शुक्रवार, 16 जून 2017

👉 हमारी वसीयत और विरासत (भाग 114)

🌹  ब्राह्मण मन और ऋषि कर्म

🔵 आद्य शंकराचार्य ने ज्योतिर्मठ में तप किया एवं चार धामों की स्थापना देश के चार कोनों पर की। विभिन्न संस्कृतियों का समन्वय एवं धार्मिक संस्थानों के माध्यम से जन-जागरण उनका लक्ष्य था। शान्तिकुञ्ज के तत्त्वावधान में २४०० गायत्री शक्तिपीठें विनिर्मित हुई हैं, जहाँ से धर्म धारणा को समुन्नत करने का कार्य निरंतर चलता रहता है। इसके अतिरिक्त बिना इमारत वाले चल प्रज्ञा संस्थानों एवं स्वाध्याय मण्डलों द्वारा सारे देश में चेतना केन्द्रों का जाल बिछाया गया है। ये सभी चार धामों की परम्परा में अपने-अपने क्षेत्रों में युग चेतना का आलोक वितरण कर रहे हैं।

🔴 ऋषि पिप्पलाद ने ऋषिकेश के समीप ही अन्न के मन पर प्रभाव का अनुसंधान किया था। वे पीपल वृक्ष के फलों पर निर्वाह करके आत्म संयम द्वारा ऋषित्व पा सके। हमने २४ वर्ष तक जौ की रोटी एवं छाछ पर रहकर गायत्री अनुष्ठान किए। तदुपरान्त आजीवन उबले आहार, अन्न शाक पर ही रहे। अभी भी उबले अन्न एवं हरी वनस्पतियों के कल्प प्रयोगों की प्रतिक्रिया जाँच-पड़ताल शान्तिकुञ्ज में अमृताशन शोध के नाम से चलती रही है। ऋषिकेश में ही सूत-शौनिक कथा पुराण वाचन के ज्ञान सत्र जगह-जगह लगाते थे। प्रज्ञा पुराणों का कथा वाचन इतना लोकप्रिय हुआ है कि लोग इसे युग पुराण कहते हैं। चार भाग इसके छप चुके हैं, चौदह और प्रकाशित होने हैं।

🔵 हर की पौड़ी हरिद्वार में सर्वमेध यज्ञ में हर्षवर्धन ने अपनी सारी सम्पदा तक्षशिला विश्वविद्यालय निर्माण हेतु दान कर दी थी। शान्तिकुञ्ज के सूत्रधार ने अपनी लाखों की सम्पदा गायत्री तपोभूमि तथा जन्मभूमि में विद्यालय निर्माण हेतु दे दी। स्वयं या संतान के लिए इनमें से एक पैसा भी नहीं रखा। इसी परम्परा को अब शान्तिकुञ्ज से स्थायी रूप से जुड़ते जा रहे लोकसेवी निभा रहे हैं।

🔴 कणाद ऋषि ने अथर्ववेदीय शोध परम्परा के अंतर्गत अपने समय में अणु विज्ञान का वैज्ञानिक अध्यात्मवाद का अनुसंधान किया था। बुद्धिवादियों के गले उतारने के लिए समय के अनुरूप अब आप्तवचनों के साथ-साथ तर्क, तथ्य एवं प्रमाण भी अनिवार्य हैं। ब्रह्मवर्चस् शोध संस्थान में अध्यात्मदेव एवं विज्ञान-दैत्य के समन्वय का समुद्र मंथन चल रहा है। दार्शनिक अनुसंधान ही नहीं, वैज्ञानिक प्रमाणों का प्रस्तुतिकरण भी इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। इसकी उपलब्धियों के प्रति संसार बड़ी-बड़ी आशाएँ लगाए बैठा है।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Books_Articles/hari/brahman.3

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 17 Jun 2017


👉 आज का सद्चिंतन 17 Jun 2017


👉 दर्पोदय (दंभ का तीव्र उदय!!)


