शनिवार, 23 दिसंबर 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 23 Dec 2023

सेवा करने का अपना महत्व है किन्तु सेवा के स्वरूप का भी महत्व कम नहीं है। कौन सेवा, जनता जनार्दन के माध्यम से, परमात्मा की वास्तविक सेवा है और कौन सी नहीं? वह सेवा जिसमें मनुष्य का कोई स्वार्थ निहित होता है, चाहे वह स्वार्थ स्थूल हो अथवा सूक्ष्म, प्रत्यक्ष हो अथवा परोक्ष, सेवा की उस कोटि में नहीं आती जिसे भगवद्भक्ति कहा जाता है।

श्रद्धा का अर्थ है आत्म-विश्वास, ईश्वर पर विश्वास। इसके सहारे मनुष्य अभाव में, तंगी में, निर्धनता में, कष्ट में, एकान्त में भी घबड़ाता नहीं। जीवन के अन्धकार में श्रद्धा प्रकाश बन कर मार्गदर्शन करती है और मनुष्य को उस शाश्वत लक्ष्य से विलग नहीं होने देती। आत्मदेव के प्रति, ईश्वर के प्रति जीवन लक्ष्य के प्रति हृदय में कितनी प्रबल जिज्ञासा है, जीवन की इस विशालता को जानना हो तो मनुष्य के अन्तःकरण की श्रद्धा को नापिये। यह वह दैवी मार्ग-दर्शन है जिसे प्राप्त कर साँसारिक बाधाओं का विरोध कर लेना सहज हो जाता है।

“संसार दुखों का सागर है”-यह उक्ति केवल उन्हीं पर चरितार्थ होती है जो दुखों से भयभीत और प्रत्येक क्षण सुख के लिये लालायित रहते हैं। सुख-सुविधा की अतिशय चाह भी दुख का एक विशेष कारण है। इस निरन्तर परिवर्तनशील और द्वन्द्व प्रधान जगत में जो सदा अपने मनोनुकूल परिस्थितियों की अपेक्षा करता है उसके लिये संसार की लघु से लघु प्रतिकूलता भी एक बड़ा दुःख बन जाती है। हम क्यों चाहते हैं कि हमें केवल शीतल मंद सुगन्ध समीर ही प्राप्त होती रहे, गर्म वायु का कोई झोंका हमारे पास होकर न निकले। ऐसा किस प्रकार सम्भव हो सकता है। जब संसार में दोनों प्रकार की वायु चलती हैं तो क्रम से वे हमारे पास आयेंगी ही। यदि हम छाँह की कामना करते हैं तो धूप सहन ही करनी होगी।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 बर्बादी की दुष्प्रवृत्ति

समय की बर्बादी को यदि लोग धन की हानि से बढ़कर मानने लगें, तो क्या हमारा जो बहुमूल्य समय यों ही आलस में बीतता रहता है क्या कुछ उत्पादन करने या सीखने में न लगे? विदेशों में आजीविका कमाने के बाद बचे हुए समय में से कुछ घंटे हर कोई व्यक्ति अध्ययन के लिए लगाता है और इसी क्रम के आधार पर जीवन के अन्त तक वह साधारण नागरिक भी उतना ज्ञान संचय कर लेता है जितना कि हम में से उद्भट विद्वान समझे जाने वाले लोगों को भी नहीं होता। जापान में बचे हुए समय को लोग गृह−उद्योगों में लगाते हैं और फालतू समय में अपनी कमाई बढ़ाने के अतिरिक्त विदेशों में भेजने के लिए बहुत सस्ता माल तैयार कर देते हैं जिससे उनकी राष्ट्रीय भी बढ़ती है। एक ओर हम हैं जो स्कूल छोड़ने के बाद अध्ययन को तिलाञ्जलि ही दे देते हैं और नियत व्यवसाय के अतिरिक्त कोई दूसरी सहायक आजीविका की बात भी नहीं सोचते। क्या स्त्री क्या पुरुष सभी इस बात में अपना गौरव समझते हैं कि उन्हें शारीरिक श्रम न करना पड़े।

समय की बर्बादी शारीरिक नहीं मानसिक दुर्गुण है। मन में जब तक इसके लिए रुचि, आकाँक्षा एवं उत्साह पैदा न होगा, जब तक इस हानि को मन हानि ही नहीं मानेगा तब तक सुधार का प्रश्न ही कहाँ पैदा होगा? टाइम टेबल बनाकर—कार्यक्रम निर्धारित कर, कितने लोग अपनी दिनचर्या चलाते हैं? फुरसत न मिलने की बहानेबाजी हर कोई करता है पर ध्यानपूर्वक देखा जाय तो उसका बहुत सा समय, आलस, प्रमाद, लापरवाही और मंदगति से काम करने में नष्ट होता है। समय के अपव्यय को रोककर और उसे नियमित दिनचर्या की सुदृढ़ श्रृंखला में आबद्ध कर हम अपने आज के सामान्य जीवन को असामान्य जीवन में बदल सकते हैं। पर यह होगा तभी न जब मन का अवसाद टूटे? जब लक्षहीनता, अनुत्साह एवं अव्यवस्था से पीछा छूटे?

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी 1962 पृष्ठ 23


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👉 महिमा गुणों की ही है

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