खिलौनों ने अध्यात्म का सत्यानाश कर दिया
मित्रो! ऐसे समय में आप लोगों को यहाँ आना पड़ा। गायत्री उपासना, जिसके लिए हमारा सारे का सारा जीवन समर्पित हो गया। गायत्री उपासना, जो हमारे जीवन का प्राण है। जिसके लिए हम जिएँगे और उसी के लिए मरेंगे। जिसके लिए हमने अपनी भरी जवानी निछावर कर दी। दूसरे आदमी भरी जवानी में तरह- तरह की कामनाएँ करते हैं। उस जमाने में हमने छह घंटे रोज के हिसाब से चौबीस साल तक, पंद्रह वर्ष की उम्र से लेकर चालीस वर्ष की उम्र तक हम जमीन पर सोए। छाछ और जौ की दो रोटियों के अलावा हमने तीसरी चीज ही नही देखी। नमक कैसा होता है, चौबीस वर्ष तक हमने कभी छुआ ही नहीं।
शक्कर कैसी होती है, चौबीस वर्ष तक हमारी निगाह में ही नहीं आई। शाक- दाल किसे कहते हैं, हमने जाना भी नहीं। केवल गायत्री उपासना के लिए। सारी दुनिया हमको पागल कहती रही। बेवकूफ और बेहूदा बताती रही। पैसा हम कमा नहीं सके। जमीन पर पड़े रहे। खाने का जायका हम ले नहीं सके। इंद्रियों का जायका उठा नहीं सके। यश प्राप्त न कर सके। सम्मान प्राप्त न कर सके। जिस गायत्री मंत्र के लिए, जिस गायत्री की महत्ता के लिए बेटे! हम निछावर हैं और हमारा जीवन जिसके लिए समर्पित है, वह ऐसी महत्त्वपूर्ण शक्ति है, जिसका आधार इतना बड़ा है कि मनुष्य के भीतर वह देवत्व का उदय कर सकती है और मनुष्य अपने इसी जीवन में स्वर्ग जैसा आनंद लेने में समर्थ हो सकता है।
मित्रों! ऐसी महत्त्वपूर्ण शक्ति, चमत्कारों की देवी, ज्ञान की देवी, विज्ञान की देवी, सामर्थ्य की देवी गायत्री माता, जिसका कि हम इन शिविरों में अनुष्ठान करने के लिए बुलाएँ, पर क्या करें आप त;ो हमें कई तरह से परेशान कर देते हैं, हैरान कर देते हैं। हमारा मानसिक संतुलन खराब कर देते हैं। आप तो शंातिकुंज को धर्मशाला बना देते हैं। आप तो इसको अन्नक्षेत्र बना देते हैं और बेटे! उन लोगों को लेकर चले आते हैं, जिनका कि इस अध्यात्म से कोई संबंध नहीं है; उपासना से कोई संबंध नहीं है; अनुष्ठान से कोई संबंध नहीं है; आप भीड़ लाकर खड़ी कर देते हैं और हमारा अनुशासन बिगाड़ देते हैं।
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Pravachaan/prachaavachanpart5/kihloneneaadhiyatmka
मित्रो! ऐसे समय में आप लोगों को यहाँ आना पड़ा। गायत्री उपासना, जिसके लिए हमारा सारे का सारा जीवन समर्पित हो गया। गायत्री उपासना, जो हमारे जीवन का प्राण है। जिसके लिए हम जिएँगे और उसी के लिए मरेंगे। जिसके लिए हमने अपनी भरी जवानी निछावर कर दी। दूसरे आदमी भरी जवानी में तरह- तरह की कामनाएँ करते हैं। उस जमाने में हमने छह घंटे रोज के हिसाब से चौबीस साल तक, पंद्रह वर्ष की उम्र से लेकर चालीस वर्ष की उम्र तक हम जमीन पर सोए। छाछ और जौ की दो रोटियों के अलावा हमने तीसरी चीज ही नही देखी। नमक कैसा होता है, चौबीस वर्ष तक हमने कभी छुआ ही नहीं।
शक्कर कैसी होती है, चौबीस वर्ष तक हमारी निगाह में ही नहीं आई। शाक- दाल किसे कहते हैं, हमने जाना भी नहीं। केवल गायत्री उपासना के लिए। सारी दुनिया हमको पागल कहती रही। बेवकूफ और बेहूदा बताती रही। पैसा हम कमा नहीं सके। जमीन पर पड़े रहे। खाने का जायका हम ले नहीं सके। इंद्रियों का जायका उठा नहीं सके। यश प्राप्त न कर सके। सम्मान प्राप्त न कर सके। जिस गायत्री मंत्र के लिए, जिस गायत्री की महत्ता के लिए बेटे! हम निछावर हैं और हमारा जीवन जिसके लिए समर्पित है, वह ऐसी महत्त्वपूर्ण शक्ति है, जिसका आधार इतना बड़ा है कि मनुष्य के भीतर वह देवत्व का उदय कर सकती है और मनुष्य अपने इसी जीवन में स्वर्ग जैसा आनंद लेने में समर्थ हो सकता है।
मित्रों! ऐसी महत्त्वपूर्ण शक्ति, चमत्कारों की देवी, ज्ञान की देवी, विज्ञान की देवी, सामर्थ्य की देवी गायत्री माता, जिसका कि हम इन शिविरों में अनुष्ठान करने के लिए बुलाएँ, पर क्या करें आप त;ो हमें कई तरह से परेशान कर देते हैं, हैरान कर देते हैं। हमारा मानसिक संतुलन खराब कर देते हैं। आप तो शंातिकुंज को धर्मशाला बना देते हैं। आप तो इसको अन्नक्षेत्र बना देते हैं और बेटे! उन लोगों को लेकर चले आते हैं, जिनका कि इस अध्यात्म से कोई संबंध नहीं है; उपासना से कोई संबंध नहीं है; अनुष्ठान से कोई संबंध नहीं है; आप भीड़ लाकर खड़ी कर देते हैं और हमारा अनुशासन बिगाड़ देते हैं।
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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