आपका सुख और मधुरता दूसरों को सुख और मधुरता देने पर जुड़ी हुई हैं। अच्छे पड़ोसियों, साथियों, मित्रों और नागरिकों में ही आत्मीयता बढ़ सकती है। अतः जितना ही आप दूसरों को स्नेह देंगे, उनके विषय, कठिनाइयों और उलझनों को सुलझाने में दिलचस्पी लेंगे उतना ही आपकी आत्मीयता का दायरा बढ़ता जायेगा। आपका जीवन सरस हो जाएगा।
हमें दूसरों के मुँह से अपनी प्रशंसा सुनने के लिए उत्सुक नहीं रहना चाहिए और न किसी के द्वारा व्यक्त की गई निन्दा से दुःख मानना चाहिए। अपने बारे में अपनी राय कायम करना ही ठीक है, क्योंकि उसी में वास्तविकता होती है। अपने बारे में जितना हम स्वयं जानते हैं उतना औरकौन जान सकता है? किसी के मन की बात किसी दूसरे को क्या पता है? कोई किसी की पूरी बातें जानने के लिए समय कहाँ से लाएँ? वस्तुतः जिनकी परिस्थिति ही सही बात जानने की नहीं है, उनकी राय को महत्त्व देना बेकार है।
लोगों के हाथों अपनी प्रसन्नता-अप्रसन्नता बेच नहीं देनी चाहिए। कोई प्रशंसा करे तो हम प्रसन्न हों और निन्दा करने लगे तो दुःखी हो चलें? यह तो पूरी पराधीनता हुई। हमें इस संबंध में पूर्णतया अपने ही ऊपर निर्भर रहना चाहिए और निष्पक्ष होकर अपनी समीक्षा आप करने की हिम्मत इकट्ठी करनी चाहिए। निन्दा से दुःख लगता हो तो अपनी नजर में अपने कामों को ऐसे घटिया स्तर का साबित न होने दें जिसकी निन्दा करनी पड़े। यदि प्रशंसा चाहते हैं तो अपने कार्यों को प्रशंसनीय बनायें।
हमें दूसरों के मुँह से अपनी प्रशंसा सुनने के लिए उत्सुक नहीं रहना चाहिए और न किसी के द्वारा व्यक्त की गई निन्दा से दुःख मानना चाहिए। अपने बारे में अपनी राय कायम करना ही ठीक है, क्योंकि उसी में वास्तविकता होती है। अपने बारे में जितना हम स्वयं जानते हैं उतना औरकौन जान सकता है? किसी के मन की बात किसी दूसरे को क्या पता है? कोई किसी की पूरी बातें जानने के लिए समय कहाँ से लाएँ? वस्तुतः जिनकी परिस्थिति ही सही बात जानने की नहीं है, उनकी राय को महत्त्व देना बेकार है।
लोगों के हाथों अपनी प्रसन्नता-अप्रसन्नता बेच नहीं देनी चाहिए। कोई प्रशंसा करे तो हम प्रसन्न हों और निन्दा करने लगे तो दुःखी हो चलें? यह तो पूरी पराधीनता हुई। हमें इस संबंध में पूर्णतया अपने ही ऊपर निर्भर रहना चाहिए और निष्पक्ष होकर अपनी समीक्षा आप करने की हिम्मत इकट्ठी करनी चाहिए। निन्दा से दुःख लगता हो तो अपनी नजर में अपने कामों को ऐसे घटिया स्तर का साबित न होने दें जिसकी निन्दा करनी पड़े। यदि प्रशंसा चाहते हैं तो अपने कार्यों को प्रशंसनीय बनायें।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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