🔶 एक छोटे से गाँव मे श्रीधर नाम का एक व्यक्ति रहता था स्वभाव से थोड़ा कमजोर और डरपोक किस्म का इंसान था!
🔷 एक बार वो एक महात्माजी के दरबार मे गया और उन्हे अपनी कमजोरी बताई और उनसे प्रार्थना करने लगा की हॆ देव मुझे कोई ऐसा साथी मिल जायें जो सबसे शक्तिशाली हो और विश्वासपात्र भी जिस पर मैं आँखे बँद करके विश्वास कर सकु जिससे मैं मित्रता करके अपनी कमजोरी को दुर कर सकु! हॆ देव भले ही एक ही साथी मिले पर ऐसा मिले की वो मेरा साथ कभी न छोड़े!
🔶 तो महात्मा जी ने कहा पुर्व दिशा मे जाना और तब तक चलते रहना जब तक तुम्हारी तलाश पुरी न हो जायें! और हाँ तुम्हे ऐसा साथी अवश्य मिलेगा जो तुम्हारा साथ कभी नही छोडेंगा बशर्ते की तुम उसका साथ न छोड़ो!
🔷 श्रीधर - बस एक बार वो मुझे मिल जायें तो फिर मैं उसका साथ कभी न छोडूंगा पर हॆ देव मॆरी तलाश तो पुरी होगी ना?
🔶 महात्माजी - हॆ वत्स यदि तुम सच्चे दिल से उसे पाना चाहते हो तो वो बहुत सुलभता से तुम्हे मिल जायेगा नही तो वो बहुत दुर्लभ है!
🔷 फिर उसने महात्माजी को प्रणाम किया आशीर्वाद लिया और चल पड़ा अपनी राह पर चल पड़ा!
🔶 सबसे पहले उसे एक इंसान मिला जो शक्तिशाली घोड़े को काबू मे कर रहा था तो उसने देखा यही है वो जैसै ही उसके पास जाने लगा तो उस इंसान ने एक सैनिक को प्रणाम किया और घोड़ा देकर चला गया श्रीधर ने सोचा सैनिक ही है वो तो वो मित्रता के लिये आगे बड़ा पर इतने मे सैनापति आ गया सैनिक ने प्रणाम किया और घोड़ा आगे किया सैनापति घोड़ा लेकर चला गया श्रीधर भी खुब दौड़ा और अन्ततः वो सैनापति तक पहुँचा पर सैनापति ने राजाजी को प्रणाम किया और घोड़ा देकर चला गया तो श्रीधर ने राजा को मित्रता के लिये चुना और उसने मित्रता करनी चाही पर राजा घोड़े पर बैठकर शिकार के लिये वन को निकले श्रीधर भी भागा और घनघोर जंगल मे श्रीधर पहुँचा पर राजा कही न दिखे!
🔷 प्यास से उसका गला सुख रहा था थोड़ी दुर गया तो एक नदी बह रही थी वो पानी पीकर आया और एक वृक्ष की छाँव मे गया तो वहाँ एक राहगीर जमीन पे सोया था और उसके मुख से राम राम की ध्वनि सुनाई दे रही थी और एक काला नाग उस राहगीर के चारों तरफ चक्कर लगा रहा था श्रीधर ने बहुत देर तक उस दृश्य को देखा और फिर वृक्ष की एक डाल टूटकर नीचे गिरी तो साँप वहाँ से चला गया और इतने मे उस राहगीर की नींद टूट गई और वो उठा और राम राम का सुमिरन करते हुये अपनी राह पे चला गया!
🔶 श्रीधर पुनः महात्माजी के आश्रम पहुँचा और सारा किस्सा कह सुनाया और उनसे पुछा हॆ नाथ मुझे तो बस इतना बताओ की वो कालानाग उस राहगीर के चारों और चक्कर काट रहा था पर वो उस राहगीर को डँस क्यों नही पा रहा था!
🔷 लगता है देव की कोई अद्रश्य सत्ता उसकी रक्षा कर रही थी! महात्माजी ने कहा उसका सबसे सच्चा साथी ही उसकी रक्षा कर रहा था जो उसके साथ था तो श्रीधर ने कहा वहाँ तो कोई भी न था देव बस संयोगवश हवा चली वृक्ष से एक डाली टूटकर नाग के पास गिरी और नाग चला गया!
