प्रशंसा का मिठास चखिए और दूसरों को चखाइए
अपने दोषों की ओर से ओंखें बंद करके उन्हें बढने दें या आत्मनिरीक्षण करना छोड दें, ऐसा हमारा कथन नहीं हैं। हमारा निवेदन इतना ही है किं बुराइयों को भुला कर अच्छाइयों को प्रोत्साहित करिए। अपने में जो दोष हैं, जो दुर्भाव हैं उन्हें ध्यानपूर्वक देखिए और उनको कठोर परीक्षक की तरह तीव्र दृष्टि से जाँचते- . रहिए। जो त्रुटियाँ दिखाई पड़े उनके विरोधी सद्गुणों को प्रोत्साहन देना आरभ करिए यही उन दोषों के निवारण का सही तरीका है। मान लीजिए कि आपको क्रोध अधिक आता है तो उसकी चिंता छोड कर प्रसन्नता का, मधुर भाषण का अभ्यास कीजिए क्रोध अपने आप दूर हो जाएगा। यदि क्रोध का ही विचार करते रहेंगे तो विनयशीलता का अभ्यास न हो सकेगा। यदि कोई आपको आदेश करे कि भजन करते समय बंदर का ध्यान मत आने देना, तो बंदर का ध्यान आए बिना न रहेगा। वैसे भजन करने में कभी बंदर का ध्यान नहीं आता पर निषेध किया जाए तो बढोत्तरी होगी। बुराई कोई स्वतंत्र वस्तु नहीं है, भलाई के अभाव को बुराई कहते हैं, पाप कोई स्वतंत्र वस्तु नहीं है,पुण्य के अभाव को पाप कहते हैं। यदि भलाई की ओर, पुण्य' की ओर आपकी प्रवृत्ति हो तो बुराई अपने आप घटने लगेगी और एक दिन उसका पूर्णत: लोप हो जाएगा।
पीठ थपथपाने में घोडा खुश होता है, गरदन खुजाने से गाय प्रसन्न होती है, हाथ फिराने से कुत्ता हर्ष प्रकट करता है, प्रशंसा से हृदय हुलस आता है। आप दूसरों की प्रशंसा करने में कंजूसी मत किया कीजिए जिनमें जो अच्छे गुण देखें, उनकी मुक्त कंठ से सराहना किया करें, सफलता पर बधाई देने के अवसरों को हाथ से न जाने दिया करें। इसकी आदत डालना घर से आरंभ करें अपने भाई-बहिनों बालक-बालिकाओं की अच्छाइयों को उनके सामने कहा कीजिए। अपनी पत्नी के रूप, सेवाभाव, परिश्रम, आत्मत्याग की भूरि- भूरि प्रशंसा किया कीजिए। बड़ों के प्रति प्रशंसा प्रकट करने का रूप कृतज्ञता है। उनके द्वारा जो सहायता प्राप्त होती है उसके लिए कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिए। किसी ने आपके ऊपर अहसान किया हो तो शुक्रिया, धन्यवाद, मैं आपका ऋणी ' आदि शब्दों के द्वारा थोड़ा-बहुत प्रत्युपकार उसी समय चुका दिया कीजिए। बाद में आप देखेगे कि चारों ओर कितना मिठास बरसता है। शत्रु-मित्र बन जाते हैं। आपकी वाणी के प्रशंसा युक्त मिठास से आकर्षित होकर मित्र और प्रिय पात्रों का दल आपके पीछे-पीछे लगा फिरेगा। आज यह बातें छोटी भलें ही प्रतीत होती हैं परंतु अनुभव के पश्चात आप पावेंगे कि प्रशंसा परायणता में जितना आध्यात्मिक लाभ है, उससे भी अधिक भौतिक लाभ है। धनी बनने, प्रेम पात्र बनने, नेता बनने, शत्रु रहित बनने की यह कुंजी है। दूसरों का हदय जीतने की यह अचूक दवा है।
आप अपने में अच्छाइयाँ देखिए 'दूसरों में अच्छाईयाँ देखिए इस संसार में श्रेष्ठताएँ उत्कृष्टताएँ संपदाए कम नहीं हैं। आप उन्हें देखिए रूचिपूर्वक पहिचानिए और आग्रह पूर्वक ग्रहण करिए,ऐसा करने से आपके अंदर-बाहर, चारों ओर अच्छाइयों से भरा हुआ प्रसन्नतापूर्ण वातावरण एकत्रित हो जाएगा। इस वातावरण मे आपको आनन्द का, उल्लास का दर्शन होगा।
आनंददायक उल्लास प्रदान करने वाली परिस्थितियाँ वस्तुएँ बाहर नहीं हैं। जड भूतों में, चैतन्य आत्मा को उल्लसित करने वाली कोई शक्ति नहीं है। आप बाहर की ओर देखना छोड़ कर अपने अंतःकरण को तलाश कीजिए। क्योंकि अखंड आनंद का अक्षय स्रोत वहीं छिपा हुआ है। अपने सत् तत्वों को जागृत कीजिए उन्हें विकसित और समुन्नत कीजिए आपका जीवन उल्लास से परिपूर्ण हो जावेगा।
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✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 आंतरिक उल्लास का विकास पृष्ठ ४०