👉 सद्गुरु की कृपा से तरते हैं भवरोग
कर्मकाण्ड के महान् विद्वानों का विशिष्ट सम्मेलन था यह। मंत्रविद्या के अनेकों महारथी पधारे थे। कर्मकाण्ड के स्थूल प्रयोग सूक्ष्म को किस तरह प्रभावित करते हैं? किस विधि जीवन चेतना रूपान्तरित होती है? मनुष्य की अन्तर्निहित शक्तियों के जागरण के प्रयोग सफल कैसे हों? आदि अनेक गम्भीर प्रश्रों पर चर्चा चल रही थी। परम पूज्य गुरुदेव इस चर्चा को मौन भाव से सुन रहे थे। सुनते- सुनते जहाँ कहीं आवश्यक होता, वहाँ वह अपनी अनुभूति का स्वर जोड़ देते। उनकी मौलिकता से इस विशद् चर्चा में नवप्राणों का संचार हो जाता।
चर्चा के इस क्रम में बड़ा विचित्र व्याघात हुआ। सभी की दृष्टि उन रोते- कलपते प्रौढ़ दम्पति की ओर गयी, जो अपने किशोर पुत्र को लेकर आए थे। उनका यह किशोर बालक कई जीर्ण बीमारियों से पीड़ित था। लगभग असहाय एवं अपाहिज स्थिति थी उसकी। निस्तेज मुख, बुझी हुई आँखें, कृशकाय, लड़खड़ाते कदम। बस जैसे उसके मां- पिता ने उसे लाकर गुरुदेव के पाँवों में डाल दिया। आप ही बचा सकते हैं- मेरे बेटे को। यही एक रट थी उन दोनों की। गुरुदेव ने बड़ी आत्मीयता से उनकी बातें सुनी। फिर उन्हें थोड़ा समझाया- बुझाया और उनके ठहरने की उचित व्यवस्था कर दी।
क्या होगा इस असाध्य रोग से घिरे किशोर का? उपस्थित सभी महान् विद्वानों को जिज्ञासा थी। किस विधि से आचार्य श्री चिकित्सा करेंगे इसकी? ऐसे अनेक प्रश्र उन सभी के मन में उभर रहे थे। उधर परम पूज्य गुरुदेव पूर्णतया आश्वस्त थे। जैसे उन्होंने उसकी चिकित्सा पद्धति खोज ली हो। वह सहज ही उपस्थित जनों को उनकी अनुत्तरित जिज्ञासाओं के साथ छोड़कर अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गए। दिन के यज्ञीय कार्यक्रम, विद्वानों की चर्चाएँ एवं आने वाले परिजन- आगन्तुकों से भेंट, सब कुछ चलता रहा। पर कहीं अपने मन के किसी कोने में सभी को अगले दिन की प्रतीक्षा थी।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ 12
कर्मकाण्ड के महान् विद्वानों का विशिष्ट सम्मेलन था यह। मंत्रविद्या के अनेकों महारथी पधारे थे। कर्मकाण्ड के स्थूल प्रयोग सूक्ष्म को किस तरह प्रभावित करते हैं? किस विधि जीवन चेतना रूपान्तरित होती है? मनुष्य की अन्तर्निहित शक्तियों के जागरण के प्रयोग सफल कैसे हों? आदि अनेक गम्भीर प्रश्रों पर चर्चा चल रही थी। परम पूज्य गुरुदेव इस चर्चा को मौन भाव से सुन रहे थे। सुनते- सुनते जहाँ कहीं आवश्यक होता, वहाँ वह अपनी अनुभूति का स्वर जोड़ देते। उनकी मौलिकता से इस विशद् चर्चा में नवप्राणों का संचार हो जाता।
चर्चा के इस क्रम में बड़ा विचित्र व्याघात हुआ। सभी की दृष्टि उन रोते- कलपते प्रौढ़ दम्पति की ओर गयी, जो अपने किशोर पुत्र को लेकर आए थे। उनका यह किशोर बालक कई जीर्ण बीमारियों से पीड़ित था। लगभग असहाय एवं अपाहिज स्थिति थी उसकी। निस्तेज मुख, बुझी हुई आँखें, कृशकाय, लड़खड़ाते कदम। बस जैसे उसके मां- पिता ने उसे लाकर गुरुदेव के पाँवों में डाल दिया। आप ही बचा सकते हैं- मेरे बेटे को। यही एक रट थी उन दोनों की। गुरुदेव ने बड़ी आत्मीयता से उनकी बातें सुनी। फिर उन्हें थोड़ा समझाया- बुझाया और उनके ठहरने की उचित व्यवस्था कर दी।
क्या होगा इस असाध्य रोग से घिरे किशोर का? उपस्थित सभी महान् विद्वानों को जिज्ञासा थी। किस विधि से आचार्य श्री चिकित्सा करेंगे इसकी? ऐसे अनेक प्रश्र उन सभी के मन में उभर रहे थे। उधर परम पूज्य गुरुदेव पूर्णतया आश्वस्त थे। जैसे उन्होंने उसकी चिकित्सा पद्धति खोज ली हो। वह सहज ही उपस्थित जनों को उनकी अनुत्तरित जिज्ञासाओं के साथ छोड़कर अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गए। दिन के यज्ञीय कार्यक्रम, विद्वानों की चर्चाएँ एवं आने वाले परिजन- आगन्तुकों से भेंट, सब कुछ चलता रहा। पर कहीं अपने मन के किसी कोने में सभी को अगले दिन की प्रतीक्षा थी।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ 12