🔶 ईर्ष्या एक भयानक आसुरी वृत्ति है। यह अपने साथ द्वेष, निराशा, निरुत्साहिता का असुर परिवार भी रखती है। ईर्ष्या बढ़ती है तो द्वेष भी उठ खड़ा होता है। द्वेष के कारण मनुष्य में दूसरों को हानि पहुँचाने, उनका विरोध करने और अनावश्यक रूप से शत्रुता बाँध लेने का दोष उत्पन्न हो जाता है जिसका परिपाक अपराधों के रूप में होता है और परिणाम राजदण्ड, सामाजिक बहिष्कार, निन्दा और असम्मान के रूप में भोगना पड़ता है।
🔷 समाज में परस्पर सहयोग, सहृदयता एवं संगठन का भाव बढ़ाने के लिए हम सब एक दूसरे के प्रति शिष्ट एवं यथोचित व्यवहार करने के लिए कर्त्तव्यबद्ध हैं। यदि हम कृत्रिम व्यवहार और दिखावटी शिष्टाचार का बर्ताव करते हैं तो निश्चय ही समाज में विघटन, संदेह, संशय एवं शत्रुता के बीज बोते हैं, जिसके विषफल अपने साथ पूरे समाज के हित में घातक होंगे। हमारी सभ्यता, नागरिकता और मानवता इसी में है कि हम सबके साथ यथोचित शिष्टाचार का व्यवहार करें।
🔶 जब तक विचारों में एकता न होगी, आकाँक्षाओं और भावनाओं का प्रवाह एक दिशा में न होगा, तब तक संगठन में मजबूती असंभव है। जाहिर है कि किसी भी संगठन का प्राण उसके आदर्शों में अटूट निष्ठा ही होती है। आस्थावान् व्यक्ति ही किसी संगठन की रीढ़ होते हैं।
🔷 समाज में परस्पर सहयोग, सहृदयता एवं संगठन का भाव बढ़ाने के लिए हम सब एक दूसरे के प्रति शिष्ट एवं यथोचित व्यवहार करने के लिए कर्त्तव्यबद्ध हैं। यदि हम कृत्रिम व्यवहार और दिखावटी शिष्टाचार का बर्ताव करते हैं तो निश्चय ही समाज में विघटन, संदेह, संशय एवं शत्रुता के बीज बोते हैं, जिसके विषफल अपने साथ पूरे समाज के हित में घातक होंगे। हमारी सभ्यता, नागरिकता और मानवता इसी में है कि हम सबके साथ यथोचित शिष्टाचार का व्यवहार करें।
🔶 जब तक विचारों में एकता न होगी, आकाँक्षाओं और भावनाओं का प्रवाह एक दिशा में न होगा, तब तक संगठन में मजबूती असंभव है। जाहिर है कि किसी भी संगठन का प्राण उसके आदर्शों में अटूट निष्ठा ही होती है। आस्थावान् व्यक्ति ही किसी संगठन की रीढ़ होते हैं।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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