🔴 एक बादशाह इत्र का बहुत शौकीन था। एक दिन वह दरबार में अपनी दाढ़ी में इत्र लगा रहा था। अचानक इत्र की एक बूंद नीचे गिर गई। बादशाह ने सबकी नजरें बचाकर उसे उठा लिया। लेकिन पैनी नजर वाले वजीर ने यह देख लिया। बादशाह ने भांप लिया कि वजीर ने उसे देख लिया है।

🔵 दूसरे दिन जब दरबार लगा, तो बादशाह एक मटका इत्र लेकर बैठ गया। वजीर सहित सभी दरबारियों की नजरें बादशाह पर गड़ी थीं। थोड़ी देर बाद जब बादशाह को लगा कि दरबारी चर्चा में व्यस्त हैं, तो उसने इत्र से भरे मटके को ऐसे ढुलका दिया, मानो वह अपने आप गिर गया हो। इत्र बहने लगा। बादशाह ने ऐसी मुद्रा बनाई, जैसे उसे इत्र के बह जाने की कोई परवाह न हो। इत्र बह रहा था। बादशाह उसकी अनदेखी किए जा रहा था।

🔴 वजीर ने यह देखकर कहा- जहांपनाह, गुस्ताखी माफ हो। यह आप ठीक नहीं कर रहे हैं। जब किसी इंसान के मन में चोर होता है तो वह ऐसे ही करता है। कल आपने जमीन से इत्र उठा ली तो आपको लगा कि आपसे कोई गलती हो गई है। आपने सोचा कि आप तो शहंशाह हैं, आप जमीन से भला क्यों इत्र उठाएंगे। लेकिन वह कोई गलती थी ही नहीं। एक इंसान होने के नाते आपका ऐसा करना स्वाभाविक था। लेकिन आपके भीतर शहंशाह होने का जो घमंड है, उस कारण आप बेचैन हो गए। और कल की बात की भरपाई के लिए बेवजह इत्र बर्बाद किए जा रहे हैं। सोचिए आपका घमंड आपसे क्या करवा रहा है। बादशाह लज्जित हो गया।

🔵 हमारे  निराधार और काल्पनिक अपमान के भयवश, हमारा दंभ उत्प्रेरित होता है। दर्प का उदय हमारे विवेक को हर लेता है। दंभ से मोहांध बनकर हम उससे भी बडी मूर्खता कर जाते है, जिस मूर्खता के कारण वह काल्पनिक अपमान भय हमें सताता है।

👉 नारी जागरण की दूरगामी सम्भावनाएँ (अंतिम भाग)

🔵 हर किसी को समझना और समझाया जाना है कि नारी आद्यशक्ति है। वही सृष्टि को उत्पन्न करने वाली, अपने स्तर के अनुरूप परिवार का तथा भावी पीढ़ी का सृजन करने में पूरी तरह समर्थ है। इक्कीसवीं सदी में उसी का वर्चस्व प्रधान रहने वाला है। नर ने अपनी कठोर प्रकृति के आधार पर पराक्रम भले ही कितना ही क्यों न किया हो, पर उसी की अहंकारी उद्दंडता ने अनाचार का माहौल बनाया है। स्रष्टा की इच्छा है कि स्नेह, सहयोग, सृजन करुणा, सेवा और मैत्री जैसी विभूतियों को संसार पर बरसने का अवसर मिले, ताकि युद्ध जैसी अनेकानेक दुष्टताओं को सदा सर्वदा के लिए अन्त हो सके। इस भविष्यता को स्वीकार करने के लिए लोक मानस को समझाया और दबाया जाना चाहिए कि व नारी को समता से ही नहीं, वरिष्ठता से भी लाभान्वित करें।

