सोमवार, 13 नवंबर 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 13 Nov 2023

मैंने अपने मन को अपने मार्गदर्शक का गुलाम बना दिया। तुम भी अपने को अपने सद्गुरु का गुलाम बना दो। उन्हें अर्पित और समर्पित कर दो। तुम ऐसा कर सको इसकी एक ही कसौटी है कि अब तुम अपने लिए नहीं सोचोगे, न अतीत के लिए परेषान होंगे, न वर्तमान के लिए विकल होंगे और न ही भविश्य की चिन्ता करोगे। तुम्हारे लिए जो कुछ जरूरी होगा, वह सद्गुरु स्वयं करेंगे। तुम्हें तो बस अपने गुरु का यंत्र बनना है।               

चलने का युग बीत गया। अब हम लोग दौड़ने के युग में रह रहे हैं। सब कुछ दौड़ता हुआ दीखता है। इस घुड़दौड़ में पतन और विनाश भी उतनी ही तेजी से बढ़ा चला जा रहा है कि उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। प्रतिरोध एवं परिवर्तन यदि कुछ समय और रुका रहे, तो समय हाथ से निकल जाएगा और हम इतने गहरे गर्त में गिर पड़ेंगे कि फिर उठ सकना संभव न होगा। इसलिए आज की ही घड़ी इसके लिए सबसे श्रेष्ठ मुहर्त है, जबकि परिवर्तन की प्रक्रिया का शुभारम्भ किया जाय। अब न तो विलम्ब की गुंजाइश है और न उपेक्षा-प्रतीक्षा करते हुए समय बिताया जा सकता है। हमें युग परिवर्तन की क्रान्ति को प्रत्यक्ष रूप देने के लिए आज ही कुछ करने के लिए उठ खड़ा होना होगा।                                                   

युग की पुकार पर कोई आया। अन्धेरी तमिस्रा में तिल-तिल कर दीपक की तरह जला। जितना संभव था प्रकाश फैलाया, पर तेल और बत्ती की अपनी सीमा थी। वह तीन प्रहर जल ली। अब चौथा प्रहर उसके उत्तराधिकारी वर्ग को पूरा करना चाहिए। वे समर्थ होते हुए भी कृपणता बरतें, जलने से डरें तो रात्रि का अवसान-अन्धकार भरा ही होगा। जिनने समर्थ होते हुए भी कायरता दिखाई, उन पर प्रभात होते-होते लानत ही बरसेगी। कहा जाएगा कि जलने वाले के वंशधर अपनी परम्परा भुला बैठे। 

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 उठो, जागो, आत्मदर्शी बनो Get up, wake up, be self-confident

भारत में नदियों के मार्ग बदल गये, जंगलों के स्थान पर खेत बन गये, देश का स्वरूप बदल गया, शासन पद्धति बदल गई, जिस पर भी इस अस्थिर जगत में आप प्राचीन रीति-रिवाज को स्थिर करने में लगे हैं। अब जिस देश, काल और परिस्थितियों में रह रहे हैं, उनकी चिन्ता करें। यदि आप परिवर्तित परिस्थितियों में अपने आपको रहने योग्य नहीं बना लेते तो संसार से आपका नामो-निशान मिट सकता है। आप बहुत सोये हैं। अब उतना ही जागेंगे भी। अब सोने का युग बीत गया। अन्ध-विश्वास, पुराने रीति-रिवाज अब धीरे-धीरे दूर हो रहे हैं। बुद्धि और विवेक जाग रहे हैं। आलस्य उड़ता जा रहा है। आगे बढ़ने, सफलता पाने की क्रियाशीलता और चेतना के सभी ओर दर्शन होने लगे हैं।

यह आवश्यक है, बुराइयों के स्थान पर अच्छाइयों का बढ़ना मंगल भविष्य का प्रतीक है। किन्तु हम यह न भूलें कि सफलता का अर्थ केवल अर्थजन्य या बाह्य प्रगति ही नहीं है। हमारे भीतर एक दर्शन छुपा है, तत्व सन्निहित है, एक आत्मा निवास करता है वह, बहुत सूक्ष्म है, शाश्वत है इन्द्रियों से परे कल्पनातीत है, उसे साधनों द्वारा जाना जा सकता है। अपने भीतर के इस तथ्य को जानने की जिज्ञासा जाग गई तो बाह्य जागृति का रंग सोने में सुहागे जैसा निखर उठेगा। परिवर्तन आत्मा की आकाँक्षा है उसे मूर्तरूप धारण करना चाहिये पर वह आत्मागत ही रहे।

~ स्वामी रामतीर्थ
📖 अखण्ड ज्योति 1968 जून पृष्ठ 1

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