आदर्शविहीन जीवन बस अन्तहीन भटकन है, जिसकी न कोई मंजिल है और न राह, यहाँ तक कि राही भी बेसुध-बेखबर है। ऐसे जीवन की दशा उस नाव की भाँति है, जिसका मल्लाह नदारद है। अथवा फिर बेखबर सोया हुआ है। और अनुभव की बात यह है कि जीवन के सागर पर तूफान हमेशा बने रहते हैं। आदर्श न हो तो जीवन की नौका को डूबने के सिवाय और कोई विकल्प नहीं बचता।
स्वामी विवेकानन्द के वचन हैं- ‘आदर्शों की ताकत चर्म चक्षुओं से न दिखने पर भी अतुलनीय है। पानी की एक बूंद को यूं देखें तो उसमें कुछ भी ताकत नजर नहीं आती। लेकिन यदि उसे किसी चट्टान की दरार में जमकर बर्फ बनने का अवसर मिल जाय, तो वह चट्टान को फोड़ देगी। इस जरा से परिवर्तन से बूंद को कुछ हो जाता है। और उसमें सोयी हुई ताकत सक्रिय एवं परिणामकारी हो उठती है। ठीक यही बात आदर्शों की है। जब तक वे विचार रूप में रहते हैं, उनकी शक्ति परिणामकारी नहीं होती। लेकिन जब वे किसी के व्यक्तित्व और आचरण में ठोस रूप लेते हैं, तब उनसे विराट शक्ति और महत् परिणाम उत्पन्न होते हैं।’
आदर्श- सघन तम से महासूर्य की ओर उठने की आकांक्षा है। जिसे यह आकांक्षा विकल-बेचैन नहीं करती, वह हमेशा अन्धकार में ही पड़ा रहता है। लेकिन यह याद रहे कि आदर्श केवल आकांक्षा भर नहीं है। यह साहस भरा संकल्प भी है। क्योंकि जिस आकांक्षा के साथ साहसिक संकल्प का बल नहीं होता, उसका होने या न होने का कोई अर्थ नहीं है। यह हमेशा निर्जीव और बेजान बनी रहती है।
अपने साहस भरे संकल्प के साथ आदर्श कठोर श्रम की कठिन तप साधना भी है। क्योंकि अविराम श्रम साधना के अभाव में कोई बीज कभी वृक्ष नहीं बनता है। जो भी आदर्शों की राह पर चले हैं, उन सभी का निष्कर्ष एक है, जिस आदर्श में व्यवहार का प्रयत्न न हो, वह निरर्थक है। और जो व्यवहार आदर्श प्रेरित न हो, वह भयावह है।
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
जीवन पथ के प्रदीप से पृष्ठ १३६
स्वामी विवेकानन्द के वचन हैं- ‘आदर्शों की ताकत चर्म चक्षुओं से न दिखने पर भी अतुलनीय है। पानी की एक बूंद को यूं देखें तो उसमें कुछ भी ताकत नजर नहीं आती। लेकिन यदि उसे किसी चट्टान की दरार में जमकर बर्फ बनने का अवसर मिल जाय, तो वह चट्टान को फोड़ देगी। इस जरा से परिवर्तन से बूंद को कुछ हो जाता है। और उसमें सोयी हुई ताकत सक्रिय एवं परिणामकारी हो उठती है। ठीक यही बात आदर्शों की है। जब तक वे विचार रूप में रहते हैं, उनकी शक्ति परिणामकारी नहीं होती। लेकिन जब वे किसी के व्यक्तित्व और आचरण में ठोस रूप लेते हैं, तब उनसे विराट शक्ति और महत् परिणाम उत्पन्न होते हैं।’
आदर्श- सघन तम से महासूर्य की ओर उठने की आकांक्षा है। जिसे यह आकांक्षा विकल-बेचैन नहीं करती, वह हमेशा अन्धकार में ही पड़ा रहता है। लेकिन यह याद रहे कि आदर्श केवल आकांक्षा भर नहीं है। यह साहस भरा संकल्प भी है। क्योंकि जिस आकांक्षा के साथ साहसिक संकल्प का बल नहीं होता, उसका होने या न होने का कोई अर्थ नहीं है। यह हमेशा निर्जीव और बेजान बनी रहती है।
अपने साहस भरे संकल्प के साथ आदर्श कठोर श्रम की कठिन तप साधना भी है। क्योंकि अविराम श्रम साधना के अभाव में कोई बीज कभी वृक्ष नहीं बनता है। जो भी आदर्शों की राह पर चले हैं, उन सभी का निष्कर्ष एक है, जिस आदर्श में व्यवहार का प्रयत्न न हो, वह निरर्थक है। और जो व्यवहार आदर्श प्रेरित न हो, वह भयावह है।
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
जीवन पथ के प्रदीप से पृष्ठ १३६