🔷 मित्रो! अध्यात्म जीवन जीने की कला है। जीवन किस तरह से जिया जा सकता है और जीवन को समग्र और समर्थ कैसे बनाया जा सकता है, इसके लिए है-अध्यात्म। वह अध्यात्म आज दुनिया से समाप्त हो गया है और उसके स्थान पर जादू आकर हावी हो गया है। हमारे और आपके सिर पर जादू बैठा हुआ है। अध्यात्म में आदमी को स्वावलम्बी बनना पड़ता था और अपने आपको परिष्कृत एवं श्रेष्ठ बनाना पड़ता था, लेकिन वह प्रक्रिया आज न जाने कहाँ खत्म हो गयी। उसके स्थान पर परावलम्बन आकर हम पर हावी हो गया। हम हर चीज को पराये से माँगने में विश्वास करने लगे हैं। हम यह विश्वास करने लगे हैं कि कोई भूत-पलीत आयेगा, कोई साधु-बाबा आयेगा और हमें सुख-शांति और सिद्धियाँ दे करके, मुक्ति देकर के और कुछ दे करके चला जायेगा।
🔶 मित्रो! अध्यात्म का सत्यानाश हो गया और धर्म चौपट हो गया। धर्म का सत्यानाश हो गया। समाज की सुव्यवस्था के लिए जिन सत्परम्पराओं का परिपालन करना चाहिए, जिन नागरिक कर्तव्यों को आदमी को समझना चाहिए और जिन सामाजिक जिम्मेदारियों को आदमी को निभाना चाहिए, उससे आदमी लाखों मील दूर चला गया। धर्म के नाम पर केवल उसके कलेवर को और आडम्बरों को छाती से चिपका कर बैठ गया। आज धर्म का सत्यानाश हो गया और सर्वनाश हो गया। आस्तिकता का सर्वनाश हो गया। यह क्या हो गया? यह आ गयी बाढ़ और आ गया भूकंप, जिससे सब मटियामेट हो गया। अब ईश्वर नाम की कोई चीज नहीं बची। ईश्वर स्तुति की विशेषताएँ, स्तुति की महत्ताएँ, मंत्र जप की विशेषताएँ आदि सबका प्रभाव जो मनुष्य के जीवन पर आना चाहिए था, वह सब चला गया, सब बाढ़ में बह गया। उसके स्थान पर केवल जादू रह गया। उसके स्थान पर केवल ठगी रह गयी है। अब केवल रह गया है कि हम भगवान को यह चीज देकर अमुक चीज, अमुक सिद्धियाँ प्राप्त कर लें। अमुक मंत्र घुमाकर अमुक चीज प्राप्त कर लें, स्वार्थ साध लें।
🔷 आज सारा का सारा मानव समुदाय इसी अज्ञान में डूबा हुआ है। इसलिए मनुष्य में जो सुख और शांति लाने की व्यवस्थाएँ थीं, वे सब चौपट हो गयीं, उनका सत्यानाश हो गया। आज सब कुछ चौपट दिखाई पड़ रहा है। हमें चारों ओर अंधकार दिखाई पड़ रहा है। हमको चारों ओर पतन दिखाई पड़ रहा है। हमें पीड़ाओं से चारों ओर से घिरा हुआ मनुष्य दिखाई पड़ रहा है। जबकि इस जमाने में इस संसार में ऐसी कोई चीज नहीं है, जिसको हम मनुष्य के लिए अभाव कह सकें। अभाव कहाँ है? जमीन में से कितना सारा अनाज पैदा होता है। अभाव कहाँ है? कैसी अच्छी हवा चला करती है। अभाव किस चीज का है? ढेरों पानी भरा पड़ा है। कपड़े के लिए जमीन ढेरों की ढेरों रुई पैदा कर देती है। फिर अभाव किस चीज का है? किसी चीज का अभाव नहीं है। मित्रो! हमारे पड़ोसी हैं, हमारी स्त्री है, बच्चे हैं, हमारे पास चिड़िया घूमती है और जानवर घूमते हैं। कैसा सुंदर संसार है। फिर अभाव किस बात का है? पीड़ायें किस बात की? कष्ट किस बात का? किसी बात का कष्ट नहीं है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य (अमृत वाणी)