रविवार, 8 अक्टूबर 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 8 Oct 2023

आत्मिक क्षेत्र में सबसे बड़ी शक्ति ‘श्रद्धा’ है। श्रद्धा, अन्धविश्वास, मूढ़ मान्यता या कल्पना लोक की उड़ान या भावुकता नहीं, वरन् एक प्रबल तत्त्व है। भौतिक जगत में विद्युत शक्ति की महत्ता एवं उपयोगिता से अगणित प्रकार के कार्य सम्पन्न होते देखे जाते हैं। यदि बिजली न हो तो वैज्ञानिक उपलब्धियों में से तीन चौथाई निरर्थक हो जायेगी ठीक इसी प्रकार आत्मिक जगत में श्रद्धा की बिजली की महत्ता है। मनोयोग और भावनाओं के सम्मिश्रण से जो सुदृढ़ निश्चय एवं विश्वास विनिर्मित होता है। उसे भौतिक बिजली से कम, नहीं वरन् अधिक ही शक्ति-शाली समझना चाहिए। आत्म निर्माण का विशाल काय भवन उच्च आदर्शों के प्रति अटूट निष्ठा की चट्टान पर ही खड़ा किया जाता है।

समय ही जीवन है। समय ही उत्कर्ष है। समय ही महानता के उच्चतम शिखर तक चढ़ दौड़ने का सोपान है। महाकाल की उपासना का जो स्वरूप समझ सका है उसी को मृत्युंजय बनने का सौभाग्य मिला है और किसी के साथ भी मखौल किया जा सकता है पर महाकाल के साथ नहीं। सिंह के दाँत गिनने की धृष्टता किसी को नहीं करनी चाहिए। समय के दुरुपयोग की भूल अपने भाग्य और भविष्य को ठुकराने, लतियाने की तरह है। जो समय गँवाता है वह प्रकारान्तर से अपने उत्कर्ष और आनन्द का द्वार ही बन्द करता है।

शक्ति के स्रोत मनुष्य के भीतर छिपे पड़े है, पर कोई विरले ही हैं जो उन्हें समझते, अनुभव करते और काम में लातें है। यही है असफलताओं का कारण जिसे अक्सर लोग दूसरों पर थोपना चाहते हैं। आत्म प्रवंचना के रूप में दूसरों को भला बुरा कह कर कोई कुछ जी हलका कर सकता है पर उससे कुछ काम नहीं चलता। अवरोधों की मंजिल पार करते हुए प्रगति की दिशा में चलना और सफलता वरण करना उसी के लिए सम्भव है जो अपने को समझने सुधारने और समर्थ बनाने के लिए कटिबद्ध होता है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 गलत विश्वास

वैज्ञानिको ने एक प्रयोग में  एक बड़े से टैंक में एक शार्क मछली को रखा। और उसके साथ ही कुछ छोटी मछलियों को भी उसी टैंक में डाल दिया। स्वाभाविक रूपसे शार्कने तुरंत ही उन सारी मछलियों का सफाया कर दिया इसके बाद वैज्ञा निको ने टैंक में एक बहुत ही मजबूत फैबर ग्लास  लगा दिया। और टैंक के दो हिस्से कर दिए। एक हिस्से में शार्क थी। और दुसरे हिस्से में उसने फिर से छोटी मछलियों को डाला। जैसे ही शार्क की नज़र उन पर पड़ी। वो उन्हें खाने के लिए लपकी। पर इस बार बीच में फैबर ग्लास  होने की वजह से शार्क उससे जा टकराई। एक बार टकराने के बाद भी शार्क ने हार नहीं मानी। वो हर कुछ समय के अंतराल के बाद उस दिशा में बढती जहा मछलिया थी,और टकरा के फिर पलट आती। इस दौरान छोटी मछलिया आसानी से और आज़ादी से तैर रही थी। और कुछ एक डेढ़ घंटे के बाद शार्क ने हार मान ली।

ये प्रयोग पुरे हफ़्ते भर में कई बार किया गया। धीरे धीरे शार्क के हमले कम होते गए। और वो ज्यादा जोर भी नहीं लगाती थी। बार बार कोशिश करते रहने से, पर फिर भी मछलियों तक न पहुँचपाने से शार्क ने थक कर हार मान ली। और प्रयास करना छोड़ दिया। कुछ दिनों के बाद वैज्ञानिको ने बिच के फैबर ग्लास को हटा दिया। पर इसके बाद भी शार्क ने कभी हमला नहीं किया। शार्क को पिछले कुछ हफ्तों में विश्वास हो गया था की वो उन मछलियों तक नहीं पहुँच सकती। और दूसरी छोटी मछलिया बिना किसी नुकसान के तैरने लगी। शार्क उन तक पहुँचने के कोशिश भी नहीं करती थी।  पूर्वानुभव के कारण धारणा दृढ़ बन गईऔर पूर्वाग्रह के कारण वस्ताविकता को समझना असंभव बना।

इस प्रसंग की सीख यह है कि जब हम किसी काम के लिए लगातार प्रयास करते हैं और हर बार असफल होते हैं तो हमारी सोच नकारात्मक हो जाती है। धीरे-धीरे प्रयास करना ही बंद कर देते हैं और सफलता हासिल नहीं कर पाते हैं। अगर हम सफल होना चाहते हैं तो हमें लगातार प्रयास करते रहना चाहिए और कोशिश करना नहीं छोड़ना चाहिए, जब तक कि हम सफल नहीं हो जाते हैं।

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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