गुरुवार, 3 अक्टूबर 2019
👉 आध्यात्मिक तेज का प्रज्वलित पुंज होता है चिकित्सक (भाग ७२)
👉 संयम है प्राण- ऊर्जा का संरक्षण, सदाचार ऊर्ध्वगमन
आध्यात्मिक चिकित्सकों के लिए संयम- सदाचार प्राण ऊर्जा को संरक्षित, संग्रहीत व संवर्धित करने की वैज्ञानिक विधियाँ हैं। आमतौर पर संयम और सदाचार को एक विवशता के रूप में जबरदस्ती थोपे गये जीवन क्रम के रूप में लिया जाता है। कई लोग तो इन्हें प्रवृत्तियों के दमन के रूप में समझते हैं और पूरी तरह से अवैज्ञानिक मानते हैं। आध्यात्मिक चिकित्सकों का कहना है कि ऐसे लोग दोषी नहीं नासमझ हैं। दरअसल इन लोगों को प्राण ऊर्जा के प्रवाह की प्रकृति, उसमें आने वाली विकृति एवं इसके निदान- निवारण की सूक्ष्म समझ नहीं है। ये जो भी कहते हैं अपनी नासमझी की वजह से कहते हैं।
बात समझदारी की हो तो संयम- प्राण ऊर्जा का संरक्षण है और सदाचार उसका उर्ध्वगमन है। ये दोनों ही तत्त्व नैतिक होने की अपेक्षा आध्यात्मिक अधिक है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अकेले प्राण ऊर्जा का संरक्षण पर्याप्त नहीं है, इसका ऊर्ध्वगमन भी जरूरी है। हालाँकि अकेले संरक्षण हो तो भी व्यक्ति बीमार नहीं होता, पर यदि बात प्राण शक्ति से मानसिक सामर्थ्य के विकास की हो तो इसका ऊर्ध्वगमन भी होना चाहिए। आयुर्वेद के कतिपय ग्रंथ इस बात की गवाही देते हैं कि जिस भी व्यक्ति में प्राणों का ऊर्ध्वगमन हो रहा है, उसके स्नायु वज्र की भाँति मजबूत हो जाते हैं। उसकी धारणा शक्ति असाधारण होती है। वह मनोबल व साहस का धनी होता है।
इस सच्चाई को और अधिक व्यापक ढंग से जानना चाहे तो संयम का अर्थ है- अपने जीवन की शक्तियों की बर्बादी को रोकना। बूँद- बूँद करके उन्हें बचाना। इस प्रक्रिया में इन्द्रिय संयम, समय संयम, अर्थ संयम व विचार संयम को प्रमुखता दी जाती है। जहाँ तक सदाचार का प्रश्र है तो यह आध्यात्मिक शक्तियों के विकास के लिए किया जाने वाला आचरण है। यह किसी तरह की विवशता नहीं बल्कि जीवन के उच्चस्तरीय प्रयोजनों के प्रति आस्था है। जिनमें यह आस्था होती है वे शुरुआत में भले ही जड़ बुद्धि हों लेकिन बाद में प्रतिभावान् हुए बिना नहीं रहते। उनकी मानसिक सामर्थ्य असाधारण रूप से विकसित होती है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ १००
आध्यात्मिक चिकित्सकों के लिए संयम- सदाचार प्राण ऊर्जा को संरक्षित, संग्रहीत व संवर्धित करने की वैज्ञानिक विधियाँ हैं। आमतौर पर संयम और सदाचार को एक विवशता के रूप में जबरदस्ती थोपे गये जीवन क्रम के रूप में लिया जाता है। कई लोग तो इन्हें प्रवृत्तियों के दमन के रूप में समझते हैं और पूरी तरह से अवैज्ञानिक मानते हैं। आध्यात्मिक चिकित्सकों का कहना है कि ऐसे लोग दोषी नहीं नासमझ हैं। दरअसल इन लोगों को प्राण ऊर्जा के प्रवाह की प्रकृति, उसमें आने वाली विकृति एवं इसके निदान- निवारण की सूक्ष्म समझ नहीं है। ये जो भी कहते हैं अपनी नासमझी की वजह से कहते हैं।
बात समझदारी की हो तो संयम- प्राण ऊर्जा का संरक्षण है और सदाचार उसका उर्ध्वगमन है। ये दोनों ही तत्त्व नैतिक होने की अपेक्षा आध्यात्मिक अधिक है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अकेले प्राण ऊर्जा का संरक्षण पर्याप्त नहीं है, इसका ऊर्ध्वगमन भी जरूरी है। हालाँकि अकेले संरक्षण हो तो भी व्यक्ति बीमार नहीं होता, पर यदि बात प्राण शक्ति से मानसिक सामर्थ्य के विकास की हो तो इसका ऊर्ध्वगमन भी होना चाहिए। आयुर्वेद के कतिपय ग्रंथ इस बात की गवाही देते हैं कि जिस भी व्यक्ति में प्राणों का ऊर्ध्वगमन हो रहा है, उसके स्नायु वज्र की भाँति मजबूत हो जाते हैं। उसकी धारणा शक्ति असाधारण होती है। वह मनोबल व साहस का धनी होता है।
इस सच्चाई को और अधिक व्यापक ढंग से जानना चाहे तो संयम का अर्थ है- अपने जीवन की शक्तियों की बर्बादी को रोकना। बूँद- बूँद करके उन्हें बचाना। इस प्रक्रिया में इन्द्रिय संयम, समय संयम, अर्थ संयम व विचार संयम को प्रमुखता दी जाती है। जहाँ तक सदाचार का प्रश्र है तो यह आध्यात्मिक शक्तियों के विकास के लिए किया जाने वाला आचरण है। यह किसी तरह की विवशता नहीं बल्कि जीवन के उच्चस्तरीय प्रयोजनों के प्रति आस्था है। जिनमें यह आस्था होती है वे शुरुआत में भले ही जड़ बुद्धि हों लेकिन बाद में प्रतिभावान् हुए बिना नहीं रहते। उनकी मानसिक सामर्थ्य असाधारण रूप से विकसित होती है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ १००
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
👉 प्रेरणादायक प्रसंग 4 Jan 2025
👉 शांतिकुंज हरिद्वार के Youtube Channel `Shantikunj Rishi Chintan` को आज ही Subscribe करें। ➡️ https://bit.ly/2KISkiz 👉 शान्तिकुं...