शुक्रवार, 28 जुलाई 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 28 July 2023

आपका सुख और मधुरता दूसरों को सुख और मधुरता देने पर जुड़ी हुई हैं। अच्छे पड़ोसियों, साथियों, मित्रों और नागरिकों में ही आत्मीयता बढ़ सकती है। अतः जितना ही आप दूसरों को स्नेह देंगे, उनके विषय, कठिनाइयों और उलझनों को सुलझाने में दिलचस्पी लेंगे उतना ही आपकी आत्मीयता का दायरा बढ़ता जायेगा। आपका जीवन सरस हो जाएगा।

हमें दूसरों के मुँह से अपनी प्रशंसा सुनने के लिए उत्सुक नहीं रहना चाहिए और न किसी के द्वारा व्यक्त की गई निन्दा से दुःख मानना चाहिए। अपने बारे में अपनी राय कायम करना ही ठीक है, क्योंकि उसी में वास्तविकता होती है। अपने बारे में जितना हम स्वयं जानते हैं उतना औरकौन जान सकता है? किसी के मन की बात किसी दूसरे को क्या पता है? कोई किसी की पूरी बातें जानने के लिए समय कहाँ से लाएँ? वस्तुतः जिनकी परिस्थिति ही सही बात जानने की नहीं है, उनकी राय को महत्त्व देना बेकार है।

लोगों के हाथों अपनी प्रसन्नता-अप्रसन्नता बेच नहीं देनी चाहिए। कोई प्रशंसा करे तो हम प्रसन्न हों और निन्दा करने लगे तो दुःखी हो चलें? यह तो पूरी पराधीनता हुई। हमें इस संबंध में पूर्णतया अपने ही ऊपर निर्भर रहना चाहिए और निष्पक्ष होकर अपनी समीक्षा आप करने की हिम्मत इकट्ठी करनी चाहिए। निन्दा से दुःख लगता हो तो अपनी नजर में अपने कामों को ऐसे घटिया स्तर का साबित न होने दें जिसकी निन्दा करनी पड़े। यदि प्रशंसा चाहते हैं तो अपने कार्यों को प्रशंसनीय बनायें।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 प्रेम ही सर्वोपरि है

ईश्वरीय ज्ञान और नि:स्वार्थ प्रेम के अनुभव से घृणा का भाव नष्ट हो जाता है, तमाम बुराइयाँ रफूचक्कर हो जाती हैं और वह मनुष्य उस दिव्य दृष्टि को प्राप्त कर लेता है, जिसमें प्रेम, न्याय और उपकार ही सर्वोपरि दिखाई पड़ती हैं।

अपने मस्तिष्क को दृढ़ निश्चय तथा उदार भावों की खान बनाइए, अपने हृदय में पवित्रता और उदारता की योग्यता लाइए, अपनी जीभ को चुप रहने तथा सत्य और पवित्र भाषण के लिए तैयार कीजिए। पवित्रता और शक्ति प्राप्त करने का यही मार्ग है और अंत में अनंत प्रेम भी इसी तरह प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रकार जीवन बिताने से आप दूसरों पर विश्वास जमा सकेंगे, उनको अपने अनुकूल बनाने की आवश्यकता न होगी। बिना विवाद के आप उनको सिखा सकेंगे, बिना अभिलाषा तथा चेष्टा के ही बुद्धिमान लोग आपके पास पहुँच जाएँगे, लोगों के हृदय को अनायास ही आप अपने वश में कर लेंगे। प्रेम के सबल विचार, कार्य और भाषण व्यर्थ नहीं जाते।

इस बात को भलीप्रकार जान लीजिए कि प्रेम विश्वव्यापी है, सर्वप्रधान है और हमारी हरएक जरूरत को पूरा करने की शक्ति रखता है। बुराईयों को छोड़ना, अंत:करण की अशांति को दूर भगाता है। नि:स्वार्थ प्रेम में ही शांति है, प्रसन्नता है, अमरता है और पवित्रता है।

📖 अखण्ड ज्योति -अक्टूबर 1943

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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...