🔹 *शायद तुम्हारा मन अपने दुस्स्वभावों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं होता।* काम क्रोध लोभ मोह के चंगुल में तुम जकड़े हुए हो और जकड़े ही रहना चाहते हो। अच्छा तो एक काम करो। इन चारों का ठीक ठीक स्वरूप समझ लो। *इनको ठीक तरह प्रयोग में लाना सीख लो। तो तुम्हारा काम चल जायेगा।*
🔸 *कामना करना कोई बुरी बात नहीं है। अब तक तुम गुड़ की कामना करते थे अब मिठाई की इच्छा करो।* स्त्री, पुत्र, धन, यश आदि के लाभ छोटे, थोड़े नश्वर और अस्थिर हैं, तुम्हें एक कदम आगे बढ़कर ऐसे लाभ की कामना करनी होगी जो सदा स्थिर रहे और बहुत सुखकर सिद्ध हो। *धन ऐश्वर्य को तलाश करने के लिए तुम्हें बाहर ढूँढ़ खोज करनी पड़ती है पर अनन्त सुख का स्थान तो बिल्कुल पास अपने अन्तःकरण में ही है।* आओ, हृदय को साफ कर डालो, कूड़े कचरे को हटाकर दूर फेंक दो और फिर देखो कि तुम्हारे अपने खजाने में ही कितना ऐश्वर्य दबा पड़ा है।
🔹 *अपने विरोधियों पर तुम्हें क्रोध आ जाता है सो ठीक ही है। देखो, तुम्हारे सबसे बड़े शत्रु कुविचार हैं, ये तेजाब की तरह तुम्हें गलाये डाल रहे हैं और घुन की तरह पीला कर रहे हैं।* उठो, इन पर क्रोध करो। इन्हें जी भरकर गालियाँ दो और जहाँ देख पाओ वहीं उनपर बसर पड़ो। खबरदार कर दो कि कोई कुविचार मेरे घर न आवें, अपना काला मुँह मुझे न दिखावें वरना उसके हक में अच्छा न होगा।
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🔸 *लोभ- अरे लोभ में क्या दोष? यह तो बहुत अच्छी बात है। अपने लिए जमा करना ही चाहिए इसमें हर्ज क्या है?* तुम्हें सुकर्मों की बड़ी सी पूँजी संग्रह करना उचित है, जिसके मधुर फल बहुत काल तक चखते रहो। *दूसरे लोग जिन्होंने अपना बीज कुटक लिया और फसल के वक्त हाथ हिलाते फिरेंगे, तब उनसे कहना कि ऐ उड़ाने वालो, तुम हो जो टुकड़े टुकड़े को तरसते हो* और मैं हूँ जो लोभ के कारण इकट्ठी की हुई अपनी पूँजी का आनन्द ले रहा हूँ।
🔹 *मोह अपनी आत्मा से करो। अब भूख लगती है तो घर में रखी हुई सामग्री खर्च करके भूख बुझाते हैं।* सर्दी गर्मी से बचने के लिए कपड़ों को पहनते हैं और उनके फटने की परवाह नहीं करते। शरीर को सुखी बनाने के लिए दूसरी चीजों की परवाह कौन करता है? *फिर तुम्हें चाहिए कि आत्मा की रक्षा के लिए सारी संपदा और शरीर की भी परवाह न करो। जब मोह ही करना है तो कल नष्ट हो जाने वाली चीजों से क्यों करना? अपनी वस्तु आत्मा है।* उससे मोह करो, उसको प्रसन्न बनाने के लिए उद्योग करो।
📖 *अखण्ड ज्योति दिसम्बर 1943 पृष्ठ 32*