गुरुवार, 12 अक्टूबर 2017

👉 मनुज देवता बने, बने यह धरती स्वर्ग समान (अन्तिम भाग)

🔴 मित्रो ! जो हविस आपके ऊपर हावी हो गई है उससे पीछे हटिए, तृष्णाओं से पीछे हटिए और उपासना के उस स्तर पर पहुँचने की कोशिश कीजिए जहाँ कि आपके भीतर से, व्यक्तित्व में से श्रेष्ठता का विकास होता है। भक्ति यही है। अगर आपके भीतर से श्रेष्ठता का विकास हुआ हो, मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आपको जनता का वरदान मिलेगा। चारों ओर से इतने वरदान मिलेंगे कि जिसको पा करके आप निहाल हो जाएँगे। भक्ति का यही इतिहास है, भक्त का यही इतिहास है। भगवान के अनुग्रह का, गायत्री माता के अनुग्रह का यही इतिहास है, यही इतिहास था और यही इतिहास रहेगा।
   
🔵 अगर इस रहस्य को, सार को समझ लें, तो आपका यहाँ आना सार्थक हो जाए। आपका गायत्री अनुष्ठान सार्थक हो जाए, अगर आप इस सिद्धांत को समझकर जाएँ कि हमको सद्गुणों का विकास करने के लिए तपश्चर्या कराई जा रही है और अगर हमारी यह तपश्चर्या सही साबित हुई तो भगवान हमको यहाँ से विदा करते समय गुण, कर्म और स्वभाव की विशेषता देंगे और हमको चरित्रवान व्यक्ति के तरीके से विकसित करेंगे। चरित्रवान व्यक्ति जब विकसित होता है, तब उदार हो जाता है, परमार्थ-परायण हो जाता है, लोकसेवी हो जाता है, जनहितकारी हो जाता है और अपने क्षुद्र स्वार्थ को देखना शुरू कर देता है। आपकी अगर ऐसी मनःस्थिति हो जाए तो मैं कहूँगा कि आपने सच्ची उपासना की और भगवान् का वरदान पाया।

🔴 आप सच्चा वरदान पा करके निहाल हो सकते हैं, जिससे कि आज तक के सारे के सारे भक्त निहाल होते रहे हैं। मैंने इसी रास्ते पर चलने की कोशिश की और अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से भगवान के वरदानों को देखा और पाया। मैं चाहता था कि आप लोग जो इस शिविर में आए हैं, जो वसन्त के निकट जा पहुँचा है, यह प्रेरणा लेकर जाएँ कि हम पर भगवान कृपा करें कि हमको श्रेष्ठता के लिए, आदर्शों के लिए कुछ त्याग और बलिदान करने की, चरित्र को श्रेष्ठ और उज्ज्वल बनाने के लिए प्रेरणा भीतर से मिले और बाहर से मिले। अगर ऐसी कुछ प्रेरणा आपको मिले तो उसके फलस्वरूप आप जो कुछ भी प्राप्त करेंगे, वह इतना शानदार होगा कि जिससे आप निहाल हो जाएँ, आपका देश निहाल हो जाए, गायत्री माता निहाल हो जाएँ, हम निहाल हो जाएँ और यह शिविर निहाल हो जाए अगर आप इस तरह की कुछ प्राप्ति और उपलब्धि कर सकें।

आज की बात समाप्त।
ॐ शान्ति।
 
🌹 समाप्त
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य (अमृतवाणी)

👉 उपलब्धियों का सदुपयोग करना सीखें

🔴 प्राप्त करना उतना कठिन नहीं है— जितना उपलब्धि का सदुपयोग करना। सम्पत्ति अनायास या परिस्थिति वश भी मिल सकती है पर उसका सदुपयोग करने के लिए अत्यन्त दूरदर्शी विवेकशीलता और सन्तुलित बुद्धि की आवश्यकता पड़ेगी। सुयोग्य व्यक्ति यों की समीपता तथा सद्भावना प्राप्त कर लेना उतना कठिन नहीं है, जितना उस सान्निध्य का सदुपयोग करके समुचित लाभ उठा सकना।

🔵 मनुष्य में बीज रूप से वे समस्त सम्भावनाएँ विद्यमान हैं जो अब तक कहीं भी किसी भी व्यक्ति में देखी−पाई गई हैं। प्रयत्न करने पर उन्हें जगाया और बढ़ाया जा सकता है। कोई भी लगनशील मनस्वी व्यक्ति अपने को इच्छित दिशा में सफलता प्राप्त करने की आवश्यक क्षमताएँ उत्पन्न कर सकता है और उनका सदुपयोग करके मनचाही सफलता प्राप्त कर सकता है।

🔴 जो नहीं है उसे पाने के लिए अधिकाँश मनुष्य लालायित देखे जाते हैं। अप्राप्त को पाने के लिए व्याकुल रहने वालों की कमी नहीं। पर ऐसे कोई बिरले ही होते हैं जो आज की अपनी उपलब्धियों और क्षमताओं की गरिमा का मूल्याँकन करं सकें। उनके सदुपयोग की सुव्यवस्थित योजना बना सके। जो मिला हुआ है, वह इतना अधिक है कि उसका सही और सन्तुलित उपयोग करके प्रगति के पथ पर बहुत दूर तक आगे बढ़ा जा सकता है। अधिक पाने के लिए प्रयत्न करना उचित है पर इससे भी अधिक आवश्यक यह है कि जो उपलब्ध है उसका श्रेष्ठतम सदुपयोग करने के लिए योजनाबद्ध रूप से आगे बढ़ा जाये। जो ऐसा कर सके उन्हें जीवन में असफल रहने का दुर्भाग्य कभी भी सहन नहीं करना पड़ा है।

🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🌹 अखण्ड ज्योति- मार्च 1974 पृष्ठ 3
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1974/March/v1.1

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