बुधवार, 5 जून 2019

👉 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति (भाग 8)

👉 सद्गुरु की कृपा से तरते हैं  भवरोग

अगले दिन प्रातः अरूणोदय के साथ ही वेदमंत्रों के स्वर गूंजने लगे। स्वाहा के घोष के साथ सविधि यज्ञीय आहुतियाँ यज्ञकुण्डों में पड़ने लगीं। भगवान् जातवेदस् अपने प्रखर तेज के साथ भुवन भास्कर को चुनौती सी दे रहे थे। इतने में सभी ने देखा कि कल आया हुआ वह किशोर बालक अपने पाँवों से चलकर अपने माता- पिता के साथ आ रहा है। एक रात्रि में यह अपूर्व चमत्कार। सभी अचरज में थे। उनके इस अचरज को और अधिक करते हुए उस किशोर वय के बालक ने कहा, आप मुझे शिष्य के रूप में अपना लीजिए गुरुदेव।

गुरुदेव ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा- बेटा, तुम मेरे अपने हो। तुम हमेशा से मेरी आत्मा के अभिन्न अंश हो। परेशान न हो सब ठीक हो जाएगा। पर किस तरह आचार्य जी, एक विद्वान ने पूछ ही लिया। उत्तर में गुरुदेव उनसे बोले- मिश्र जी, बीमारियाँ दो तरह की होती हैं,
१. असंयम से उपजी,
२. प्रारब्ध से प्रेरित।

यह बालक रामनारायण प्रारब्ध से प्रेरित बीमारियों की जकड़ में है। जब तक यह अपने प्रारब्ध से ग्रसित रहेगा, इसे कोई औषधि फायदा नहीं करेगी। सा इसकी एक मात्र चिकित्सा अध्यात्म है। हाँ औषधियाँ, शरीर के तल पर इसमें सहयोगी साबित हो सकती हैं।

यह कहते हुए गुरुदेव उस बालक के माँ- पिता की ओर मुड़े और उनसे बोले, आप चिन्ता न करें। आपका बेटा रामनारायण आज से मेरा बेटा है। आपने इसके शरीर को जन्म दिया है। मैं इसकी जीवात्मा को नया जन्म दूँगा। उसे पूर्वकृत दुष्कर्मों के प्रभाव से मुक्त करूँगा। गुरुदेव की बातों ने माता- पिता को आश्वस्ति दी। वैसे भी वे एक रात्रि में काफी कुछ परिवर्तन देख चुके थे। गुरुदेव के तप के अंश को पाकर कुछ ही महीनों में न केवल उस किशोर रामनारायण के न केवल शारीरिक रोग दूर हुए, बल्कि उसकी मानसिक चेतना भी निखरी। उसकी बौद्धिक शक्तियों का भारी विकास हुआ। यही नहीं रुचियाँ- प्रवृत्तियाँ भी परिष्कृत हुईं। उसमें गायत्री साधना के प्रति भारी अनुराग जाग पड़ा। उसमें ये सारे परिवर्तन सद्गुरु की कृपा से आए। वही सद्गुरु जो मानवीय जीवन के आध्यात्मिक रहस्यों के मर्मज्ञ थे।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ 13

My Family Is My Strength Part 1



Title

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...