🔴 ‘सतयुग की वापसी’ का शुभारम्भ करना वर्तमान जन समुदाय का काम है। ढाँचा और तंत्र खड़ा करना, सरंजाम जुटाना और वातावरण बनाना उसी का काम है। पर उन सभी उत्तरदायित्वों को अगली पीढ़ी के ही कंधों को उठाना होगा। आज जो पौधे लगाए जा रहे हैं उनके द्वारा विकसित हुए वृक्षों की शोभा सुषमा को सुरक्षित रखने का कार्य तो वे ही करेंगे, जो आज भले ही जन्में हों, जन्मने जा रहे हों, पर आवश्यकता के समय तक प्रौढ़ परिपक्व होकर रहेंगे।

🔵 ऐसा समुन्नत पीढ़ी को जन्म दे सकना तथा सुसंस्कृत बनाना उन नारियों के लिए ही सम्भव हो सकेगा जो आज के महान अभ्युदय में भागीदार बनकर नव सृजन की महती भूमिका निभाने में किसी न किसी प्रकार अपनी विशिष्टता का परिचय देंगी। आज के नारी जागरण आन्दोलन को भविष्य में अतिशय प्रभावित करने वाला बनाना भी इसका एक महान उद्देश्य है।

🌹 समाप्त
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🌹 अखण्ड ज्योति अक्टूबर 1988 पृष्ठ 60

👉 कायाकल्प का मर्म और दर्शन (भाग 2)

🔴 आप अपने भविष्य को ऐसा मत बनाइए। भविष्य को आप ऐसा बनाइए कि जब तक रहें, तब तक संतोष करते रहें और जब नहीं रहें, तब आपके पद-चिह्नों पर चलकर दूसरे आदमी भी रास्ता तलाश कर सकें। गाँधीजी ने राजकोट में राजा हरिश्चंद्र का ड्रामा देखा और ड्रामा देखकर उस छोटे बच्चे गाँधी के मन पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने उसी दिन यह फैसला कर लिया कि अगर जिऊँगा तो हरिश्चंद्र होकर जिऊँगा। उज्ज्वल भविष्य और उज्ज्वल भविष्य के संकल्प ऐसे ही तो होते हैं, जैसे गाँधीजी के उज्ज्वल भविष्य के सपने थे। संकल्पों से उन्होंने क्या-से कर डाला? आपको ऐसे संकल्पों को चरितार्थ करने के लिए, उज्ज्वल भविष्य को बनाने के लिए यहाँ पूरा सहारा भी है।

🔵 आप कैसे सौभाग्यशाली हैं? आपको तो सहारा भी मिल गया। आमतौर से लोग अकेले ही मंजिल पार करते हैं, अकेले ही चलते हैं; पर आपको तो अकेले चलने के साथ लाठी का सहारा भी है, आप उस सहारे का क्यों नहीं लाभ उठाते? आप लोग पैदल सफर करते हैं, आपके लिए तो यहाँ सवारी भी तैयार खड़ी है, फिर आप लाभ क्यों नहीं उठाते? शान्तिकुञ्ज के वातावरण को केवल यह आप मत मानिये कि यहाँ दीवारें ही खड़ी हुईं हैं, आप यह मत सोचिये कि यहाँ शिक्षण का कुछ क्रम ही चलता रहता है, यह मत सोचिये कि यहाँ कुछ व्यक्ति विशेष ही रहते हैं।

🔴 आप यह भी मानकर चलिये कि यहाँ एक ऐसा वातावरण आपके पीछे-पीछे लगा हुआ है, जो आपकी बेहद सहायता कर सकता है। उस वातावरण से निकली प्राण की कुछ धाराओं को, जिसने खींचकर आपको यहाँ बुलाया है और आप जिसके सहारे उज्ज्वल भविष्य का निर्माण कर सकते हैं, उस वातावरण, प्रेरणा और प्रकाश को चाहें तो आप एक नाम यह भी दे सकते हैं—पारस।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 हमारा युग निर्माण सत्संकल्प (भाग 14)

🌹  मन को कुविचारों और दुर्भावनाओं से बचाए रखने के लिए स्वाध्याय एवं सत्संग की व्यवस्था रख रहेंगे।

