जन-नेतृत्व के लिए अभिलाषी प्रतिभाओं को हमारी अत्यन्त नेक, व्यावहारिक और दूरदर्शिता पूर्ण सलाह यह है कि वे इधर-उधर न भटकें, भीड़ में धक्के न खाएँ, वरन् युग निर्माण योजना के कार्यक्षेत्र में सीधे प्रवेश करें और देखें कि वे आत्म-गौरव को तृप्त करने वाले ही नहीं, राष्ट्र की सर्वतोमुखी प्रगति में योगदान दे सकने वाला कितना महत्त्वपूर्ण कार्य संपन्न कर रहे हैं।
हमें राष्ट्र की ठोस और सर्वतोमुखी प्रगति यदि सचमुच अपेक्षित हो और सच्चे मन से इसके लिए काम करना हो तो उसके लिए कटिबद्ध होना चाहिए और बौद्धिक, नैतिक एवं सामाजिक क्रान्ति का समग्र अनुष्ठान करना चाहिए। इस प्रक्रिया का नाम ‘युग निर्माण योजना’ है। हर प्रतिभा को उस आधार पर काम करने की हर क्षेत्र में सुविधा अनुभव हो सकती है।
आज दशमुख के रावणों से नहीं, सौ कुटुम्बियों के कौरवों से नहीं, हजार भुजा वाले सहस्रबाहु से नहीं, बल्कि अरबों की जनसंख्या वाले मानव समाज पर अगणित दुष्प्रवृत्तियों और दुर्भावनाओं के साथ छाये हुए सर्वग्राही महाअसुर से जूझना है। इस महाभारत में किसी को भी दर्शक बनकर नहीं बैठे रहना चाहिए। जिसके पास जो है, उसी को लेकर आगे आना चाहिए।
हमें राष्ट्र की ठोस और सर्वतोमुखी प्रगति यदि सचमुच अपेक्षित हो और सच्चे मन से इसके लिए काम करना हो तो उसके लिए कटिबद्ध होना चाहिए और बौद्धिक, नैतिक एवं सामाजिक क्रान्ति का समग्र अनुष्ठान करना चाहिए। इस प्रक्रिया का नाम ‘युग निर्माण योजना’ है। हर प्रतिभा को उस आधार पर काम करने की हर क्षेत्र में सुविधा अनुभव हो सकती है।
आज दशमुख के रावणों से नहीं, सौ कुटुम्बियों के कौरवों से नहीं, हजार भुजा वाले सहस्रबाहु से नहीं, बल्कि अरबों की जनसंख्या वाले मानव समाज पर अगणित दुष्प्रवृत्तियों और दुर्भावनाओं के साथ छाये हुए सर्वग्राही महाअसुर से जूझना है। इस महाभारत में किसी को भी दर्शक बनकर नहीं बैठे रहना चाहिए। जिसके पास जो है, उसी को लेकर आगे आना चाहिए।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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