो उपयुक्त हो सके ऐसा उदार व्यवहार करने की चेष्टा करें तो झगड़े के अनेकों अवसर उत्पन्न होने से पहले ही दूर हो जावेंगे। हमें भली प्रकार समझ रखना चाहिए कि सब मनुष्य एक समान नहीं हैं, सबकी रुचि एक समान नहीं है, सबकी बुद्धि, भावना और इच्छा एक जैसी नहीं होती। भिन्न वातावरण भिन्न परिस्थिति और भिन्न कारणों से लोगों की मनोभूमि में भिन्नता हो जाती है। यह भिन्नता पूर्णतया मिट कर दूसरे पक्ष के बिलकुल समान हो जावें यह हो नहीं सकता। कोई स्त्री-पुरुष आपस में कितने ही सच्चे क्यों न हों, उनके विचार और कार्यों में कुछ न कुछ भिन्नता रह ही जायेगी।

📖 अखण्ड ज्योति- मार्च 1950 पृष्ठ 27

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