🔵 भ्रमण एवं भाषणों से थके हुए स्वामी विवेकानंद अपने निवास स्थान पर लौटे। उन दिनों वे अमेरिका में एक महिला के यहां ठहरे हुए थे। वे अपने हाथों से भोजन बनाते थे। एक दिन वे भोजन करने की तैयारी कर रहे थे कि कुछ बच्चे पास आकर खड़े हो गए।
🔴 उनके पास सामान्यतया बच्चों का आना-जाना लगा ही रहता था। बच्चे भूखे थे। स्वामीजी ने अपनी सारी रोटियां एक-एक कर बच्चों में बांट दी। मकान मालकिन वहीं बैठी सब देख रही थी। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ।
🔵 आखिर उससे रहा नहीं गया और उसने स्वामीजी से पूछ ही लिया- “आपने सारी रोटियां उन बच्चों को दे डाली, अब आप क्या खाएंगे?”
🔴 स्वामीजी के अधरों पर मुस्कान दौड़ गई। उन्होंने प्रसन्न होकर कहा- “मां! रोटी तो पेट की ज्वाला शांत करने वाली वस्तु है। इस पेट में न सही, उस पेट में ही सही। देने का आनंद पाने के आनंद से बड़ा होता है।“
🔵 “ऐसे उदारमना और सरल व्यक्तित्वों को एवं उनकी जननी भारतभूमि को सत्-सत् नमन!!”
🔴 उनके पास सामान्यतया बच्चों का आना-जाना लगा ही रहता था। बच्चे भूखे थे। स्वामीजी ने अपनी सारी रोटियां एक-एक कर बच्चों में बांट दी। मकान मालकिन वहीं बैठी सब देख रही थी। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ।
🔵 आखिर उससे रहा नहीं गया और उसने स्वामीजी से पूछ ही लिया- “आपने सारी रोटियां उन बच्चों को दे डाली, अब आप क्या खाएंगे?”
🔴 स्वामीजी के अधरों पर मुस्कान दौड़ गई। उन्होंने प्रसन्न होकर कहा- “मां! रोटी तो पेट की ज्वाला शांत करने वाली वस्तु है। इस पेट में न सही, उस पेट में ही सही। देने का आनंद पाने के आनंद से बड़ा होता है।“
🔵 “ऐसे उदारमना और सरल व्यक्तित्वों को एवं उनकी जननी भारतभूमि को सत्-सत् नमन!!”