🔶 महात्माजी ने कहा नही वत्स उसका जो सबसे अहम साथी था वही उसकी रक्षा कर रहा था जो दिखाई तो नही दे रहा था पर हर पल उसे बचा रहा था और उस साथी का नाम है "धर्म" हॆ वत्स धर्म से समर्थ और सच्चा साथी जगत मे और कोई नही है केवल एक धर्म ही है जो सोने के बाद भी तुम्हारी रक्षा करता है और मरने के बाद भी तुम्हारा साथ देता है! हॆ वत्स पाप का कोई रखवाला नही हो सकता और धर्म कभी असहाय नही है महाभारत के युध्द मे भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों का साथ सिर्फ इसिलिये दिया था क्योंकि धर्म उनके पक्ष मे था!
🔷 हॆ वत्स तुम भी केवल धर्म को ही अपना सच्चा साथी मानना और इसे मजबुत बनाना क्योंकि यदि धर्म तुम्हारे पक्ष मे है तो स्वयं नारायण और सद्गुरु तुम्हारे साथ है नही तो एक दिन तुम्हारे साथ कोई न होगा और कोई तुम्हारा साथ न देगा और यदि धर्म मजबुत है तो वो तुम्हे बचा लेगा इसलिये धर्म को मजबुत बनाओ!
🔶 हॆ वत्स एक बात हमेशा याद रखना की इस संसार मे समय बदलने पर अच्छे से अच्छे साथ छोड़कर चले जाते है केवल एक धर्म ही है जो घनघोर बीहड़ और गहरे अन्धकार मे भी तुम्हारा साथ नही छोडेंगा कदाचित तुम्हारी परछाई भी तुम्हारा साथ छोड़ दे परन्तु धर्म तुम्हारा साथ कभी नही छोडेंगा बशर्ते की तुम उसका साथ न छोड़ो इसलिये धर्म को मजबुत बनाना क्योंकि केवल यही है हमारा सच्चा साथी!
🔷 श्रीधर ने फिर धर्म को ही अपना सच्चा साथी माना!
🔷 एक बार वो एक महात्माजी के दरबार मे गया और उन्हे अपनी कमजोरी बताई और उनसे प्रार्थना करने लगा की हॆ देव मुझे कोई ऐसा साथी मिल जायें जो सबसे शक्तिशाली हो और विश्वासपात्र भी जिस पर मैं आँखे बँद करके विश्वास कर सकु जिससे मैं मित्रता करके अपनी कमजोरी को दुर कर सकु! हॆ देव भले ही एक ही साथी मिले पर ऐसा मिले की वो मेरा साथ कभी न छोड़े!
🔶 तो महात्मा जी ने कहा पुर्व दिशा मे जाना और तब तक चलते रहना जब तक तुम्हारी तलाश पुरी न हो जायें! और हाँ तुम्हे ऐसा साथी अवश्य मिलेगा जो तुम्हारा साथ कभी नही छोडेंगा बशर्ते की तुम उसका साथ न छोड़ो!
🔷 श्रीधर - बस एक बार वो मुझे मिल जायें तो फिर मैं उसका साथ कभी न छोडूंगा पर हॆ देव मॆरी तलाश तो पुरी होगी ना?
🔶 महात्माजी - हॆ वत्स यदि तुम सच्चे दिल से उसे पाना चाहते हो तो वो बहुत सुलभता से तुम्हे मिल जायेगा नही तो वो बहुत दुर्लभ है!
🔷 फिर उसने महात्माजी को प्रणाम किया आशीर्वाद लिया और चल पड़ा अपनी राह पर चल पड़ा!
