🔶 सहानुभूति देना और पाना प्राणी मात्र का कर्त्तव्य है। हम अपनी वेदना सहानुभूति पाने के लिए दूसरे के सामने व्यक्त करते हैं-बच्चा सहानुभूति पाने के लिए अपनी चोट दिखलाता है। सहानुभूति पाने के लिए ही लोग अपनी हानियों तथा हृदय की पीड़ाओं को दूसरों के सामने खोलकर रखते हैं। ऐसी दशा में यदि हम परस्पर सहानुभूति का आदान-प्रदान नहीं करते, तो सच्चे अर्थों में मनुष्य कहलाने के अधिकारी नहीं।
🔷 मनुष्यों पर ऋषियों का भी ऋण है। ऋषि का अर्थ है-वेद, वेद अर्थात् ज्ञान। आज तक हमारा जो विकास हुआ है, उसका श्रेय ज्ञान को है, ऋषियों को है। जिस तरह हम यह ज्ञान दूसरों से ग्रहण कर विकसित हुए हैं, उसी तरह अपने ज्ञान का लाभ औरों को भी देना चाहिए। यह हर विचारवान् व्यक्ति का कर्त्तव्य है कि समाज के विकास में अपने ज्ञान का जितना अंश दान कर सकते हों वह अवश्य करना चाहिए।
🔶 किसी संगठन, विचार अथवा उद्देश्य की स्थापना के लिए अनीति का सहारा लेना, स्वयं उद्देश्य की जड़ में विष बोना है। प्रेम, सौहार्द्य, सौजन्य तथा सह-अस्तित्व के आधार पर बनाया हुआ संगठन युग-युग तक न केवल अमर ही रहता है, बल्कि दिनों-दिन बड़े ही उपयोगी तथा मंगलमय फल उत्पन्न करता है।
🔷 मनुष्यों पर ऋषियों का भी ऋण है। ऋषि का अर्थ है-वेद, वेद अर्थात् ज्ञान। आज तक हमारा जो विकास हुआ है, उसका श्रेय ज्ञान को है, ऋषियों को है। जिस तरह हम यह ज्ञान दूसरों से ग्रहण कर विकसित हुए हैं, उसी तरह अपने ज्ञान का लाभ औरों को भी देना चाहिए। यह हर विचारवान् व्यक्ति का कर्त्तव्य है कि समाज के विकास में अपने ज्ञान का जितना अंश दान कर सकते हों वह अवश्य करना चाहिए।
🔶 किसी संगठन, विचार अथवा उद्देश्य की स्थापना के लिए अनीति का सहारा लेना, स्वयं उद्देश्य की जड़ में विष बोना है। प्रेम, सौहार्द्य, सौजन्य तथा सह-अस्तित्व के आधार पर बनाया हुआ संगठन युग-युग तक न केवल अमर ही रहता है, बल्कि दिनों-दिन बड़े ही उपयोगी तथा मंगलमय फल उत्पन्न करता है।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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