🔵 व्यक्ति के मन मस्तिष्क में इस जन्म की ही नहीं जन्म-जन्मान्तरों की विकृतियाँ भरी रहती हैं। न जाने कितने कुविचार, कुवृत्तियाँ एवं मूढ़-मान्यताएँ हमारे मन-मस्तिष्क को घेरे रहती हैं। ज्ञान पाने अथवा विवेक जागृत करने के लिए आवश्यक है कि पहले हम अपने विचारों एवं संस्कारों को परिष्कृत करें। विचार एवं संस्कार परिष्कार के अभाव में ज्ञान के लिए की गई साधना निष्फल ही चली जाएगी। उन्नति एवं प्रगति की आधारशिला मनुष्य के अपनी विचार ही हैं। विचारों के अनुरूप ही उसका जीवन बनता-बिगड़ता है। विचार साँचे की तरह हैं, जो मनुष्य जीवन को अपने अनुरूप ढाल लिया करते हैं। मनुष्य का जो भी रूप सामने आता है, वह विचारों का प्रतिबिंब हुआ करता है। अपने आंतरिक एवं बाह्य जीवन को तेजस्वी, प्रखरतापूर्ण तथा पुरोगामी बनाने के लिए अपनी विचार शक्ति को विकसित, परिमार्जित करना होगा। यह कार्य उन्नत विचारों के संपर्क में आने से ही पूरा हो सकता है।

🔴 ऊर्ध्वगामी विचारधारा स्वाध्याय और सत्संग के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है। आत्मिक विकास एवं आत्म शिक्षण के लिए स्वाध्याय एवं सत्संग दो ही मार्ग हैं। आज की परिस्थितियों में स्वाध्याय ही सबसे बड़ा सरल मार्ग है। उसी के द्वारा दूरस्थ, स्वर्गवासी या दुर्लभ महापुरुषों का सत्संग किसी भी स्थान, किसी भी समय, कितनी देर तक अपनी सुविधानुसार प्राप्त किया जा सकता है। उच्चकोटि के विचारों की पूँजी अधिकाधिक मात्रा में जमा किए बिना हम न तो अंतःकरण को शुद्ध कर सकते हैं और न उच्च मार्ग पर अग्रसर होने के लिए प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं। अतः स्वाध्याय को साधना का एक अंग समझकर अपने नित्य कर्मों में स्थान देना आवश्यक है। मन-मस्तिष्क से अवांछनीयताओं को बुहारने का कार्य नित्य स्वाध्याय और सत्संग से होते रहना चाहिए।     

🔵 शिक्षित व्यक्ति को स्वाध्याय कर ही सकते हैं। अशिक्षित तथा जिनका मन स्वाध्याय में नहीं लगता, उन लोगों के लिए सत्संग ही एक उपाय है। विचारणा पलटते ही जीवन दिशा ही पलट जाती है। स्वाध्याय एवं सत्संग विचारों को स्थापित करते हैं, परंतु आज सत्संग की समस्या विकट हो गई है। अतः जिन महान् आत्माओं का सत्संग लाभ लेना चाहें, उनके द्वारा लिखे विचारों का स्वाध्याय तो किया ही जा सकता है। स्वाध्याय एक प्रकार का सत्संग ही है। इसके लिए वे ही चुनी हुई पुस्तकें होनी चाहिए, जो जीवन की विविध समस्याओं को आध्यात्मिक दृष्टि से सुलझाने में व्यावहारिक मार्गदर्शन करें और हमारी सर्वांगीण प्रगति को उचित प्रेरणा देकर अग्रगामी बनाएँ।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.21

http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Books_Articles/Sankalpaa/minda.2

👉 Lose Not Your Heart

🔴 Before pointing out the faults of others, search for faults in yourself and do your best to fix them first. Spend as much time doing this as you do criticizing others. Then you will realize that the harm caused by criticizing others can replace your happiness. Therefore happiness only comes from removing this harm.

🔵 People who wish to conquer the world should conquer themselves first. If you can do this, then you can conquer anything. People will not stand against you, but will be influenced by you.
 
🌹 ~Pt. Shriram Sharma Acharya

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