🔶 सबसे पहले उसे एक इंसान मिला जो शक्तिशाली घोड़े को काबू मे कर रहा था तो उसने देखा यही है वो जैसै ही उसके पास जाने लगा तो उस इंसान ने एक सैनिक को प्रणाम किया और घोड़ा देकर चला गया श्रीधर ने सोचा सैनिक ही है वो तो वो मित्रता के लिये आगे बड़ा पर इतने मे सैनापति आ गया सैनिक ने प्रणाम किया और घोड़ा आगे किया सैनापति घोड़ा लेकर चला गया श्रीधर भी खुब दौड़ा और अन्ततः वो सैनापति तक पहुँचा पर सैनापति ने राजाजी को प्रणाम किया और घोड़ा देकर चला गया तो श्रीधर ने राजा को मित्रता के लिये चुना और उसने मित्रता करनी चाही पर राजा घोड़े पर बैठकर शिकार के लिये वन को निकले श्रीधर भी भागा और घनघोर जंगल मे श्रीधर पहुँचा पर राजा कही न दिखे!
🔷 प्यास से उसका गला सुख रहा था थोड़ी दुर गया तो एक नदी बह रही थी वो पानी पीकर आया और एक वृक्ष की छाँव मे गया तो वहाँ एक राहगीर जमीन पे सोया था और उसके मुख से राम राम की ध्वनि सुनाई दे रही थी और एक काला नाग उस राहगीर के चारों तरफ चक्कर लगा रहा था श्रीधर ने बहुत देर तक उस दृश्य को देखा और फिर वृक्ष की एक डाल टूटकर नीचे गिरी तो साँप वहाँ से चला गया और इतने मे उस राहगीर की नींद टूट गई और वो उठा और राम राम का सुमिरन करते हुये अपनी राह पे चला गया!
🔶 श्रीधर पुनः महात्माजी के आश्रम पहुँचा और सारा किस्सा कह सुनाया और उनसे पुछा हॆ नाथ मुझे तो बस इतना बताओ की वो कालानाग उस राहगीर के चारों और चक्कर काट रहा था पर वो उस राहगीर को डँस क्यों नही पा रहा था!
🔷 लगता है देव की कोई अद्रश्य सत्ता उसकी रक्षा कर रही थी! महात्माजी ने कहा उसका सबसे सच्चा साथी ही उसकी रक्षा कर रहा था जो उसके साथ था तो श्रीधर ने कहा वहाँ तो कोई भी न था देव बस संयोगवश हवा चली वृक्ष से एक डाली टूटकर नाग के पास गिरी और नाग चला गया!
🔶 महात्माजी ने कहा नही वत्स उसका जो सबसे अहम साथी था वही उसकी रक्षा कर रहा था जो दिखाई तो नही दे रहा था पर हर पल उसे बचा रहा था और उस साथी का नाम है "धर्म" हॆ वत्स धर्म से समर्थ और सच्चा साथी जगत मे और कोई नही है केवल एक धर्म ही है जो सोने के बाद भी तुम्हारी रक्षा करता है और मरने के बाद भी तुम्हारा साथ देता है! हॆ वत्स पाप का कोई रखवाला नही हो सकता और धर्म कभी असहाय नही है महाभारत के युध्द मे भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों का साथ सिर्फ इसिलिये दिया था क्योंकि धर्म उनके पक्ष मे था!
🔷 हॆ वत्स तुम भी केवल धर्म को ही अपना सच्चा साथी मानना और इसे मजबुत बनाना क्योंकि यदि धर्म तुम्हारे पक्ष मे है तो स्वयं नारायण और सद्गुरु तुम्हारे साथ है नही तो एक दिन तुम्हारे साथ कोई न होगा और कोई तुम्हारा साथ न देगा और यदि धर्म मजबुत है तो वो तुम्हे बचा लेगा इसलिये धर्म को मजबुत बनाओ!
🔶 हॆ वत्स एक बात हमेशा याद रखना की इस संसार मे समय बदलने पर अच्छे से अच्छे साथ छोड़कर चले जाते है केवल एक धर्म ही है जो घनघोर बीहड़ और गहरे अन्धकार मे भी तुम्हारा साथ नही छोडेंगा कदाचित तुम्हारी परछाई भी तुम्हारा साथ छोड़ दे परन्तु धर्म तुम्हारा साथ कभी नही छोडेंगा बशर्ते की तुम उसका साथ न छोड़ो इसलिये धर्म को मजबुत बनाना क्योंकि केवल यही है हमारा सच्चा साथी!
🔷 श्रीधर ने फिर धर्म को ही अपना सच्चा साथी माना!